इंग्लैंड ग्रेट ब्रिटेन नामक टापू का दक्षिणी भाग है। (क्षेत्रफल ५०,३३१ वर्ग मील, जनसंख्या १९६१ ई. में ४,३४,६०,५२५ हैं। यह दक्षिण में ४९° ५७' ३०¢¢ उ.अ. (लिजार्ड प्वाइंट) से उत्तर में ५५° ४६¢ उ.अ. (ट्वीिड के मुहाने) तक तथा पूर्व में १° ४६¢ पू.दे. (लोवेस्टाफ) से पश्चिम में ५° ४३¢ प.दे. (लैंड्स एंड) तक फैला हुआ है।
भूविज्ञान-इंग्लैंड के धरातल की संरचना का इतिहास बड़ी ही उलझन का है। यहाँ मध्यनूतन (मायोसीन) युग को छोड़कर प्रत्येक युग की चट्टानें मिलती हैं जिनसे स्पष्ट है कि इस भाग ने बड़े भूवैज्ञानिक उथल पुथल देखें हैं। आयरलैंड का ग्रेट ब्रिटेन से अलग होना अपेक्षाकृत नवीन घटना है। इग्लैंड का डोवर जलडमरूमध्य द्वारा महाद्वीप से अलग होना और भी नई बात है, जो मानव-जीवन-काल में घटित कही जाती है।
धरातल की विभिन्नता के विचार से इंग्लैंड को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है : (१) ऊँचे पठारी भाग, (२) मैदानीं भाग। ऊँचे पठारी भाग इंग्लैंड के उत्तर पश्चिमी भाग में मिलते हैं, जो प्राचीन चट्टानों द्वारा निर्मित हैं। हिमयुग में हिम से ढके रहने के फलस्वरूप यहाँ के पठार घिसकर चिकने हो गए हैं। दूसरी ओर मैदानी भाग नर्म चट्टानों, बलुआ पत्थर, चूना पत्भूर तथा चिकनी मिट्टी (क्ले) के बने हैं। चूना पत्थर के नीचे गोलाकार पहाड़ियाँ निर्मित हो गई हैं, खड़िया (चाक) के पर्वतीय ढाल। नीचे के मैदानी भाग प्राय: 'क्ले' मिट्टी के बने हैं।
जलवायु-इंग्लैंड उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय प्रदेश के समशीतोष्ण एवं आर्द्र जलीवयु के क्षेत्र में पड़ता है। इस का वार्षिक औसत ताप ५०° फा. है, जो क्रमश: दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर घटता जाता है। शीतकाल में इंग्लैंड के सभी भागों का औसत ताप ४०° फा. से ऊपर रहता है, पश्चिम से पूर्व की ओर घटता जाता है। पश्चिमी भाग गल्फस्ट्रीम नामक गर्म जलधारा के प्रभाव से प्रत्येक ऋतु में पूर्वी भाग की अपेक्षा अधिक गर्म रहता है। वर्षा उत्तर पश्चिमी भागों तथा ऊँचे पठारों पर ३०¢¢ से ६०¢¢ तथा पूर्वी मैदानी भागों में ३०¢¢ से भी कम होती है। लंदन की औसत वार्षिक वर्षा २५.१¢¢ है। वर्ष भर पछुवाँ हवा की पेटी में पड़ने के साथ कारण वर्षा बारहों मास होती है। आकाश साधारणतया बादलों से छाया रहता है, जाड़े में बहुधा कुहरा पड़ता है तथा कभी-कभी बर्फ भी पड़ती है।
भौगोलिक दृष्टि से इंग्लैंड को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है : (१) उत्तरी इंग्लैंड, (२) मध्य के देश (३) दक्षिण पूर्वी इंग्लैंड।
उत्तरी
इंग्लैंड-पेनाइन
तथा उसके आस पास
के नीचे मैदान
इस प्रदेश में सम्मिलित
हैं। पेनाइन कटा
फटा पठार है
जो समुद्र के धरातल
से २,००० से ३,००० फुट तक
ऊँचा है। यह पठार
इंग्लैंड के उत्तरी
भाग के मध्य में
रीढ़ की भाँति
उत्तर से दक्षिण १५०
मील लंबाई तथा
५० मील की चौड़ाई
में फैला हुआ
है। यह पठारी
क्रम कार्बनप्रद
(कार्बोनिफेरस)
युग में चट्टानों
के मुड़ने से निर्मित
हुआ, परंतु इसकी
ऊपरी चट्टानें
कटकर बह गई
हैं, जिसके फलस्वरूप
कोयले की तहें
भी जाती रहीं।
अब कोयले की
खदानें इसके पूर्वी
तथा पश्चिमी सिरों
पर ही मिलती
हैं। कृषि एवं पशुपालन
के विचार से
यह भाग अधिक उपयोगी
नहीं है।
पेनाइन के पूर्व नार्थंबरलैंड तथा डरहम की कोयले की खदानें हैं। यहाँ दो प्रकार की खदानें पाई जाती हैं : (१) प्रकट (छिछली) खदानें तथा (२) (अप्रकट (गहरी) खदानें। प्रथम प्रकार की खदानें दक्षिण में टाइन नदी के मुहाने से उत्तर में कॉक्वेट नदी के मुहाने तक पेनाइन तथा समुद्रतट के बीच फैली हुई हैं। अप्रकट खदानें दक्षिण की ओर चूने के पत्थर के नीचे मिलती हैं। टीज़ नदी के निचले भाग में नमक की भी खदानें हैं। उसके दक्षिण लोहा प्राप्त होता है।
अत: इन प्रदेशों में लोहे तथा रासायनिक वस्तुओं के निर्माण के बहुत से कारखाने बन गए हैं। यहाँ के बने लोहे एवं इस्पात के अधिकांश की खपत यहाँ के पोतनिर्माण (शिप बिल्डिंग) उद्योग में हो जाती है। टाइन तथा वियन नदियों की घाटियाँ पोतनिर्माण के लिए जगत्प्रसिद्ध हैं। टाइन के दोनों किनारों पर न्यू कैसिल से १४ मील की दूरी तक लगातार पोत-निर्माण-प्रांगण (शिप बिल्डिंग यार्ड) हैं। न्यू कैसिल यहाँ का मुख्य नगर है। पोतनिर्माण के अतिरिक्त यहाँ पर काँच, कागज, चीनी तथा अनेक रासायनिक वस्तुओं के कारखाने हैं।
उपर्युक्त प्रदेश के दक्षिण में इंग्लैंड की सबसे बड़ी कोयले की खदानें यार्क, डरबी एवं नाटिंघम की खदानें हैं। ये उत्तर में आयर नदी की घाटी से दक्षिण में ट्रेंट की घाटी तक ७० मील की लंबाई में तथा १० से २० मील की चौड़ाई में फैली हुई हैं। इस प्रदेश के निकट ही, लिंकन तथा समीपवर्ती भागों में, लोहा भी निकलता है। अत: यहाँ के कोयले के व्यवसाय पर आश्रित तीन व्यावसायिक प्रदेश हैं : (१) कोयले की खदानों के उत्तर में पश्चिमी रेडिंग के ऊनी वस्त्रोद्योग के क्षेत्र, (२) मध्य में लोहे तथा इस्पात के प्रदेश तथा (३) डरबी और नाटिंघम प्रदेश के विभिन्न व्यवसायवाले प्रदेश। ऊनी वस्त्रोद्योग मुख्यतया आयर नदी की घाटी में विकसित हैं। लीड्स (जनसंख्या १९७१ में ४,९४,९७१) यहाँ का मुख्य नगर है जो सिले हुए कपड़ों का मुख्य केंद्र है। डफर्ड इस क्षेत्र का दूसरा महत्वपूर्ण नगर है। हैलीफैक्स कालीन बुनने का प्रधान केंद्र है। लोहे एवं इस्पात के व्यवसाय शेफील्ड (जनसंख्या १९७१ में ५,१९,७०३) में प्राचीन काल से होते आ रहे हैं। चाकू, कैंची बनाना यहाँ का प्राचीन व्यवसाय है। आज शेफील्ड तथा डानकैस्टर के बीच की डान की घाटी इस्पात का मुख्य प्रदेश बन गई है। यार्क-डरबी एवं नाटिंघम की कोयले की खदानों के दक्षिणी सिरे की ओर विभिन्न प्रकार के व्यवसाय होते हैं जिनमें सूती, ऊनी, रेशमी तथा नकली रेशम का उद्योग मुख्य हैं।
पेनाइन
के पूर्व में उत्तरी
सागर के तट तक
नीचा मैदान
है जिसमें यार्क,
यार्कशायर एवं
लिंकनशायर के
पठार तथा घाटियाँ
भी सम्मिलित हैं।
यार्कशायर घाटी
इंग्लैंड का एक बहुत
उपजाऊ प्रदेश है
जिसमें गेहूँ
की अच्छी खेती होती
है। यार्कशायर
के पठारों एवं
घाटीवाले प्रदेशों
में पशुपालन
तथा खेती होती
है। गेहूँ, जौ
तथा चुकंदर
यहाँ की मुख्य
फसलें हैं। हल इस
प्रदेश का महत्वपूर्ण
नगर तथा इंग्लैंड
का तीसरा बड़ा
बंदरगाह है।
यहाँ के आयात
में दूध, मक्खन, तेलहन,
बाल्टिक सागरी
प्रदेशों से लकड़ी
के लट्ठे और
स्वीडन से लोहा
मुख्य हैं। निर्यात
की जानेवाली
वस्तुओं में ऊनी
वस्त्र और लोहे
तथा इस्पात के सामान
मुख्य हैं। लिंकनशायर
के पठारों पर
भेड़ चराने का
कार्य और घाटी
में खेती तथा
पशुपालन दोनों
होते हैं। चुकंदर
की खेती पर आश्रित
चीनी की कई मिलें
भी यहाँ स्थापित
हो गई हैं। लिंकन
इस प्रदेश का मुख्य
नगर है, जो कृषियंत्रों
के निर्माण का
मुख्य केंद्र है।
दक्षिणी पूर्वी लंकाशायर की कोयले की खदानों पर आश्रित लंकाशायर का विश्वविख्यात वस्त्रोद्योग है। यह व्यवसाय लंकाशायर की सीमा पार कर डरबीशायर, चेशायर तथा यार्कशायर प्रदेशों तक फैला हुआ है। यहाँ पर सूती वस्त्रोद्योग के दो प्रकार के नगर हैं : एक प्रेस्टन, ब्लैकबर्न, एक्रिंग्टन तथा बर्नले जैसे नगर हैं जिनमें अधिकतर कपड़े बुनने का कार्य होता है और दूसरे बोल्टनबरी, राचडेल, ओल्ढम, ऐश्टन, स्टैलीब्रिज, हाइड तथा स्टाकपोर्ट जैसे वे नगर हैं जिनमें सूत कातने का कार्य मुख्य रूप से होता है। सूती वस्त्रोद्योग के प्रधान केंद्र मैंचेस्टर (जनसंख्या १९७१ में ५,४१,४६८) की ये नगर विभिन्न दिशाओं में घेरे हुए हैं। मैंचेस्टर--शिप--कनाल द्वारा लिवरपुल (जनसंख्या १९७१ में ६,०६,८३४) बंदरगाह से संबंधित होने के कारण विदेशों में रुई मँगाकर अन्य नगरों को भेजता है तथा उनके तैयार माल का निर्यात करता है। लंकाशायर के अन्य उद्योगों में कागज, रासायनिक पदार्थ तथा रबर की वस्तुओं का निर्माण मुख्य है।
उत्तरी स्टैफर्डशायर की कोयले की खदानों तथा प्रादेशिक मिट्टी पर आश्रित चीनी मिट्टी के व्यवसाय लांगटन, फेंटन तथा स्टोक में स्थापित हैं। लंकाशायर के निचले मैदान हिमपर्वतों की रगड़ एवं जमाव के कारण बने हुए हैं, अत: वे कृषि की अपेक्षा गोपालन के लिए अधिक उपयुक्त हैं।
मध्य का मैदान-इंग्लैंड के मध्य में एक त्रिभुजाकार नीचा मैदान है जिसकी तीन भुजाओं के समांतर तीन मुख्य नदियाँ, उत्तर में ट्रेंट, पूर्व में ऐवान तथा पश्चिम में सेवर्न बहती हैं। भौतिक दृष्टि से यह मैदान लाल बलुए पत्थर तथा चिकनी मिट्टी (क्ले) का बना है। भूमि के अधिकतर भाग का यहाँ स्थायी चारागाह के रूप में उपयोग किया जाता है, फलत: गोपालन मुख्य उद्यम है। परंतु यह प्रदेश उद्योग धंधे के लिए अधिक प्रसिद्ध है। मध्यदेशीय कोयले की खदानों, पूर्वी शापशायर, दक्षिणी स्टैफर्डशायर तथा वारविकशायर की खदानों पर आश्रित अनेक उद्योग धंधे इस प्रदेश में होते हैं। दक्षिणी स्टैफर्डशायर की कोयले की खदानों के निकट व्यावसायिक नगरों का एक जाल सा बिछ गया है जिसकी सम्मिलित जनंसख्या ४० लाख से भी अधिक है। इस प्रदेश के मुख्य नगर बरमिंघम की जनंसख्या ही १० लाख से अधिक (१९७१ में १०,१३,३६६) है। कल कारखानों की अधिकता, कोयले के अधिक उपयोग, नगरों के लगातार क्रम तथा खुले स्थलों की न्यूनता के कारण इस प्रदेश को प्राय: 'काला प्रदेश' की संज्ञा दी जाती है। प्रारंभ में इस प्रदेश में लोहे का ही कार्य अधिक होता था, परंतु अब यहाँ ताँबा, सीसा, जस्ता, ऐल्यूमीनियम तथा पीतल आदि की भी वस्तुएँ बनने लगी हैं। समुद्रतट से दूर स्थित होने के कारण इस प्रदेश ने उन वस्तुओं के निर्माण में विशेष ध्यान दिया है जिनमें कच्चे माल की अपेक्षा कला की विशेष आवश्यकता पड़ती है, उदाहरणस्वरूप, घड़ियाँ, बंदूकें, सिलाई की मशीनें, वैज्ञानिक यंत्र आदि। मोटरकार के उद्योग के साथ-साथ रबर का उद्योग भी यहाँ स्थापित हो गया है।
अन्य उद्योग धंधों में पशुपालन पर आश्रित चमड़े का उद्योग, बिजली की वस्तुओं का निर्माण और कांच उद्योग मुख्य हैं।
दक्षिण पूर्वी इंग्लैंड-मध्य के मैदान के पूर्व में चूने के पत्थर के पठार तथा फेन का मैदानी भाग है। पठारों पर पशुपालन तथा नदियों की घाटियों में खेती होती है। परंतु विलिंगबरो की लोहे की खदान के कारण यहाँ पर कई नगर बस गए हैं। फेन के मैदान में गेहूँ का उत्पादन मुख्य है, परंतु कुछ समय से यहाँ आलू तथा चुकंदर की खेती विशेष होने लगी है। फेन के दक्षिण 'चाक' प्रदेश में गोपालन मुख्य पेशा है और यह भाग लंदन की दूध की माँग की पूर्ति करनेवाले प्रदेशों में प्रधान है।
पूर्वी ऐंग्लिया इंग्लैंड का मुख्य कृषिप्रधान क्षेत्र है। यहाँ गेहूँ, जौ तथा चुकंदर अधिक उत्पन्न होता है। यहाँ के उद्योग धंधे यहाँ की उत्पन्न वस्तुओं पर आश्रित है। कैंटले तथा ईप्सविक में चुकंदर की चीनी मिलें वारविक में कृषियंत्र तथा शराब बनाने के कारखाने स्थापित हैं।
इस प्रदेश के दक्षिण पश्चिम में टेम्स द्रोणी (बेसिन) है। टेम्स नदी काट्सवोल्ड की पहाड़ियों से निकलकर आक्सफार्ड की घाटी को पार करती हुई समुद्र में गिरती है। यह घाटी 'आक्सफोर्ड क्ले वेल' के नाम से प्रसिद्ध है जहाँ कृषि एवं गोपालन उद्योग अधिक विकसित हैं। विश्वविख्यात प्राचीन आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय इस घाटी के मध्य में स्थित है। आक्सफोर्ड नगर के बाहरी भागों में मोटर निर्माण का कार्य होता है। लंदन की महत्ता के कारण निचली आक्सफोर्ड द्रोणी को लंदन द्रोणी नाम दिया गया है। लंदन के आसपास की भूमि (केंट, सरे तथा ससेक्स) राजधानी की फल तरकारियों तथा दूध आदि की मांग की पूर्ति के लिए अधिक प्रयुक्त होती है। लंदन नगर कदाचित् रोमनकाल में टेम्स नदी के किनारे उस स्थल पर बसाया गया था जहाँ नदी सरलापर्वूक पार की जा सकती थी। बाद में उस स्थल पर पुल बन जाने से नगर का विकास होता गया। आज लंदन संसार के सबसे बड़े नगरों (१९७१ ई. में जनसंख्या ७३,७९,०१४) में है। इसकी उन्नति के मुख्य कारण हैं टेम्स में ज्वार के साथ बड़े-बड़े जलयानों का नगर के भीतरी भाग तक प्रवेश करने की सुविधा, रेल एवं सड़कों का जाल, यूरोपीय महाद्वीप के संमुख टेम्स के मुहाने की स्थिति, जिससे व्यापार में अत्यधिक सुविधा होती है, लंदन का अधिक काल तक देश एवं साम्राज्य की राजधानी बना रहा तथा अनेक व्यवसायों और रोजगारों का यहाँ खुलना।
लंदन द्रोणी के समान ही हैंपशायर द्रोणी है जिसमें साउथैंपटन तथा पोर्ट्स्माउथ नगर स्थित हैं। पहला यात्रियों का महत्वपूर्ण बंदरगाह तथा दूसरा नौसेना का मुख्य केंद्र है।
इंग्लैंड के दक्षिण पूर्व में 'आइल ऑव वाइट' नाम का एक छोटा सा द्वीप है (क्षेत्रफल १४७ वर्ग मी)। गर्मी की ऋतु में यहाँ पर लोग स्वास्थ्यलाभ और मनोरंजन के लिए आते हैं।
इंग्लैंड का मानचित्र
इंग्लैंड का धमर्-द्र. 'ऐंग्लिकन समुदाय'। (उ.सिं.)
इंग्लैंड का इतिहास पूर्वरोमनकालीन ब्रिटेन-सभ्यता के एक स्तर तक पहुँचे हुए इंग्लैंड के प्राचीनतम निवासी केल्टिक जाति के थे जिनमें पश्चात् के देशांतरवासी ब्रायथन या ब्रिट्न कहलाए, जिससे 'ब्रिटेन' संज्ञा निकली। केल्टिक अथवा उसके पूर्वी की जातियों के आगमन के कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलते। आयरलैंड की द्वीप में, जो पहले आइरन और स्कोशिया नाम से विदित था, एक और जाति के लोग, स्कॉट्स थे। ये पाँचवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कैलेडोनिया अथवा उत्तरी ब्रिटेन अपने जातीय नियम, हस्तशिल्प, धातुशस्त्रास्त्र, कृषि, युद्धकला तथा धर्म (ड्र्यूडवाद) से परिचित थे। गाल प्रदेश के केल्टी स्वजातियों से तथा ग्रीक से इनके व्यापारिक ║╔╞±╔╞v╔ थे। ३३० ई.पू. के आसपास पैथियास तथा, दो शताब्दी उपरांत, पोसीदोनियस व्यापारोद्देश्य से निकले ग्रीक व्यक्तियों में से थे।
रोमन क्षेत्र-५५ ई.पू. में रोमन सेनानी जूलियस सीज़र आक्रमणों ने ब्रिटेन को अशांत कर दिया। ४३ ई.पू. में सम्राट् क्लादियस के शासन में ब्रिटेन पर विजय की नियमित योजना बनाई गई तथा आगामी ४० वर्षों में स्केपुला, पालिनियस और अग्रीकोला इत्यादि रोमन क्षेत्रपों के अंतर्गत उसे पूरा किया गया। ब्रिटेन का बृहत् क्षेत्र ४१० ई. तक रोमन प्रांत रहा तथा इस युग में इस प्रदेश की दीक्षा रोमन संस्कृति में हुई। सड़कों का निर्माण हुआ। उनसे संबंधित नगरों का उदय हुआ। रोमन विधिसंहिता वहाँ प्रचलित हुई। खानों की खुदाई शुरु हुई। नियम और व्यवस्था लाई गई। ब्रिटेन को अनाज का निर्यातप्रधान देश बनाने के लिए कृषि को महत्व मिला और लंदीनियम (आधुनिक लंदन) प्रमुख व्यापारिक नगर बन गया। रोमन साम्राज्य में, ईसाई सभ्यता के प्रसार के कारण, ब्रिटेन में भी उसके प्रचारार्थ चौथी शताब्दी के प्रारंभ में एक मार्ग ढूँंढ़ा गया और कुछ कालोपरांत इसका पौधा वहाँ भी लग गया। ब्रिटेन में रोमन सभ्यता फिर भी कृत्रिम और बाह्य ही रही। जनता उससे प्रभावित न हो सकी। उसके अवशेष विशेषत: वास्तु से ही संबंधित रहे। पाँचवीं शताब्दी के आरंभ में रोम को विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध घर में संघर्ष करना पड़ा और ४१० ई. में अपनी सेना इंग्लैंड से खींच लेनी पड़ी।
इंग्लिश विजय-रोमनों के चले जाने पर ब्रिटेन कुछ समय के लिए बर्बर आक्रमणों का लक्ष्य बना। उत्तर से पिक्ट, पश्चिम से स्काट तथा पूर्व से समुद्री लुटेरे सैक्सन और जूट आए। सैक्सन त्यूतन जाति के थे जिसमें ऐंगल, जूट और शुद्ध सैक्सन भी सम्मिलित थे। ब्रिटेन ने जूटों की सहायता माँगी। जूटों ने ४४९ ई. में ब्रिटेन में प्रवेश कर, पिक्टों को परास्त कर, केंट प्रदेश में अपनी सत्ता स्थापित की। इसके उपरांत सैक्सन जत्थों ने ब्रिट्नों को जीत ससेक्स, वेसेक्स और एसेक्स के प्रदेश में प्रभुत्व स्थापित कर लिया। अंत में ऐंग्लों ने उत्तर और मध्य से देश पर आक्रमण किया और ऐंग्लीय व्यवस्था स्थापित की। ये तीनों विजेता जातियाँ सामान्यत: इंग्लिश नाम से प्रसिद्ध हुईं। ऐंग्लोसैक्स विजय की यह प्रक्रिया लगभग १५० वर्षों तक चली जिसमें अधिकांश ब्रिट्नों का दमन हुआ और एक नई सभ्यता आरोपित हुई।
ऐंग्लोसैक्सन विजयोपरांत सात राज्यों का सप्तशासन केंद्र, ससेक्स, वेसेक्स, एसेक्स, नार्थंब्रिया, पूर्वीय ऐंग्लिया और मर्सिया पर स्थापित हुआ। ये राज्य सतत पारस्परिक युद्धों में निरत रहे और तीन राज्य (मर्सिया, नार्थंब्रिया तथा वेसेक्स) अपनी विजयों के कारण अधिक शक्तिशाली हुए। अंत में वेसेक्स ने सर्वोपरि शक्ति अर्जित की। सप्तशासन के प्रमुख राजाओं में केंट के एथेलबर्ट, नार्थंब्रिया के एडविन, मर्सिया के पेडा तथा वेसेक्स के इतनी प्रसिद्ध हैं। यही वह समय है जब ओगस्तीन के प्रयास से (५९७ ई.) इंग्लैंड ने ईसाई धर्म की दीक्षा ली और ओगस्तीन कैंटरबरी के प्रथम आर्चबिशप नियुक्त हुए। केंट, नार्थंब्रिया और मर्सिया ने क्रम से नया धर्म अंगीकार किया। उधार सेंत पात्रिक तथा सेंत कोलंबा क्रमश: आयरलैंड और स्काटलैंड में समान कार्य में निरत थे। इंग्लैंड के इस धर्मपरिवर्तन ने राष्ट्रीय एकत का मार्ग प्रशस्त किया।
वेसेक्स का उत्कर्ष-प्राचीन १५ सैक्सन राजाओं की पंक्ति का प्रारंभ एग्बर्ट (८०२-३९) से तथा अंत लौहपुरुष एडमंड (१०१७) के शासन से होता है। इन दो शताब्दियों में नार्थमैनों अथवा डेनों के आक्रमण हुए और इसकी पराकाष्ठा अलफ्रेड महन् के शासन (८७१-९०१) में हुई जिसने ८७८ ई. में एथेनडन के युद्ध क्षेत्र में इनको परास्त किया। अलफ्रेड का शासन युद्ध और शांति की सफलताओं से उल्लेखनीय है। उसने वेसेक्स को व्यवस्थित किया, सैनिक सुधार किए, जलसेना स्थापित की, नियमों में संशोधन किए और ज्ञान प्रोत्साहन दिया। ऐंग्लोसैक्सन वृतांत का संग्रह इसी के शासन में हुआ। इस युग का एक और प्रसिद्ध व्यक्ति, कैंटरबरी का आर्चबिशप, टंस्टेन हुआ, जो अल्फ्रडे के उत्तराधिकारियों की छत्रछाया में राष्ट्रनायक और धर्मसुधारक के रूप में विख्यात हुआ। सैक्सन राजकुल लगभग चौथाई शताब्दी के लिए एथेलरेड की अदूरदर्शी नीति के कारण सत्ताहीन कर दिया गया। अंतत: डेन अपना निरंकुश राजतंत्र कैन्यूट की अध्यक्षता में स्थापित करने में १०१७ ई. में सफल हुए।
डेन व्यवस्था तथा सैक्सन पुनरावृत्ति-१०१७ से १०४२ ई. तक इंग्लैंड तीन डेन राजाओं द्वारा शासित हुआ। कैन्यूट, जिसने १८ वर्ष शासन किया, इंग्लैंड, डेनमार्क तथा नार्वे का राजा था। शासन का प्रारंभ बर्बरता से कर, उसने इंग्लैंड में नियमव्यवस्था पुन: स्थापित की, डेनों और स्थानीय जनता को समदृष्टि से देखा और रोम की तीर्थयात्रा की, जहाँ उसने इंग्लिश यात्रियों को सुविधाएं दिलाईं। उसके अयोग्य पुत्रों के शासन में डेन साम्राज्य का अंत हो गया।
एडवर्ड (दोषस्वीकारक) के व्यक्तित्व में वेसेक्स का पुनरुद्धार हुआ। एडवर्ड विदेशी प्रभावों का दास हो गया था। वेसेक्स के अर्ल गाडविन के नेतृत्व में इस प्रभाव के विरुद्ध एक राष्ट्रीय आंदोलन हुआ। एडवर्ड का शासन (१०४२-६६) उसी आंदोलन या संघर्ष के लिए प्रसिद्ध है। उसकी मृत्यु पर गाडविन का पुत्र हैरोल्ड शासक चुना गया, किंतु गद्दी का दावेदार नार्मंडी का ड्यूक विलियम हो गया था जो १०६६ ई. में हेस्टिंग्ज़ के युद्धक्षेत्र में इंग्लैंड पर आक्रमण करने के उपरांत, हैरोल्ड को उखाड़ फेंक चुका था। सैक्सन राज्यतंत्र समाप्त हुआ और विलियम इंग्लिश सिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
नार्मन पुनर्निर्माण-विलियम प्रथम (विजेता) का शासनकाल (१०६६-८७) पुनर्निर्माण तथा व्यवस्थानिरत था। उसने अपनी स्थिति नई सांमतनीति से इंग्लिश और नार्मन प्रजा के समान रीति से दबाकर तथा धार्मिक सुधारों से सुदृढ़ कर ली। लेने फ्रैंक की पोपविरोधी सहायता से उसने अपनी स्वाधीनता स्थापित की। भूमि का लेखा, डूम्स्डे बुक, तैयार किया। उसके पुत्र विलियम द्वितीय (रूफ़स) का शासन (१०८७-११००) शठता और दुर्व्यवस्था का परिचायक है। उसके शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ हैं, कैंटरबरी के ऊपर राजा और एन्सेम का संघर्ष तथा प्रथम धर्मयुद्ध (क्रूसेड) जिसमें उसका भाई रूबर्ट युद्धसंचालन के लिए नार्मंडी को गिरवी रखकर सम्मिलित हुआ था। ११०० ई. में विजेता का सबसे छोटा बेटा हेनरी प्रथम (११००-११३५) गद्दी पर बैठा और ११०६ ई. में नार्मंडी को, रूबर्ट को हराकर पुन: प्राप्त किया। उसके प्रशासकीय सुधार, जिनमें कुरिया रेजिस या राजा द्वारा न्यायालय की स्थापना भी सम्मिलित है, उसे 'न्याय का सिंह' की पदवी दिलाने में सहायक हुए। हेनरी की पुत्री मैटिल्डा का वैवाहिक संबंध आँजू के काउंट ज्यफ्रोी प्लैंटेजनेट के साथ हो जाने के कारण प्लैंटेजनेट वंश की स्थापना हुई। आगामी वर्षों में स्टिफ़ेन (११३५-११५४) के शासन में मैटिल्डा के नेतृत्व में एक उत्तराधिकार का युद्ध चलता रहा जब तक यह निर्णय नहीं हो गया कि स्टिफ़ेन के उपरांत मैटिल्डा का पुत्र नवयुवक हेनरी गद्दी का अधिकारी होगा। नार्मन राजाओं ने इंग्लैंड की राज्यशक्ति को केंद्रित किया, सामंतवादी व्यवस्था का स्वरूप परिवर्तित कर उसे नई सामाजिक व्यवस्था तथा नूतन राजनीतिक एकता दी।
प्लैंटेजनेट शासक-हेनरी द्वितीय का शासन (११५४-८९) इंग्लिश इतिहास में घोर गर्भस्थिति में था। इसके शासन की विशेषताओं में प्रधान थीं इंग्लैंड और स्काटलैंड के संबंधों में सामीप्य, राजकीय व्यवस्था का एक्सचेकर और न्याय पर आधारित दृढ़ीकरण, क्यूरिया रेजिस का उदय, सामान्य इंग्लिश नियम का आविर्भाव तथा स्वायत्त शासन एवं ज्ञान की परंपराओं का विकास हुआ। उसके क्लैंरेंडन विधान (११६४) ने राजा और चर्च के संबंधों का निर्धारण किया। हेनरी तथा कैंटरबरी के आर्चबिशप टामस बेकेट में चर्चनीति पर परस्पर संघर्ष तथा बेकेट के वध ने इस चर्चनीति को असफल कर दिया और चर्च विरुद्ध राजा का पक्ष क्षतिग्रस्त हो गया। हेनरी का पुत्र रिचर्ड, जिसका शासन (११९९-१२१६) तृतीय धर्मयुद्ध के संचालन तथा सलादीन के विरुद्ध फिलिस्तीन की उसकी विजयों के लिए प्रसिद्ध है, सदैव ही अनुपस्थित शासक रहा। उसका शासनकाल राबिनहुड के कार्यों से संबंधित है। उसकी मृत्यु के उपरांत उसका भाई जान गद्दी पर बैठा, जिसका शासन नृशंस अत्याचार तथा विश्वासघात का प्रतीक है। फ्रांस के फिलिप द्वितीय से झगड़कर नार्मंडी तथा उसका सतत अधिकार उसने खो दिया और पोप से झगड़कर उसे घोर लज्जा का सामना करना पड़ा। उसके बैरनों से संघर्ष का अंत इंग्लिश स्वाधीनता की नींव महान् परिपत्र (मैग्नाकार्टा---१२१५) पर हस्ताक्षर के साथ हुआ।
हेनरी तृतीय (१२१६-७२) के दीर्घ शासन को साइमन डी मांटफर्ट के नेतृत्व में बैरनों की अशांति तथा १२५८ की आक्सफोर्ड की धाराओं द्वारा राजा पर लादे गए नियंत्रण का सामना करना पड़ा। इसके उपरांत राजा और साइमन के नेतृत्व में सर्वप्रिय दल के बीच गृहयुद्ध छिड़ा जिसमें हेनरी की हार हुई। यह शासन अंग्रेजी संस्थाओं के विकास के लिए प्रसिद्ध है। १२६५ ई. में मांटफ़ोर्ड ने पार्लियामेंट में नगरों और बरों के प्रतिनिधि आमंत्रित कर हाउस ऑव कामंस का शिलान्यास किया। एडवर्ड प्रथम (१२७२-१३०७) की अध्यक्षता में वेल्स की विजय पूर्ण की गई। इसका शासन, अंग्रेजी कानून, न्याय और सेना में सुधार तथा १२९५ की माडल पार्लामेंट के द्वारा पार्लामेंट को राष्ट्रीय संस्था बना देने के प्रयत्न के लिए महत्वपूर्ण है। अप्रिय तथा शिथिल एडवर्ड द्वितीय (१३०७-२७) की मृत्यु पर उसका पुत्र एडवर्ड तृतीय (१३२७-७७), जिसका शासन घटनापूर्ण था, गद्दी पर बैठा। स्काटलैंड से हुए एक युद्ध के उपरांत इंग्लैंड और फ्रांस के बीच शतवर्षीय युद्ध का सूत्रपात हुआ जो १४५३ ई. तक पाँच अंग्रेज शासकों को विक्षिप्त किए हुए था। उसके शासन की दूसरी घटनाएँ, पार्लामेंट का दो सदनों में विभाजन, १३४८ की 'काली मृत्यु' तथा वीक्लिफ़ के उपदेश आदि हैं। वीक्लिफ़ ने बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद कर सुधार आंदोलन का आभास दे दिया था। रिचर्ड द्वितीय के शासन (१३७७-९९) में कृषक विद्रोह के रूप में सामाजिक क्रांति की प्रथम पीड़ा की अनुभूति इंग्लैंड ने की और अंग्रेजी साहित्य के आरंभयिता चासर ने कैंटरबरी टैल्स लिखी। प्लैंटेजनेट शासन की प्रमुख सफलताएँ पार्लामेंट का विकास, साधारण जनता का विद्रोह, चर्च अधिकार का पतन तथा राष्ट्रीय भावना का उदय है।
लंकास्टर तथा यार्क वंश : गुलाबों का युद्ध-लंकास्टर वंश के तीनों हेनरियों (चतुर्थ से षष्ठ तक) का शासन १३९९ ई. से १४६१ ई. तक आंतरिक दृष्टि से, केवल लोलाडों अथवा वीक्लिफ़ के अनुयायियों के दमन को छोड़, कोई घटनात्मक महत्व नहीं रखता। बाह्य दृष्टि से हेनरी पंचम के शासन में शतवर्षीय युद्ध की पुनरावृर्त्ति, अगिन कोर्ट की १४१५ की विजय, रोगेन का बंदी होना तथा १४२० की ट्रायस की संधि सहायक हुई। हेनरी पष्ट (१४२२-६१) के शासन में शतवर्षीय युद्ध सफलतापूर्वक चलता रहा, जब तक फ्रांस को कृषककुमारी उस आर्क की जोन के व्यक्तित्व में त्राणकर्ता नहीं मिला, जिसके जोशीले नेतृत्व के सामने अंग्रेज हतप्रभ हो गए और १४५३ इ. में एक कैले को छोड़ अपने सारे फ्ऱेंच प्रदेश गँवा बैठे। किंतु इस शासन में गृहयुद्ध--गुलाबों का युद्ध (१४५५-१४८५)-हुआ जो शासन सत्ता के हस्तांतरण के लिए लंकास्टर तथा यार्कवंश में लड़ा गया। पक्षों का नेतृत्व क्रमश: हेनरी षष्ठ तथा रिचर्ड ने किया। अंतिम विजयों ने राजमुकुट यार्क वंश के एडवर्ड को दिया जिसने संसद् की स्वीकृति से १४६१ ई. में एडवर्ड चतुर्थ के नाम से राज्यारोहण किया। १४८५ ई. में यार्कवंशीय सामंत रिशमांड के अर्ल हेनरी ने वासवर्थ के युद्ध में रिचर्ड को परास्त कर हेनरी सप्तम के नाम से, यार्कवंशीय राजकुमारी एलिजाबेथ का ब्याह, इंग्लैंड को राजमुकुट ले ट्यूडरवंश की स्थापना की।
लंकास्टर युग की कुछ युगांतरकारी घटनाएँ थीं : संसदीय शक्तियों का विकास, लोकसभा की स्वातंत्र्य विजय, गुलाबों के युद्धों के सामंती घरानों के विध्वंस के साथ राष्ट्रीय भावना को प्रोत्साहन तथा राजसत्ता की वृद्धि, पोप के अधिकारों का क्रमिक ्ह्रास और कैक्सटन के छापेखाने के आविष्कार से जनित साहित्य में बढ़ती हुई अनुरक्ति।
ट्यूडर युग-यद्यपि ट्यूडर युग का आविर्भाव मध्ययुग का अंत और आधुनिक युग का आरंभ है, फिर भी कई दृष्टियों से मध्ययुगीन प्रवृत्तियों के विस्तार को ही सिद्ध करता है। साथ ही यह अंग्रेजी इतिहास के महान् परिवर्तनों एवं रचनाओं का युग था, जब इंग्लैंड ने वह स्थिति ग्रहण की जो आगामी इतिहास में पूर्ववत् बनी रही। नए ज्ञान, भौगोलिक खोजों, आविष्कारों, नूतन राष्ट्रवाद, सुधार आंदोलन तथा सामाजिक शक्तियों ने इंग्लैंड के स्वरूप में पूर्णत: परिवर्तन कर दिया। हेनरी सप्तम (१४८५-१५०९) नूतन राजतंत्र तथा छलपूर्ण निरंकुशता का विधाता था१ यह राजशक्ति किसी औपचारिक वैधानिक परिवर्तन के कारण नहीं, जनता के विश्वास, समय की आवश्यकताओं तथा राजाओं की दूरदर्शिता के परिणामस्वरूप पैदा हुई। ट्यूडर शासकों ने सामंवादी सत्ता को दबाया तथा सार्वजनकि स्वीकृति पर आधारित सामंतसत्ता के भग्नावशेष पर दृढ़ राजतंत्र स्थापित किया। ट्यूडर शासकों ने एक सहायक संसद् के सहयोग से, जो राजेच्छा का साधन बन गई थी, शासन किया। किंतु संसद का अधिकार सिद्धांतत: भी समाप्त नहीं किया गया; वरन् संसद के कार्यों को प्रोत्साहन दिया गया जिसके फलस्वरूप युग के अंत तक संसदीय शक्तियों की वृद्धि हुई। राजाओं की लिप्सा ने उन्हें आर्थिक दृष्टि से स्वाधीन कर दिया था।
धार्मिक व्यवस्था इन शासकों की महान् सफलता थी। हेनरी अष्टम (१५०९-४७) के नेतृत्व में रोम से जो संबंधविच्छेद एक विधानमाला के द्वारा हुआ, वह एडवर्ड षष्ठ के शासन में (१५४७-५३) भी चला। यद्यपि कुछ समय के लिए मेरी ट्यूडर के शासन में (१५५३-५८) वह व्यवस्था भंग हुई थी, फिर भी एलिजाबेथ प्रथम (१५५८-१६०३) के शासन में उसकी पूर्णता की ओर प्रगति हुई और ऐंग्लिकन धर्मव्यवस्थाओं की स्थापना हुई। ट्यूडर शासकों की वैदेशिक नीति, केवल एलिजाबेथ के युग को छोड़, जब शासक को प्रतिरोध आंदोलन के अनुयायियों के विरुद्ध संघर्ष तथा मेरी स्टुअर्ट की फांसी के फलस्वरूप स्पेन से युद्ध करना पड़ता था, अधिकतर शांति और इंग्लैंड को सुदृढ़ करने में लगी थी। इस नीति की एक अभिव्यक्ति राजवंशीय विवाहों में हुई। इनके शासकों के दृढ़ शासन में आयरलैंड का विघटन कर स्काटलैंड को पहले वैवाहिक, फिर धार्मिक बंधन में इंग्लैंड से बाँधकर ब्रिटेन की एकता को क्रियात्मक संज्ञा दी गई।
यह युग, जान तथा कैबेट की भौगोलिक खोजोंस, चांसलर, विलगबी, फ्राबिशर, ड्रेक तथा हाकिन्स के व्यापारिक मार्गस्थापन, छापाखाना, बारूद और कुतुबनुमा के आविष्कार, व्यापारिक कपंनियों की रचना (जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी भी थी) तथा अमरीकी प्रमुख स्थल पर वर्जीनिया ऐसे उपनिवेशों की स्थापना आदि के लिए महत्वपूर्ण है। ब्रिटेन की नाविककला की सर्वोच्चता भी तभी प्रतिष्ठित हुई जिससे वाणिज्य और कृषि का विकास हुआ। व्यापारिक परिवर्तनों के मध्य वर्ग को जन्म दिया जो सामाजिक अधिनिमयन की आवश्यकता का संकेतक सिद्ध हुआ। ट्यूडर शासक एक ऐसे स्वायत्त शासन के रचयिता थे जो १९वीं शताब्दी तक प्रचलित रहा। निर्धनों को नियमित ढंग से लाभान्वित करने का प्रयत्न १६०१ के निर्धन कानून से हुआ। सुख और सभ्यता का भौतिक स्तर भी ऊँचा उठा। नवजागृति को मजबूत आधार मिला और बुद्धि एवं संस्कृति के क्षेत्र में इसका प्रमाण मिला। एलिजाबेथ के शासन में साहित्य को बड़ा प्रोत्साहन मिला। तब नाटकों की परिणति शेक्सपियर तथा मार्लो ने, कविता का विकास स्पेन्सर ने और नूतन गद्य हूकर तथा बेकन ने किया।
प्रारंभिक स्टुअर्ट शासक, गृहयुद्ध, राजतंत्र का पुन: स्थापना तथा क्रांति-१६०३ ई. में जेम्स प्रथम के राज्यारोहण से इंग्लैंड और स्काटलैंड के राजमुकुट एक हो गए तथा इग्लैंड में वैदेशिक स्काट वंश की स्थापना प्रारंभ हुई। ट्यूडर निरंकुश व्यवस्था तथा संसद् से सामंजस्य की आवश्यकता के समाप्त हो जाने से इंग्लैंड की बाह्य और आंतरिक स्थिति में एक नए युग का आविर्भाव हुआ। स्टुअर्ट शासक विकासमान राष्ट्र की शक्तियों से संघर्ष कर बेठे जिसके परिणाम गृहयुद्ध, गणतंत्रीय अनुभव, राजतंत्र का पुन:स्थापन तथा क्रांतिकारी व्यवस्था हुए। राष्ट्र का विकास, राजाओं का चरित्र, स्टुअर्ट शासकों को दैवी अधिकारजन्य राजनीति में रूढ़िवादी आस्था तथा उग्र प्यूरीटनवाद इत्यादि का सामूहिक परिणाम हुआ राजा और संसद् के बीच एक महान् वैधानिक संघर्ष। यह संघर्ष जेम्स प्रथम (१६०३-२५) तथा चार्ल्स प्रथम (१६२५-४९) के शासन की प्रधान घटना है। राजा के विशेषाधिकारों की पृष्ठभूमि से उत्पन्न इस संघर्ष के प्रधान पक्ष धर्म, अर्थ, तथा वैदेशिक नीति थे। १६२८ ई. में लोकसभा अपने अधिकारों का परिपत्र प्राप्त करने में सफल हुई। किंतु चार्ल्स फिर स्वेच्छापूर्ण शासन पर दृढ़ हो गया और संसद् के दीर्घ अधिवेशन के उपरांत घटनाचक्रों ने राजा तथा संसंद् के दलों के बीच गृहयुद्ध को द्रुतगामी कर दिया। १६४८ ई. तक राजा के पक्षपाती उखाड़ फेंके गए तथा दूसरे वर्ष चार्ल्स पर अभियोग लगाकर उसे फांसी दे दी गई।
गणतंत्रीय विष्कंभक (१६४९-६०) में इंग्लैंड को गणतंत्र घोषित किया गया और ओलिवर क्रामवेल ने महान् संरक्षकपद से १६५८ तक शासन किया। आंतरिक दृष्टि से यह युग सैनिक शासनस्थापना, घोर प्यूरिटनवादी प्रयोग तथा कई वैधानिक योजनाओं के लिए उल्लेखनीय है। क्रामवेल की वैदेशिक नीति के परिणामस्वरूप डच और स्पेन से युद्ध हुए तथा इंग्लैंड को जल और स्थल दोनों युद्धों में यश मिला। उसका प्रधान उद्देश्य ब्रिटिश व्यापार तथा प्यूरिटन मत की वृद्धि करना था। उसे इंग्लैंड, स्काटलैंड तथा आयरलैंड की एकता के प्रयत्न में सफलता मिली। किंतु आंतरिक शासन में जनतंत्र को समाप्त कर देने के कारण राजतंत्र फिर से स्थापित करने के पक्ष में एक राष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई और क्रामवेल की मृत्यु के उपरांत उसके पुत्र रिचर्ड के शासनकाल में सारे देश पर अराजकता छा गई। परिणामस्वरूप १६६० ई. में स्टुअर्ट राजतंत्र पुन: स्थापित हुआ।
१६६० ई. की व्यवस्था ने राजतंत्र तथा पार्लामेंट दोनों को पुन: स्थापित किया। चार्ल्स द्वितीय के शासन (१६६०-८५) ने क्लैंरेंडन संहिता के अंतर्गत ऐम्लिन धर्मव्यवस्था स्थापित की, पंरतु चार्ल्स द्वितीय ने कैथोलिकों को भी धार्मिक सहिष्णुता देनी चाही। बहिष्कार-नियम (एक्सक्ल्यूज़न बिल) जन्य संघर्ष ने इंग्लैंड में दो दल, क्रमश: पेटिशनर तथा अभोरर, पैदा किए जो आगे चलकर ह्विग और टोरी कहलाए। उसके शासन की विशेषता वैधानिक प्रगति तथा नेतिक हीनता में है। १६६५ ई. में ताऊन का प्रकोप हुआ तथा १६६६ में भीषण अग्निकांड। अपनी वैदेशिक नीति का आरंभ चार्ल्स द्वितीय ने फ्रांस से मैत्रीपूर्ण व्यवहार, स्पेन से शत्रुता तथा डचों से युद्ध किया। उसके शासन (१६८५-८८) में राजा और पार्लामेंट का संघर्ष फिर अपने प्रारंभिक बिंदु पर पहुँचा। उसने कैथोलिक मत के प्रति सहिष्णुता, स्थायी सेना तथा फ्रेंच मंत्री पर आधारित स्टुअर्ट निरंकुशता को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया। उसका रोमन मत का सार्वजनिक प्रतिपादन, राजशक्ति का प्रयोग, धर्म-स्वातंत्र्य-घोषणा का प्रकाशन तथा इसी से मिश्रित, उसके पुत्र हो जाने के कारण, कैथोलिक मत के भावी सुनहरे अवसर, सामूहिक रूप से १६८८ ई. की तथाकथित गौरवशाली क्रांति में परिलक्षित हुए। परिणामत: विलियम तृतीय एवं मेरी का राजतिलक हुआ।
क्रांतिपरवर्ती युग-विलियम तृतीय और मेरी (१६८९-९४) के सम्मिलित तथा विलियम तृतीय (१६९४-१७०२) के अकेले शासन में १६८८ की क्रांति द्वारा अर्जित सफलताओं का सम्यक् प्रतिपादन हुआ। १६८९ का अधिकारों का प्रस्ताव तथा उसके उपरांत १७०२ ई. के व्यवस्था कानून ने अंग्रेजी स्वाधीनता के क्षेत्र को और भी व्यापक कर दिया। तब भूमि में संसदीय सरकार के बीज डाले गए, धार्मिक सहिष्णुता तथा प्रेस स्वातंत्र्य प्राप्त हुआ और आर्थिक सुधारों को कार्यान्वित किया गया। वैदेशिक क्षेत्र में प्रमुख घटनाएँ लुई चतुर्दश के विरुद्ध इंग्लिश उत्तराधिकार का युद्ध तथा स्पेन के उत्तराधिकार के प्रश्न को सरल कर देने के उद्देश्य से की गई विभाजनसंधियाँ थीं, जिन्होंने इंग्लैंड को फ्रांस से द्वितीय युद्ध करने के लिए बाध्य किया। विलियम के उपरांत रानी एन (१७०२-१४) के शासन में मार्लबरों की विजयों के कारण प्रसिद्ध स्पेन के उत्तराधिकार का युद्ध तथा १७१३ की उट्रैक्ट की संधि हुई। देश की प्रमुख घटनाएँ राजनीतिक दलगत सरकार की रचना तथा १७०७ में एकता कानून के द्वारा इंग्लैंड और स्काटलैंड का एक राष्ट्र में विलयन है।
स्टुअर्ट कालीन इंग्लैंड की विशेषता व्यापारिक प्रसार, वेस्ट इंडीज तथा उत्तरी अमरीका के उपनिवेशीकरण और भारत तथा अमरीका में व्यापारिक केंद्रों की स्थापना थी। व्यापार से धन में वृद्धि हुई और समुद्र में डच और फ्रांसीसियों को परास्त कर ब्रिटेन जल का स्वामी बन गया। इसी काल हुई इंग्लैंड के बैंक की स्थापना विशेष महत्व रखती है। सांस्कृतिक और बौद्धिक उन्नति भी पर्याप्त मात्रा में हुई। विख्यात व्यक्तियों में अंग्रेजी क्रांति तथा गृहयुद्ध के लेखक क्लैंरेंडेन, कविता में जान मिल्टन, महान् आलंकारिक लेखकों में जान बन्यन, व्यंग्यलेखकों में जान ड्राइडेन, दार्शनिकों में जान लाक तथा गणितज्ञों एवं भौतिकी दार्शनिकों में आइज़क न्यूटन आदि उल्लेखनीय हैं।
प्रारंभिक हैनोवर शासक-जार्ज प्रथम (१७१४-२७) ने एक शांतिपूर्ण युग का आरंभ किया जो केवल १७१५ के स्काटलैंड के जैकोबस संबंधी विद्रोह के कारण कुछ समय के लिए भंग हुआ था। वैधानिक दृष्टिकोण से राजा के मंत्रियों की बैठक में सम्मिलित न होने के कारण मंत्रिमंडल (कैबिनेट) प्रणाली के विकास की दृष्टि से इस शासन का महत्व है। पहले कोई प्रधानमंत्री नहीं होता था, किंतु जब १७२१ ई. में वालपोल ने मंत्रिपद का कार्यभार सँभाला, उसने अपनी सर्वोच्चता कैबिनेट के प्रतीत करा दी और व्यावहारिक रीति से प्रथम प्रधानमंत्री बना। वालपोल तथा उसके उत्तराधिकारियों के शासन में भी ह्विग मंत्रिमंडल कार्यभार सँभाले रहा। १७०२ ई. में दक्षिणी सागर की बबूला नाम की व्यापारिक बरबादी घटित हुई। जार्ज द्वितीय (१७२७-६०) के भी शासन में १७३९ तक शांति रही तथा १७४२ तक वालपोल मंत्रिमंडल चलता रहा। वालपोल गृहसमृद्धि तथा वैदेशिक शंति में आस्था रखता था। उसकी आर्थिक नीति का लक्ष्य व्यापार का प्रसार था। १७३९ ई. में स्पेन के अमरीकी उपनिवशों में व्यापारिक अधिकार के प्रश्न पर ब्रिटेन का स्पेन से युद्ध हुआ, तदुपरांत मारिया थेरिसा के पक्ष में फ्रांस और प्रशा के विरुद्ध इंग्लैंड को आस्ट्रिया-उत्तराधिकार-युद्ध में प्रवेश करना पड़ा। १७४५ ई. में सप्तवर्षीय युद्ध फ्रांस और ब्रिटेन में छिड़ा जिसका संचालन चैथम के अर्ल विलियम पिट ने बड़ी कुशलता से किया। वेसेली के नेतृत्व में मेथोडिस्ट चर्च का उदय और विकास इंग्लैंड के धार्मिक इतिहास में महत्वपूर्ण घटना है।
जार्ज तृतीय (१७६०-१८२०)-इसका शासन इंग्लैंड के इतिहास के अत्यधिक, घटनापूर्ण युगों में से है। इसके प्रथम भाग में सप्तवर्षीय युद्ध का पेरिस की संधि (१७६३) द्वारा अंत हुआ। कनाडा पर इंग्लैंड का अधिकार भी इसी बीच हुआ और साथ ही इसी काल की वे घटनाएँ हैं जिनका अंत अमरीका के युद्ध तथा १७८३ में उसकी स्वाधीनता में हुआ। ग्रेट ब्रिटेन के नेतृत्व में आयरलैंड को अधिनियमन की स्वाधीनता (१७८२) मिल गई। भारत में वारेन हेस्टिंग्ज़ की अध्यक्षता में ब्रिटिश सत्ता सुदृढ़ हुई तथा आस्ट्रेलिया का उपनिवेशीकरण प्रारंभ हुआ। आंतरिक दृष्टि जार्ज तृतीय ने राजा के विलुप्त विशेषाधिकारों को पुन: जीवित करना चाहा तथा लार्ड नार्थ (१७७०-८२) के मंत्रित्वकाल में उस लक्ष्य की सिद्धि हुई। औद्योगिक क्रांति के प्रमुख आविष्कार, जिन्होंने शारीरिक श्रम के स्थान पर मशीन तथा जलतरण के स्थान पर भाप का इंजन दिया, इसी युग की देन हैं। १७८३ ई. से १८०१ ई. तक विलियम (पुत्र) पिट का मंत्रिकाल है जिसके प्रथम दस वर्ष शांति, आर्थिक सुधार तथा फ्रांस की राज्यक्रांति के प्रति ब्रिटेन के सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण के लिए उल्लेखनीय हैं। क्रांति के युद्धों के १७९३ ई. में प्रारंभ हो जाने तथा प्रथम राष्ट्रमंडल गुट के उद्घाटन के कारण ब्रिटेन का फ्रांस से युद्ध हुआ। क्रांति के सिद्धांतों से गृहव्यवस्था के आतंकित हो जाने के कारण पिट की प्रतिक्रियावादी नीति तथा टोरी दलप्रभावशाली हुए। १८०० ई. में एकता का आयरीय विधान पास किया गया।
नैपोलियन के युद्ध, जो व्यापारिक संघर्ष, द्वीपीय युद्ध तथा वाटरलू के १८१५ के निर्णय से संबंधित थे, उस शासन के अंतिम भाग के हैं। संयुक्त राष्ट्र (अमरीका) से १८१२ का युद्ध नेपोलियन से इंग्लैंड के संघर्षों का परिणाम था। इसके उपरांत यूरोप की पुनर्रचना तथा यूरोपीय संगठन का प्रादुर्भाव हुआ जो यूरोपीय कनसर्ट के नाम से विख्यात है और जिसमें इंग्लैंड का प्रमुख भाग रहा। गृह की दृष्टि से यह व्यापारिक नाश, आर्थिक अशांति और तज्जन्य हिंसा का युग था। औद्योगिक क्रांति ने लंबे डग भरे थे तथा स्टीमर और रेलवे इंजनों के आविष्कार किए थे। मानवतावादी प्रगति का अनुमान विलबर फोर्स के दासता-उन्मूलन-आंदोलन, हावर्ड के जल संबंधी सुधार तथा १८०२ के प्रथम कारखाना कानून से लगाया जा सकता है। जार्ज चतुर्थ (१८२०-३०) तथा विलियम चतुर्थ (१८३०-३७) के शासन में गृह की दुर्व्यव्यवस्था जारी रही और अनेक दंगों को उसने जन्म दिया। यह सुधारों का युग था, जिसमें १८२९ का आयरलैंड के कैथोलिक के त्राण का कानून, इसके व्यापारिक सुधार, पील के दंडविधान के सुधार, १८३२ का प्रथम सुधार कानून, १८३३ के फैक्टरी तथा शिक्षासुधार और १८३५ का स्थानीय कारपोरेशन कानून उल्लेखनीय है। आक्सफोर्ड आंदोलन का जन्म १८३३ ई. में हुआ। वैदेशिक क्षेत्र में, कैनिंग द्वारा मैटेर्निंक की अनुदार नीति का विरोध, ग्रीक स्वाधीनता संग्राम, फ्रांस की १८३० की क्रांति तथा पामर्स्टन काल का उदय तब की विशेष घटनाएँ हैं।
विक्टोरिया काल-रानी विक्टोरिया का दीर्घ शासन (१८३७-१९०१) लार्ड मेलबोर्न के संरक्षण में प्रारंभ हुआ। उसने उसे वैधानिक सिद्धांतों की शिक्षा दी तथा उसका विवाह सैक्सकोबर्ग के अलबर्ट से करा दिया जो उसका सलाहकार बना। उसके प्रारंभिक शासन की प्रमुख घटनाएँ चार्टिस्ट आंदोलन, अनाज कानून का १८४६ ई. में विघटन, १८४४ का बैंक चार्टर कानून तथा १८४७ का फैक्टरी कानून है। पील ने अनुदार दल का पुन: संघटन किया और दल के दृष्टिकोण को और उदार किया। आयरलैंड में ओ' कानल के नेतृत्व में विघटन आंदोलन छिड़ा तथा नवयुवक आयरलैंड दल की रचना से इस आंदोलन को और भी प्रश्रय मिला तथा १८४८ का विद्रोह हुआ। इसी युग में १८३७ का कनाडा विद्रोह तथा कनाडा उपनिवेश में उत्तरदायी शासन का जन्म हुआ। न्यूज़ीलैंड साम्राज्य में मिला लिया गया औरआस्ट्रेलिया का विकास हुआ। चीनी युद्ध (१८४०-४२) के उपरांत हाँगकांग की प्राप्ति हुई और भारतीय साम्राज्य का दृढ़ीकरण हुआ। विक्टोरिया के शासन के मध्य १८६५ ई. तक गृहनीति में पामर्स्टन का व्यक्तित्व प्रधान रूप से कर्मण्य रहा। पश्चात् डिज़रेली और ग्लैड्स्टन की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का युग आया। गृहशासन की दिशा में १८६७ का द्वितीय सुधार कानून, १८७० का शिक्षा कानून, १८७३ का न्यायविधान, १८७६ और ७८ के फैक्टरी कानून बने तथा ट्रेड यूनियन का विकास हुआ। आयरलैंड की धर्मव्यवस्था पुन: स्थापित हुई तथा वहाँ की भूव्यवस्था का विधान पास हुआ। १८६७ ई. में कनाडा को डोमिनियन तथा विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया। वैदेशिक क्षेत्र में जो घटनाएँ घटीं उनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं : १८५४ ई. को रूस से क्रीमिया के लिए युद्ध, १८५७ का भारतीय विद्रोह, इटली की स्वतंत्रताप्राप्ति, १८५७ का द्वितीय चीनी युद्ध, अमरीका का गृहयुद्ध (१८६१-६५) तथा वे घटनाएँ जो १८७८ की बर्लिन कांग्रेस की जन्मदात्री थीं।
विक्टोरिया के शासन के अंत में तृतीय सुधार कानून (१८८४), पुनर्विभाजन कानून (१८८५) तथा स्वायत्त शासन कानून (१८८८) के निर्माण से जनतंत्र में प्रभूत प्रगति हुई। उदार दल के विघटन (१८८६) ने शत्रुओं को शासन की दीर्घ अवधि दे दी थी। १९०० ई. में श्रमदान की स्थापना हुई। आयरलैंड की समस्या का अंतिम निदान ढूंढ़ने के उद्देश्य से प्रस्तुत ग्लैड्स्टन के १८८६ और १८९३ ई. के होमरूल प्रस्ताव असफल रहे। १८७८ के बाद ब्रिटेन क्रमश: द्वितीय अफ़गान युद्ध (१८७८-८०), प्रथम बोअर युद्ध (१८८१) तथा मिस्र पर अधिकार करने में लगा रहा। आस्ट्रेलिया कामनवेल्थ की स्थापना १९०० ई. में पैदा हुई। वैदेशिक मामले में यह गौरवशाली तटस्थता का युग था।
२०वीं शताब्दी के प्रारंभिक वषर्-एडवर्ड सप्तम का शासन (१९०१-१०) श्रम की कठिनाइयों से, जो बहुधा हड़ताल की जन्मदात्री थीं, प्रारंभ हुआ। १९०६ ई. में उदार दल के कार्यभार सँभालने से ऐसे कानूनों का जन्म हुआ जो साम्यवादी भावना से प्रेरित थे और जिनपर मजदूर दल के उत्थान की छाप थी। इन कानूनों में वृद्धावस्था की पेन्शन (१९०८) और स्वास्थ्य तथा बेरोजागारी की राष्ट्रीय बीमा योजना (१९०९) अपनी विशेषता रखती हैं। १९०९ ई. में दक्षिण अफ्रीका संघ कानून तथा भारतीय प्रतिनिधि नियम पास किए गए। वैदेशिक क्षेत्र में जर्मनी की औपनिवेशिक तथा समुद्री महत्वाकांक्षाओं ने ब्रिटिश दृष्टिकोण संदेहास्पद कर दिया और ब्रिटेन तटस्थता का त्याग करने के लिए बाध्य हो गया। १९०२ की आंग्ल जापानी, १९०४ की आंग्ल फ्रांसीसी, तथा १९०७ की आंग्ल रूसी संधियाँ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में जर्मनी, आस्ट्रिया तथा इटली के गुट को प्रतिसंतुलन देने लगीं। जार्ज पंचम के शासन (१९१०-३६) में १९१२ का संसदीय कानून पास होकर उच्च सदन को आर्थिक शक्तियों से रहित करने में समर्थ हो सका। अब राजमुकुट के प्रति अंग्रेजी विधान में अपार सम्मान पैदा हुआ। आयरलैंड का प्रश्न सर्वोपरि था जिससे होमरूल कानून १९१५ ई. में पास हुआ। जर्मनी की महत्वाकांक्षाओं के कारण यूरोपीय स्थिति शंकाकुल हो गई तथा मोरक्को की कठिनाइयों एवं बाल्कन युद्धों ने विस्फोट की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। १९१४ ई. में प्रथम विश्वव्यापी युद्ध छिड़ा और बेलजियम पर आक्रमण होने से लंदन संधि की हत्या देखकर ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्धघोषणा कर दी तथा १९१८ ई. तक ब्रिटेन स्थल और जलयुद्धों में व्यस्त रहा।
विश्वव्यापी युद्धों के बीच ब्रिटेन-यद्यपि युद्ध से ब्रिटेन को औपनिवेशिक लाभ अधिक हुए, तथापि उसके उद्योग और व्यापार को भीषण आघात पहुँचा जिससे उसकी समृद्धि और प्रभाव क्षीण हुए। युद्ध ने ब्रिटेन के सामाजिक स्वरूप को परिवर्तित कर दिया। ब्रिटेन में स्त्रियों का त्राण, बड़े राज्यों का विघटन, नगरों के समीपवर्ती प्रदेशों की प्रगति तथा वैज्ञानिक एवं कला संबंधी विकास हुए। शांतिपूर्ण युग की आर्थिक व्यवस्था की आवश्यकता ने ब्रिटेन को औद्योगिक विकास की ओर द्रुत गति से अग्रसर किया जिसके फलस्वरूप श्रम की समस्या की अभिव्यक्ति १९२६ की साधारण हड़ताल में हुई। इसके उपरांत १९३१ ई. में बाजारों में वस्तुओं की दर गिर गई जिससे आर्थिक और औद्योगिक संकट उत्पन्न हो गया। उत्पादन वृद्धि के उपाय ढूँढ़े जाने लगे और अनियंत्रित व्यापार के सिद्धांत का परित्याग कर दिया गया। व्यय में कमी, श्रममूल्य की कटौती तथा करों की वृद्धि आदि से स्थिति में सुधार किया गया। समाजवादी सिद्धांत तथा समाजवादी कार्यों को प्रोत्साहन मिला। १९३६ में एडवर्ड अष्टम के राज्यत्याग की समस्या ने राष्ट्र का ध्यान कुछ समय के लिए केंद्रित रखा था और जार्ज षष्ठ के राजतिलक में सहायक हुआ।
साम्राज्यवादी इतिहास में ब्रिटिश राष्ट्रसंघ को जन्म देनेवाला १९३१ का वेस्टमिन्स्टर विधान, १९३७ के विधान से आयरलैंड का सार्वभौम जनतंत्र राज्य, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की १९४७ के स्वाधीन राष्ट्र में परिणति इत्यादि घटनाएँ हैं। वैदेशिक क्षेत्र में ब्रिटिश नीति १९३६ ई. तक, जब तक शनै:शनै: पुन:शस्त्रीकरण प्रारंभ नहीं हुआ, अंतरराष्ट्र संघ से बँधी हुई थी। १९३७ ई. में नेविल चेंबरलेन की राष्ट्रीय सरकार की, जिसके जर्मनी को प्रसन्न करने के सारे प्रयत्न असफल रहे, रचना हुई। हिटलर की एक के बाद एक राष्ट्र हड़प लेने की नीति पहली सितंबर, १९३९ ई. को पोलैंड पर आक्रमण करने को बढ़ी, तब ब्रिटेन भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध में कूद पड़ा। मई, १९४० में चेंबरलेन को विन्स्टन चर्चिल के लिए प्रधान मंत्री का स्थान रिक्त करना पड़ा। चर्चिल के सतत प्रयत्न और रूस को असाधारण क्षमता तथा बलिदानों ने युद्ध को १९४५ ई. में सफलता की सीमा पर पहुँचाया। उसी वर्ष साधारण निर्वाचन में पार्लामेंट में क्लेमेंट ऐटली समाजवादी बहुसंख्यक दल के साथ, सामाजिक उत्थान, सुरक्षा एवं अनिवार्य उद्योगों और सेवाओं के राष्ट्रीकरण की व्यापक नीति लिए अपना मंत्रिमंडल बनाने में सफल हुए।
सं.ग्रं.-एस.आर. गार्डिनर : इंग्लैंड का इतिहास; टी.एफ. टाउट : ग्रेट ब्रिटेन का बृहत् इतिहास; रैम्से क्योर : ब्रिटिश कामनवेल्थ का संक्षिप्त इतिहास; ट्रेवेलियन : इंग्लैंड का इतिहास; एफ.जे.सी. हर्नशा : ब्रिटिश प्रायद्वीपों के इतिहासों की रूपरेखा; जी. स्मिथ : इंग्लैंड का इतिहास; हालवी : इंग्लिश जाति का इतिहास। (गि.शं.मि.)
आधुनिक इंग्लैंड-इंग्लैंड अथवा ब्रिटेन के संसार भर में अभी तक कई उपनिवेश वर्तमान हैं, यथा-ब्रूनेई, शिसेलीज़, फाक्लैंड द्वीपसमूह, जिब्राल्टर, हाँगकांग, सेंट हेलेना तथा अंटार्कटिक, हिंद महासागर, वेस्टइंडीज और पश्चिमी प्रशांत स्थित प्रदेश। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत, मलयेशिया, घाना, नाईजीरिया, तंजानिया, साइप्रस, जमैका, त्रिनिदाद तथा अन्य कई देश ब्रिटिश उपनिवेश न रहकर स्वतंत्र हो गए हैं और संप्रति राष्ट्रमंडल के नियमित सदस्य हैं। १९७० ई. में फिजी तथा टांगा और १९७१ ई. में पश्चिमी समोआ भी आजाद होकर राष्ट्रमंडल में सम्मिलित हो गए हैं।
नवंबर, १९६५ ई. में रोडेशिया (द्र.) नामक ब्रिटिश उपनिवेश के अल्पसंख्यक श्वेत लोगों ने इस देश को स्वतंत्र घोषित करके बलात् सत्ता सँभाल ली और २ मार्च, १९७० ई. को नया संविधान लागू करके यह देश गणतंत्र राष्ट्र के रूप में सामने आया, हालाँकि नया संविधान गणतंत्रीय भावना से कतई मेल नहीं खाता, क्योंकि इसमें प्रशासकीय एवं विधि संबंधी सारे अधिकार अल्पसंख्यक गोरों को ही प्राप्त हैं, काले व्यक्तियों (रोडेशिया के मूल निवासी) को मात्र नाम के लिए ही अधिकार दिए गए हैं। इसपर ब्रिटेन तथा अन्य राष्ट्रों ने रोडेशिया पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। १९६६ ई. के दिसंबर में राष्ट्रसंघ ने कुछ चुनिंदा वस्तुओं को लेकर रोडेशिया के साथ व्यापार करने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। १९७१ ई. के दौरान रोडेशिया तथा इंग्लैंड की सरकारें उभय पक्षों को स्वीकार्य समझौते की रूपरेखा तैयार करने को सहमत हो गईं और १९७२ ई. की जनवरी में लार्ड पियर्सें के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल रोडेशिया गया ताकि रोडेशियावालों के रूख का पूरा-पूरा जायजा लिया जा सके।
हैराल्ड विल्सन के नेतृत्व में १९६४ ई. के दौरान उदार दल ने इंग्लैंड का शासन सँभाला। परंतु देश की आर्थिक दशा लड़खड़ा चुकी थी और स्थिति यहाँ तक पहुँच गई थी कि भुगतान की राशि चुकाने में भी सरकार को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। अत: आर्थिक संयम के लिए कदम उठाया गया। ऋणों पर रोक लगाई गई और कीमतों तथा आय पर नियंत्रण रखने हेतु कानून बनाया गया। नवंबर, १९६७ ई. में पौंड का १४.३ प्रतिशत अवमूल्यन हुआ। जनवरी, १९६८ ई. में आर्थिक राहत के लिए कुछ और उपाय किए गए जिनमें १९७१ ई. तक सिंगापुर, मलयेशिया तथा फारस की खाड़ी से ब्रिटिश फौजों को वापस बुलाने का कार्यक्रम भी सम्मिलित था। लेकिन १९६९ ई. आते-आते ब्रिटेन की आर्थिक दशा में अपेक्षाकृत सुधार हुआ और उपर्युक्त नियमों में ढिलाई बरती जाने लगी। जून, १९७० के चुनाव में अनुदार दल की विजय हुई और एडवर्ड हीथ इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने। नई सरकार ने अक्टूबर में केंद्रीय प्रशासन का पुनर्गठन किया और वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय एवं पर्यावरण मंत्रालय नाम से दो और मंत्रालय स्थापित किए। १९७० ई. के दौरान अनुदार दल की सरकार ने मुद्रास्थिति, हड़तालों तथा मजदूरी बढ़ाने की माँगों पर रोक लगाने के लिए नियम बनाए। बेकारी रोकने के १९७१ ई. में इस सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक औद्योगिक प्रशिक्षण योजना लागू की।
२२ जनवरी, १९७२ ई. को ब्रिटेन ने 'यूरोपीय आर्थिक समुदाय' में सम्मिलित होने की संधि पर हस्ताक्षर किए और ब्रिटिश संसद् से स्वीकृति मिलने पर १ जनवरी, १९७३ ई. को ब्रिटेन उक्त समुदाय का नियमित सदस्य बन गया। इसके लिए उसे 'यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन' से इस्तीफा देना पड़ा।