सायनिक अम्ल तथा सायनेट (Cyanic acid and cyanate) [OHCN] सायनिक अम्ल को वोलर (Wohler) ने सन् १८२४ में ज्ञात किया था। इसके निर्माण की सबसे सरल विधि इसके बहुलकीकृत रूप सायन्यूरिक अम्ल (cyanuric acid) को कार्बन डाईऑक्साइड की उपस्थिति में आसवन करके तथा इससे प्राप्त वाष्पों को हिमकारी मिश्रण (freezing mixture) में संघनित करके इकट्ठा करने की है। यह बहुत ही तीव्र वाष्पशील द्रव पदार्थ है जो ०सें. से नीचे ही स्थायी रहता है तथा इसकी अम्लीय अभिक्रिया काफी तीव्र होती है। इसमें ऐसीटिक अम्ल की सी गंध होती है। ०सें. पर यह बहुलकीकृत होकर सायन्यूरिक अम्ल (CNOH)2 बनाता है। हाइड्रोसायनिक अम्ल या मरक्यूरिक सायनाइड पर क्लोरीन की अभिक्रिया से सायनोजन क्लोराइड (CN C1) बनता है जो वाष्पशील विषैला द्रव है और जहरीली गैस के रूप में प्रयुक्त होता है।

सायनिक अम्ल के लवणों को सायनेट कहते हैं। इनमें पोटैशियम तथा अमोनियम सायनेट (KCNO and NH4CNO) प्रमुख हैं।

सायनिक अम्ल के दो चलावयवीय (tautomeric) रूप होते हैं।

(H.O-C = N = O = C = NH

(सामान्य सायनेट) (आइसोसायनेट)

सामान्य रूप का ऐस्टर नहीं मिलता परंतु आइसोसायनेट के ऐस्टर ऐल्किल हैलाइड पर सिलवर सायनेट की अभिक्रिया से प्राप्त होते हैं।

R-X+AgN = C = O-R- N = C = O

ऐल्किल आइसोसायनेट

इनमें एथिल आइसोसायनेट (C2 H5 N C O) प्रमुख है और बड़े काम का है। [रामदास तिवारी]