सामाजिक सुरक्षा (सामान्य) सामाजिक सुरक्षा वाक्यांश का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है। अमरीकन विश्वकोश में इसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है-संक्षेप में सामाजिक सुरक्षा कुछ उन विशेष सरकारी योजनाओं की ओर संकेत करती है जिनका प्रारंभिक लक्ष्य सभी परिवारों को कम-से-कम जीवन निर्वाह के साधन और शिक्षा तथा चिकित्सा की व्यवस्था करके दरिद्रता से मुक्ति दिलाना होता है। इसका संबंध आर्थिक योजनाओं से होता है। मानव जीवन में आर्थिक संकट की घड़ियाँ प्राय: आती हैं। (१) बीमारी के समय आदमी काम करके जीविका उपार्जन में असमर्थ हो जाता है। (२) बेकारी, जब किसी आकस्मिक दुर्घटना या कारण से आदमी स्थायी या अस्थायी रूप से जीविकोपार्जन से वंचित हो जाता है। (३) परिवार में रोटी कमाने वाले की मृत्यु के कारण आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। (४) बुढ़ापे की असमर्थता भी जीविका के साधन से वंचित कर देती है। इन्हीं विपत्तियों के समय आर्थिक सहायता पहुँचाना सामाजिक सुरक्षा का प्रधान लक्ष्य होता है। साधारणत: समाज के अधिकांश व्यक्तियों के लिए संभव नहीं कि वे इन विपत्तियों से अपनी सुरक्षा की व्यवस्था स्वयं कर सकें। इसलिए आवश्यक है कि इन विपत्तियों से समाज के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा राष्ट्रीय स्तर पर समाज द्वारा की जाए।
प्राचीनकाल में आर्थिक जीवन सरल था। जीवन में संकट भी अपेक्षाकृत कम थे। सुव्यवस्थित रूप से सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था के पूर्व भी दरिद्र और निस्सहाय लोगों को किसी न किसी प्रकार की सहायता मिलती रही। परंतु उस समय इस प्रकार की सहायता दानी लोगों तथा लोकहितैषी संस्थाओं द्वारा ही दी जाती थी।
यह पर्याप्त सिद्ध हुई और यह प्रणाली दोषपूर्ण भी थी तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी श्रेयस्कर नहीं थी। आर्थिक जीवन की सरलता समाप्त हो गई। औद्योगिक क्रांति तथा बड़े पैमाने पर उत्पत्ति ने पूँजीवाद को जन्म दिया जिससे आर्थिक विषमता बढ़ गई। काल और परिस्थिति ने पूँजीवाद के दोषों को स्पष्ट कर दिया। उत्पादन बढ़ा, राष्ट्रीय लाभांश बढ़ा परंतु वितरण प्रणाली के दोषपूर्ण होने के कारण सभी लाभान्वित न हो सके। जन जागृति तथा असंतोष की भावना ने, जिसने अपने आपको श्रम अशांति और आंदोलनों में व्यक्त किया, सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया। परिणामस्वरूप आज प्राय: सभी औद्योगिक दृष्टि से प्रगतिशील देशों में सामाजिक सुरक्षा की योजना कार्यान्वित की जा रही है। पिछड़े और अविकसित देशों ने भी पूर्ण या आंशिक रूप से इस योजना को अपनी वित्तीय नीति में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। सामाजिक सुरक्षा के विस्तृत क्षेत्र तथा उसके लिए आवश्यक धन की अधिकता से सभी घबराए। परंतु फिर प्रश्न यह था कि क्या इस आवश्यक योजना को टाला जा सकता है। सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था सामाजिक बीमा, या सामाजिक सहायता के रूप में की जाती है। सामाजिक बीमा का क्षेत्र सामाजिक सहायता के क्षेत्र से अधिक व्यापक है। पूर्ण या आंशिक, स्थायी या अस्थायी, शारीरिक व मानसिक अयोग्यता, बेकारी, वैधव्य, रोटी कमाने वाले की मृत्यु, बुढ़ापा तथा बीमारी आदि संकटों के लिए सुरक्षा सामाजिक बीमा के अंतर्गत की जाती है। अस्पताल, पागलखाने, चिकित्सालय साधारण तौर पर सामाजिक सहायता के अंतर्गत आते हैं।
सामाजिक सुरक्षा के सुव्यवस्थित रूप का प्रारंभ जर्मनी में हुआ। १८८१ ई. में जर्मनी के बादशाह विलियम प्रथम ने सामाजिक बीमा की योजना तैयार करने का आदेश दिया। सन् १८८३ में कानून पास हुआ जिसके अनुसार अनिवार्य बीमारी की व्यवस्था की गई। इस योजना को बिसमार्के का भी समर्थन प्राप्त हुआ। १८८९ में बीमारी बीमा के क्षेत्र को और व्यापक बनाकर अस्थायी अयोग्यता के लिए भी बीमा की व्यवस्था की गई। आस्ट्रिया और हंगरी ने भी इसका अनुकरण किया।
बीसवीं शताब्दी का प्रारंभ सामाजिक सुरक्षा के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। इस काल में संसार के विभिन्न देशों ने बृहत् योजनाओं को कार्यान्वित किया। निक्षेपवादी नीति के दोष स्पष्ट होने लगे थे। सरकार की इस नीति के कारण औद्योगिक श्रमिकों को काफी यातना सहनी पड़ी थी। एतदर्थ इस नीति को त्यागना और श्रमिकों के लिए, आवश्यक सुरक्षा की व्यवस्था सरकारों का लक्ष्य बन गई। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, (इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन) ने भी सामाजिक सुरक्षा के प्रसार में योगदान किया। १९१९ से इस संस्था के अधिवेशनों में इस संबंध में प्रस्ताव पास होते रहे, जिनका समावेश विभिन्न राष्ट्रों ने अपनी नीति में किया। श्रमिकों को क्षतिपूर्ति, बुढ़ापे की पेंशन, बेकारी, चिकित्सा, तथा मेटरनिटी लाभ के लिए बीमा की व्यवस्था करने की नीति सदस्य देशों ने अपनाई। द्वितीय महायुद्ध से उत्पन्न वातावरण ने इस आंदोलन को बढ़ावा दिया। सभी प्रगतिशील देशों ने सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता का अनुभव किया। आस्ट्रेलिया, कैनाडा, न्यूजीलैंड, अमरीका, आदि ने बृहत् योजनाओं को कार्य रूप दिया।
सामाजिक सुरक्षा के इतिहास में सर विलियम बेवेरिज का नाम चिरस्मरणीय रहेगा सामाजिक सुरक्षा एवं सामाजिक सेवाओं के लिए स्थापित अंतर्विभाग समिति के अध्यक्ष के रूप में बेवेरिज ने १९४२ ई. में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इन्होंने सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए जन्म से मृत्यु तक सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की सिफारिश की। पार्लियामेंट ने इन सिफारिशों को कार्यान्वित करने के लिए कई अधिनियम पास किए। बेवरिज योजना इंग्लैड ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी सामाजिक सुरक्षा को योजना का आधार बनी रहेगी।
बेवरिज योजना का प्रभाव भारत पर भी पड़ा। जबकि अन्य प्रगतिशील देशों ने इस दिशा में काफी प्रगति कर ली थी, भारत में सुरक्षा का प्रश्न केवल चिंतन का ही विषय बना रहा। श्रम संबंधी शाही आयोग ने भी इसकी उपेक्षा की। औद्योगिक समाज के दोष भारत में स्पष्ट हुए और इन्होंने अपने आपको श्रम अशांति और श्रम आंदोलनों में व्यक्त किया। साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव और प्रति दिन होने वाले श्रम संघर्षों की उपेक्षा राष्ट्रीय सरकार न कर सकी। भारत के सामने एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का लक्ष्य था। श्रमिक वर्ग के हित की दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था आवश्यक समझी जाने लगी। भारत सरकार ने इस दिशा में कई ठोस और सही कदम उठा
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इंग्लैंड एक जाग्रत देश है और १५४७ में वहाँ पर सबसे पहला कानून दरिद्र सहायता के संबंध में पास हुआ। उस समय से लेकर १९२९ तक कितने ही कानून इस संबंध में बने। अनिवार्य राज्य बेकारी बीमा का प्रारंभ अंशवादी सिद्धांतों के आधार पर १९११ में हुआ। १९२० में इस योजना के क्षेत्र को व्यापक बनाकर २५० पौ. प्रति वर्ष से कम आय वाले सभी श्रमिकों को इससे लाभ पहुँचाने की व्यवस्था की गई। १९३६ में कृषि उद्योग में लगे हुए श्रमिकों को भी इसके अंतर्गत लाया गया। स्वास्थ्य् बीमा योजना भी १९११ में लागू की गई। १९०८ में ऐक्ट के अनुसार बुढ़ापे में पेंशन की व्यवस्था की गई। आश्रितों के लिए पेंशन की व्यवस्था की योजना १९२५ से लागू है। इंग्लैंड के १९०६ के श्रमिक क्षतिपूर्ति ऐक्ट के अनुसार क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई। सामाजिक सुरक्षा की बृहत् योजना का प्रारंभ बेवरिज से होता है। बेवरिज ने पूरी जनसंख्या को छह श्रेणियों में बाँट दिया और श्रेणियों को इतना व्यापक रूप दिया कि सभी नागरिक बेवरिज योजना के क्षेत्र के अंतर्गत आ गए। त्रिदलीय अनुदान द्वारा कोष निर्माण की व्यवस्था की गई। बेवरिज योजना के ही आधार पर ब्रिटिश पार्लियामेंट ने पाँच महत्वपूर्ण ऐक्ट पास किए हैं। इन कानूनों के द्वारा सभी नागरिक जीवन के प्रमुख संकटों से सुरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक संस्थाओं द्वारा सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है। ऐसी संस्थाएँ इंग्लैंड में हजारों की संख्या में हैं, वास्तव में रूस को छोड़कर इंगलैंड ही ऐसा देश है जहाँ की सरकार और सामाजिक संस्थाएँ अपने उत्तरदायित्व के प्रति पूर्ण जागरूक हैं। अमरीका में सबसे पहले सामाजिक सुरक्षा ऐक्ट अमरीकन कांग्रेस ने १९३५ में पास किया, जिसके अनुसार अंशदायी कोष द्वारा सामाजिक बीमा की व्यवस्था की गई। इसके अतिरिक्त सामाजिक सहायता की भी व्यवस्था है। (उदयनारायण पांडेय)