सागूदाना (साबूदाना) कुछ हिंदू विशिष्ट अवसरों पर व्रत रखते हैं। उस दिन या तो वे बिल्कुल आहार नहीं करते या केवल फलाहार करते हैं। फलों में अनेक कंदमूल और नाना प्रकार के फल आते हैं। सागूदाना की गणना भी फलाहारों में होती है। सागूदाना यद्यपि स्टार्च का बना होता है, जो अधिकांश अनाजों में पाया जाता है पर इसकी गणना फलाहारों में कैसे हुई, इसका कारण ठीक-ठीक समझ में नहीं आता। पंडितों का कहना है कि प्राचीन काल में जब ऋषि-मुनि जंगलों में रहते थे, तब जंगल में उगे ताल वृक्षों की मज्जा (pith) से प्राप्त साबूदाना को फलाहार में गिनने लगे।

आज अनेक पेड़ों की मज्जा से साबूदाना तैयार होता है। ये पेड़ सागू ताल कहे जाते हैं। ये अनेक स्थानों पर उपजते हैं। भारत के मद्रास राज्य का सेलम जिले और केरल राज्य में भी ये पेड़ उपजते हैं। ये पेड़ मेट्रोज़ाइलन सागू और मेट्रोज़ाइलन रमफिआइ (Metroxylon sagu and M. rumphii) हैं। ये दलदली भूमि में उपजते हैं। इनके अतिरिक्त अन्य कई ताल वृक्ष हैं जिनकी मज्जा से साबूदाना प्राप्त हो सकता है। ये पेड़ ३० फुट तक लंबे होते हैं। १५ वर्ष पुराने होने पर उनके स्तंभ की मज्जा में पर्याप्त स्टार्च रहता है। यदि पेड़ को फलने तथा फूलने के लिए छोड़ दिया जाए, तो मज्जे का स्टार्च फल में चला जाता है और स्तंभ खोखला हो जाता है। फल के पकने पर पेड़ सूख जाता है। साबूदाना की प्राप्ति के लिए पुष्पक्रम बनते ही पेड़ को काटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटते हैं और उसके स्तंभ की मज्जा का निष्कर्षण कर लेते हैं। इससे चूर्ण प्राप्त होता है। चूर्ण को पानी से गूँधकर छनने में छान लेते हैं, जिससे स्टार्च के दाने निकल जाते और काष्ठ के रेशे छनने में रह जाते हैं। स्टार्च पात्र के पेंदे में बैठ जाता और एक या दो बार पानी से धोकर उसको खाने में प्रयुक्त करते हैं। स्टार्च को पानी के साथ लेई बनाकर चलनी में दबाकर सरसों के बराबर छोटे-छोटे दाने बना लेते हैं। भारत में जो साबूदाना प्राप्त होता है उसे कैसावा (Cassava) या टैपिओका के पेड़ की जड़ से प्राप्त करते हैं। इसके परिपक्व कंदों को बड़े-बड़े नाँदों में पानी में डुबोकर दो या तीन दिन रखते हैं। उसे फिर छीलकर घानी (hopper) में रखकर काटने की मशीन में महीन काट लेते हैं। फिर उसे पानी के जोर के फुहारे से प्रक्षुब्ध करते हैं जिससे स्टार्च से रेशे अलग हो जाते हैं। फिर उन्हें नाँदों में रखने से स्टार्च नीचे बैठ जाता है और रेशे ऊपर से निकाल लिए जाते हैं। स्टार्च अब गाढ़ा जेल बनता है जिससे सागूदाने के छोटे-छोटे गोलाकार दाने प्राप्त होते हैं। सागूदाना खाने के काम में आता है। यह जल्द पच जाता है, अत: रोगियों के पथ्य के रूप में इसका व्यापक व्यवहार होता है। [सावित्री जायसवाल]