इलेक्ट्रान विवर्तन (इलेक्ट्रान-डफ्ऱैिक्शन)। जब एक बिंदु से चला प्रकाश किसी अपारदर्शक वस्तु की कोर को प्राय: छूता हुआ जाता है तो एक प्रकार से वह टूट जाता है जिससे छाया तीक्ष्ण नहीं होती; उसमें समांतर धारियाँ दिखाई पड़ती हैं। इस घटना को विवर्तन कहते हैं।

जब इलेक्ट्रानों की संकीर्ण किरणावलि को किसी मणिभ (क्रिस्टल) के पृष्ठ से टकराने दिया जाता है तब उन इलेक्ट्रानों का व्याभंग ठीक उसी प्रकार से होता है जैसे एक्स-किरणों (एक्स-रेज़) की किरणावालि का। इस घटना को इलेक्ट्रान विवर्तन कहते हैं और यह मणिभ विश्लेषण, अर्थात् मणिभ की सरंचना के अध्ययन की एक शक्तिशाली रीति है।

१९२७ ई. में डेविसन और जरमर ने इलेक्ट्रान बंदूक द्वारा उत्पादित इलेक्ट्रान किरणावलि को निकल के एक बड़े तथा एक एकल भणिभ से टकराने दिया तो उन्होंने देखा कि भिन्न-भिन्न विभवों (पोटेंशियलों) द्वारा त्वरित इलेक्ट्रान किरणावलियों का विवर्तन भिन्न-भिन्न दिशाओं में हुआ (इलेक्ट्रान बंदूक इलेक्ट्रानों की प्रबल और फोकस की हुई किरणावलि उत्पन्न करने की एक युक्ति है)। एक्स-किरणों की तरह जब उन्होंने इन इलेक्ट्रानों के तरंगदैर्घ्यो को समीकरण २ दू ज्या =क्र दं के आधार पर निकाला (जहाँ दू=मणिभ में परमाणुओं की क्रमागत परतों के बीच की दूरी; =रश्मियों का आपात-कोण, अर्थात् वह कोण जो आनेवाली रश्मियाँ मणिभ के तल से बनाती हैं; =वर्णक्रम का क्रम (ऑर्डर); दै=तरंगदैर्घ्य), तब उन्हें ज्ञात हुआ कि इन तरंगदैर्घ्यों दै के मूल्य ठीक उतने ही निकलते हैं जितने डी ब्रोगली का समीकरण दै=प्ल/द्रवे देता है। यहाँ प्ल प्लैंक का नियतांक है, द्र इलेक्ट्रान का द्रव्यमान (मास) और वे इसका वेग। यह प्रथम प्रयोग था जिसने इलेक्ट्रानों के उन तरंगीय गुणों को सिद्ध किया जिनकी भविष्यवाणी एल.डी.ब्रोगली ने १९२४ ई. में गणित के सिद्धांतों के आधार पर की थी और जिनके अनुसार एक इलेक्ट्रान का तंरगदैर्घ्य

जहाँ वो वह विभव है जिसके द्वारा इलेक्ट्रान को त्वरित किया गया है।

डेविसन और जरमर के प्रयोग लगभग ५० वोल्ट द्वारा त्वरित मंदगामी इलेक्ट्रानों से किए गए थे। १९२८ ई. में जी.पी. टामसन ने इस समस्या का अन्वेषण दूसरी ही रीति से किया। उसने अपने अनुसंधान में १० हजार से लेकर ५० हजार वोल्ट तक से त्वरित अत्यंत वेगवान् इलेक्ट्रानों का प्रयोग एक दूसरी रीति से किया। यह रीति डेबाई और शेरर की चूर्ण रीति से, जिसका प्रयोग उन्होंने एक्स-किरणों द्वारा मणिभ के विश्लेषण में किया था, मिलती जुलती थी। उसके उपकरण का वर्णन नीचे किया जाता है:

ऋणाग्र किरणों की एक आवलि को ५० हजार वोल्ट तक त्वरित किया जाता है और फिर उसको एक तनुपट नलिका (डायफ्रााम ट्यूब) में से निकालकर इलेक्ट्रानों की एक संकीर्ण किरणावलि से परिवर्तित किया जाता है। इलेक्ट्रान की इस किरणावलि को सोने की एक बहुत ही पतली पन्नी पर गिराते हैं, जिसकी मोटाई लगभग १०-६ सें. मी. होती है। सारे उपकरण के भीतर अतिनिर्वात (हाई वैक्युअम) रखा जाता है और प्रकीर्णित (स्कैटर्ड) इलेक्ट्रानों को एक प्रतिदीप्त (फ्लुओरेसेंट) परदे अथवा फोटो पट्टिका पर पड़ने दिया जाता है। पट्टिका को डिवेलप करने पर एक सममित अभिलेख मिला, जिसमें स्पष्ट, तीक्ष्ण और एककेंद्रीय (कॉनसेंट्रिक) वलय थे और उनके केंद्र पर एक चित्ती (बिंदु) थी। यब सब बहुत कुछ उस तरह का था जैसा चूर्णित माणिभ रीति में एक्स-रश्मियों में उत्पन्न होता है और कारण भी वही था। महीन पन्नी में धातु के सूक्ष्म मणिभ होते हैं, जिनमें से वे, जो उपयुक्त कोण पर होते हैं, इलेक्ट्रानों का प्रकीर्णन करते हैं। ब्रैग के नियमानुसार २दू ज्या =क्रदै। पूर्वोक्त वृत्त विवर्तन शंकुओं की पट्टिका अथवा परदे पर प्रतिच्छेद (इंटरसेक्शन) हैं। यह भी देखा गया कि ज्यों-ज्यों इलेक्ट्रानों का वेग बढ़ता है त्यों त्यों इन वृत्तों का व्यासार्ध घटता है, जिससे स्पष्ट है कि इलेक्ट्रान का तरंगदर्घ्य वेग के बढ़ने से घटता है, क्योंकि ऐसी विवर्तन आकृतियाँ केवल तरंगों द्वारा ही बन सकती हैं, न कि किरणों द्वारा, अत: प्रयोग पूर्णतया सिद्ध करता है कि इलेक्ट्रान तरंगों के सदृश व्यवहार करते हैं

चित्र १०

इलेक्ट्रान विवर्तन चित्राकंन

= इलेक्ट्रानों का उद्गम; क= तनुपट नलिका; फ= सोने की पन्नी; प= फोटो पट्टिका।

१९२८ ई. में किकुची ने जापान में उच्च वोल्टवाले इलेक्ट्रानों को पतले अभ्रक की पन्नियों से टकराने देकर सुंदर विवर्तन आकृतियाँ प्राप्त कीं। पूर्वोक्त प्रयोगों ने इलेक्ट्रान के तरंगीय गुण को निश्चित रूप से सिद्ध कर दिया है और अब हमारे पास इस तथ्य के स्पष्ट प्रमाण हैं कि इलेक्ट्रान अपने कुछ गुणों में तरंग की तरह और कुछ में द्रव्यकणों की तरह व्यवहार करते हैं।

ठोस पदार्थो के परीक्षणों में १०-६सें.मी. वाली पतली पन्नियों को इलेक्ट्रान किरणावलि के मार्ग में इस प्रकार रखा जाता है कि इलेक्ट्रान उनको पार कर दूसरी ओर निकल जायँ और जो अधिक मोटी होती है उनको इस प्रकार स्थापित किया जाता है कि इलेक्ट्रान उनकी सतह से टकराकर बहुत छोटे कोण (लगभग २ अंश) पर परावर्तित (रिफ़्लेक्टेड) हो जाएँ। इन परीक्षणों ने मणिभ के अंदर परमाणुओं के क्रम पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। लोह, ताम्र, वंग जैसी धातुओं की चमकीली सतहों से प्राप्त इलेक्ट्रान-विवर्तन-आकृतियों के अध्ययन से यह महत्वपूर्ण तथ्य निकलता है कि इनके पृष्ठ पर अमणिभ धातु या उनके आक्साइड की महीन तह होती है। इलेक्ट्रान विवर्तन वृत्तों का अत्यंत धुधँलापन यह प्रकट करता है कि वे परावर्तन द्वारा ऐसे पृष्ठ से प्राप्त हुए हैं जो अमणिभ या लगभग अमणिभ था। इलेक्ट्रान विवतन-विधि बहुत से गैसीय अवस्था में रहनेवाले पदार्थो के अध्ययन में भी बहुत लाभप्रद हुई है। इसमें जो रीति अपनाई गई है वह इस प्रकार है: गैस अथवा वाष्प को प्रधार (जेट) के रूप में इलेक्ट्रान किरणावालि के मार्ग में छोड़ा जाता है, जिसमें इलेक्ट्रान उससे टकराने के बाद ही फोटो पट्टिका पर गिरें। इस पट्टिका पर इलेक्ट्रानों का वैसा ही प्रभाव पड़ता है जैसा प्रकाश का। इन पदार्थो की विशेष विवर्तन आकृतियों फोटो पट्टिका पर कुछ ही सेकेंडों में अंकित हो जाती हैं, जबकि एक्स-किरणों को बहुधा कई घंटों की आवश्यकता पड़ती है। विवर्तन आकृतियों से कार्बन-क्लोरीन के बंधन में परमाणुओं के बीच की दूरी १.७६´१०-८ सें.मी. के बराबर निकली है। यह मान उस मान के पर्याप्त अनुकूल है जो अधिकांश संतृप्त कार्बनिक क्लोराइडों में कार्बन-क्लोरीन के बंधन में देखा गया है।

व्यावहरिक प्रयोग-इलेक्ट्रान विवर्तन की क्रिया का प्रयोग पदार्थों के, विशेष कर महीन झिल्लिकाओं एवं जटिल अणुओं के, अतिरिक्त ढाँचे के अध्ययन में किया जाता है। इसका प्रयोग चर्बी, तेल, ग्रैफ़ाइट आदि द्वारा घर्षण कम करने की जाँच में किया गया है। संक्षारण, विद्युल्लेपन, संधान (वेल्डिंग) आदि क्षेत्रों में यह अत्यंत महत्पूर्ण हो गया है। इन विभिन्न उपयोगों के कारण इलेक्ट्रान-विवर्तन-उपकरण आधुनिक इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी के साथ अधिकतर जोड़ दिए जाते हैं।

सं.ग्रं.-जी.पी. टामसन और डब्ल्यु.काकरेन: थ्योरी ऐंड प्रैक्टिस ऑव इलेक्ट्रान डिफ़ैक्शन, १९३९; आर. बीचिंग: इलेक्ट्रान डिफ्रैक्शन, १९५०; जी. पिंस्कर: इलेक्ट्रान डिफ़्रैक्शन, १९५३; जे.बी.राजम: ऐटोमिक फिज़िक्स, १९५८। (दा.वि.गो.)