इमर्सन, राल्फ वाल्डो प्रसिद्ध निबंधकार, वक्ता तथा कवि इमर्सन (१८०३-१८८२) को अमरीकी नवजागरण का प्रवर्तक माना जाता है। आपने मेलविन, ह्विटमैन तथा हाथार्न जैसे अनेक लेखकों ओर विचारकों को प्रभावित किया। लोकोत्तरवाद के, जो एक सहृदय, धार्मिक, दार्शनिक एचं नैतिक आंदोलन था, आप नेता थे। आप व्यक्ति की अनंतता, अर्थात् दैवी कृपा के जाग्रत उसकी आध्यात्मिक व्यापकता के पक्ष के पोषक थे। आपकी दार्शनिकता के मुख्य आधार पहले प्लैटो, प्लोटाइनस, बर्कले फिर वर्डस्वर्थ, कोलरिज, गेटे, कार्लाइल, हर्डर, स्वेडनबोर्ग और अंत में चीन, ईरान ओर भारत के लेखक थे।
१८२६ में आप बोस्टन में पादरी नियुक्त हुए जहाँ आपने ऐसे धर्मोपदेश दिए जिनसे निबंधकार के आपके भावी जीवन का पूर्वाभास मिलता है। १८३२ में आपने इस कार्य से त्यागपत्र दे दिया, कुछ तो इस कारण कि आप बहुसंख्यक जनता तक अपने विचार पहुँचाना चाहते थे और कुछ इसलिए कि उस गिरजे में कुछ ऐसी पूजाविधियाँ प्रचलित थीं जिन्हें आप प्रगतिवादी, उदार ईसाइयत के विरुद्ध समझते थे। इसके उपरांत वर्ड्स्वर्थ, क़ोलरिज तथा कार्लाइल के मिलने ओर लंदन देखने की इच्छा से आपने यूरोप की यात्रा की। वापस आकर बहुत दिनों तक आपने सार्वजानिक वक्ता का जीवन व्यतीत किया।
१८३४ में आप कंकार्ड में बस गए जो आपके कारण साहित्यप्रेमियों के लिए तीर्थस्थान बन गया है। अपनी पहली पुस्तक 'नेचर' (१८३६) में आपने थोथी ईसाइयत तथा अमरीकी भौतिकवाद की कड़ी आलोचना की। इसमें उन सभी विचारों के अंकुर वर्तमान हैं जिनका विकास आगे चलकर आपके निबंधों और व्याख्यानों में हुआ। पुस्तक के अंतिम अध्याय में आपने मानव के उस उज्वल भविष्य की ओर इंगित किया है जब उसकी अंतर्हित महत्ता धरती को स्वर्ग बना देगी। १८३७ में आपने हार्वर्ड विश्वविद्यालय की 'फ़ाई-बीटा-काप्पा' सोसाइटीके समक्ष 'अमेरिकन स्कॉलर' नामक व्याख्यान दिया जिसमें आपने साहित्य में अनुकरण की प्रवृत्ति का विरोध किया और इंग्लैंड की साहित्यिक दासता के विरुद्ध अमरीकी साहित्य के स्वतंत्र अस्तित्व की घोषणा की। आपने बताया कि साहित्यिक व्यक्ति का प्रशिक्षण मूलत: प्रकृति के अध्ययन पर आधारित होना चाहिए तथा उसके उपरांत जीवनसंघर्ष में भाग लेकर अनुभव द्वारा उसे परिपक्व बनाना चाहिए। १८३८ में दिए गए 'डिविनिटी स्कूल ऐड्रेस' के नवीन धार्मिक दृष्टिकोण ने हार्वर्ड में एक आंदोलन खड़ा कर दिया। इस व्याख्यान में आपने निर्भीकतापूर्वक रूढ़िवादी ईसाई धर्म तथा उसमें प्रतिपादित ईसा के ईश्वरत्व की कड़ी आलोचना की। इसमें आपने अपने उस अध्यात्मदर्शन का सार भी प्रस्तुत किया जिसकी विस्तृत व्याख्या 'नेचर' में पहले ही हो चुकी थी।
यद्यपि कुछ कट्टपंथियों ने आपका विरोध किया, फिर भी आपके श्रोताओं की संख्या निरंतर बढ़ती रही और शीघ्र ही आप कुशल व्याख्याता के रूप में प्रसिद्ध हो गए। लागातार ३० वर्ष तक कंकार्ड ही आपके कार्य का प्रधान केंद्र रहा। वहीं आपका परिचय हाथार्न और थोरो से हुआ। कुछ काल तक आपने वहाँ की प्रगतिवादी पत्रिका 'द डायल' का संपादन भी किया। इसके उपरांत आपकी निम्नलिखित पुस्तकें प्रकाशित हुई:
'एसेज़, फर्स्ट सीरीज़' (१८४१), 'एसेज़, सेकंड सीरीज़' (१८४४), 'पोएम्स' (१८४७), 'नेचर, ऐड्रसेज़ ऐंड लेक्चर्ज़' (१८४९), 'रिप्रेज़ेटेटिव मेन' (१८५०), इंग्लिश ट्रेट्स' (१८५६), 'दि कांडक्ट ऑव लाइफ़' (१८६०), 'सोसाइटी ऐंड सोलिटयूड' (१८७०) तथा अंग्रेजी ओर अमरीकी कविताओं का संग्रह 'पर्नासस' (१८७४)। 'लेटर्स ऐंड सोशल एम्स' के संपादन में आपने जेम्स इलियट केबट की सहायता ली। आपकी मृत्यु के उपरांत 'लेक्चर्स ऐंड बायोग्रैफ़िकल स्केचेज़', मिसलेनीज़' और 'नैचुरल हिस्ट्री ऑव द इंटलेक्ट' का प्रकाशन भी केबट की देखरेख में ही हुआ।
१८५७ में प्रकाशित आपकी 'ब्रह्म' नामक कविता भारतीय पाठकों के लिए विशेष महत्व रखती है। इसमें तथा अन्य रचनाओं में आपके गीता, उपनिषद् एवं पूर्वी देशों के अन्य धर्मग्रंथों के अध्ययन की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। परंतु आपका जीवनदर्शन शृंखलित नहीं है, वरन् वह आत्मानुभूत सत्यों का एक वैयक्तिक स्वप्न सा है जिसे पूर्व के श्रेष्ठतम ज्ञान के और भी दृढ़ कर दिया है। इमर्सन के विचारों का केंद्रबिंदु तथा आधार उन्हीं का गढ़ा हुआ शब्द 'ओवरसोल' है। 'ओवरसोल' विश्वव्यापी तथ्य है और केवल 'एक' है, यह सारा संसार उसी 'एक' का अंशमात्र है। इसी को आगे चलकर आपने 'चराचर की आत्मा', मौन चेतना' तथा ऐसा 'विश्वसौंदर्य' बताया है जिससे जगत् का प्रत्येक अणु परमाणु समान रूप से संबंधित है। वह विश्वात्मा न केवल आत्मनिर्भर तथा पूर्ण है, अपितु स्वयं ही चाक्षुष कृत्य, दृश्य तथा दृश्यमान है। इन विचारों का गीता तथा उपनिषदों के विचारों के साथ सादृश्य स्पष्ट ही हैं।
(प्र.कु.स.)