सांतयाना, जार्ज वस्तुवादी दार्शनिक, जन्म १८६३ में स्पेन में हुआ था। बचपन से ही स्पेन से बाहर रहे और अंग्रेजी को अपनी मुख्य भाषा बनाया। लैटिन, ग्रीक, फ्रेंच, इटैलियन और जर्मन भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। इन्हें शिक्षा हार्वर्ड कॉलेज में मिली। अमरीका में अध्यापन कार्य किया और वृद्धावस्था में हार्वर्ड में प्राध्यापक पद से त्यागपत्र देकर इंग्लैंड में रहने लगे। वहीं १९५२ ई. में इनकी मृत्यु हो गई।

इन्होंने दर्शन पर बहुत लिखा है। कुछ मुख्य रचनाएँ ये हैं- सेंस ऑव ब्यूटो (१८९७), इंटरप्रिटेशन ऑव पोपटरी ऐंड रिलीजन (१९००), लाइफ ऑव रीज़न (१९०५-६ पाँच भागों में) विंड्स ऑव डाक्टरीन (१९१३), कैरेक्टर ऐंड ओपीनियन इन दो यू.एस. (१९२०), इगोटिज्म इन जर्मन फिलासफी (१९१५), स्केप्टीसिज्म ऐंड ऐनीमल फेथ (१९२३), रेल्म्ज़ ऑव वीइंग (१९२७-४०) चार भागों में।

सांतयाना की गणना वस्तुवादी दार्शनिकों में है। इनके अनुसार वस्तुवाद के समर्थन में जैविकीय, मनोवैज्ञानिक और तार्किक प्रमाण दिए जा सकते हैं। उनका उल्लेख विवेचानात्मक वस्तुवाद दार्शनिकों के लेखों के साथ अमरीका में प्रकाशित इस प्रकार मन का सीधा संबंध संवेद्य विषयों (सेंस डेटा) से है जिनसे ज्ञान संपादित होता है। भौतिक वस्तु की सत्ता मन से स्वतंत्र है। वे संवेद्य विषयों के माध्यम से जाने जाते हैं। भौतिक वस्तुओं की गणना संवेद्य विषयों से भिन्न है।

'स्केप्टासिज्म ऐंड ऐनिमल फेथ' में सांतयाना ने 'प्रतिनिधि वस्तुपाद' (रिप्रेजेंटेटिव रियलिज्म) का प्रतिपादन किया है। उसमें सांतयाना ने स्पष्ट किया है कि संवेद्य विषय कोई सत्तात्मक वस्तु नहीं है। प्रत्यक्ष और असंदिग्ध ज्ञान के विषय केवल सार हैं। इनकी स्थिति प्लेटो के प्रत्ययों की भाँति है। गणना में वे अनंत हैं और उनका मूल्य तटस्थ हैं। इनके बिना वस्तु का ज्ञान नहीं हो सकता। सांतयाना की दृष्टि में वस्तुओं को अंतर्ज्ञान से जानना निरर्थक है। उनका वस्तुवाद प्रतिनिधिवादी होने पर भी ज्ञान में उनकी आस्था कम नहीं है क्योंकि वह ज्ञेय वस्तुओं की सत्ता पहले से ही आवश्यक मानते हैं। वस्तु को सत्ता का ज्ञान सांतयाना को संवेद्य विषयों के द्वारा अनुमान से नहीं होता बल्कि प्राणि विश्वास (ऐनिमल फेथ) से होता है। इस प्रकार ज्ञान एक विश्वास है जो सब प्राणियों में स्वभावत: है।

सांतायाना के दर्शन में मौखिक सिद्धांत ही नहीं वरन् कल्याणकारी जीवन के स्वरूप और कला तथा नैतिकता के मूल्य निर्धारण की प्रधानता है। वे दार्शनिक होने के साथ कवि और साहित्यालोचक भी हैं। 'इंटरप्रिटेशन ऑव पोयटरी ऐंड रिलीजन' (१९००) ग्रंथ में उन्होंने काव्यालोचन के सिद्धांत निरूपित किए हैं कविता में चार तत्व-शब्द सौंदर्य, मृदु उक्तिचयन, गहन अनुभूति और बौद्धिक परिकल्पना आवश्यक है। उच्च कोटि का काव्य दार्शनिक या धार्मिक भावनाओं से प्लावित होता है। कवि की उदात्त मनोदशा में काव्य और धर्म पर्याय बन जाते हैं। सांतयाना ने स्वयं कई सोनेट लिखे और प्रबंध रचनाएँ की हैं। 'ए हरमिट ऑव कारमेल ऐंड अदर पोएम्स' में उनकी काव्य रचनाएँ संगृहीत हैं।

सांतयाना ने अपने आलोचकों की भी आलोचना की है। उनको सब प्रकार से प्रभावहीन करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि उनकी प्रवृत्ति रचनात्मक से अधिक आलोचनात्मक रही है।

[हृदयानारायण मिश्र]