आसाम अथवा असम, गणतंत्र भारत का एक राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है और देश की पूर्वोत्तर सीमा २४° ¢ उ.अ.-२७° ५५¢ उ.अ. तथा ८९° ४४¢ पू.दे.-९६° ¢ पू.दे.) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल ७८,४६६ वर्ग कि.मी. तथा जनसंख्या १,४६,२५,१५२ (१९७१) है। कुल जनसंख्या का लगभग ९१ प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नगरीय जनसंख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है। (१.५ प्रतिशत१९५१ से ९ प्रतिशत १९७१)। स्त्रियों की संख्या प्रति १००० पुरुषों पर ८९५ है। साधारणत: जनबसाव असमान है। पूरे प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व १८६ प्रति वर्ग कि.मी. है जबकि उत्तरी कछार तथा मिकिर हिल जनपदों में घनत्व क्रमश: १६ और ३७ ही है। इसके विपरीत नौगाँव, कामरूप तथा कछार के मैदानी जनपदों में घनत्व क्रमश: ३०२,२९९ तथा २४६ है। आसाम को लेकर प्राय: यह भ्रांति फैली हुई है कि इस राज्य में परिगणित जातियों की प्रधानता है जबकि परिगणित जातियों एंव जनजातियों की जनसंख्या कुल जनसंख्या की लगभग २० प्रतिशत ही है। हिंदुओं की जनसंख्या लगभग ७२.५ प्रतिशत तथा मुसलमान २४.५ प्रतिशत हैं। ग्वालपाड़ा, नौगाँव तथा कछार जनपदों में मुस्लिम जनसंख्या क्रमश: ४२,३९ तथा ४० प्रतिशत है। १९७१ की जनगणना के अनुसार इस प्रांत में कुल ६२ नगर हैं जिनमें एकमात्र गौहाटी ही ऐसा नगर है जिसकी जनसंख्या एक लाख से अधिक (२,००,३७७) है। डिब्रूगढ़ (८०,३४८) तथा जोरहाट (७०,६७४) क्रमश: दूसरे तथा तीसरे स्थान पर हैं। अन्य प्रमुख नगर नौगाँव (५६,५३७), सिलचर (५२,५९६), पांडु (४७,९५४),धुबरी (४५,५८९), तेजपुर (३९,८७०) तथा करीमगंज (३१,६१८) आदि हैं। गौहाटी तथा डिब्रूगढ़ में विश्वविद्यालय हैं। इस राज्य की राजधानी पहले शिलांग थी पर मेघालय के अलग राज्य बन जाने के कारण १९७३ में गौहाटी के उपनगरीय क्षेत्र में स्थित दिसपुर ग्राम में नई राजधानी स्थापित की जा रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार आसाम नाम काफी परवर्ती है। पहले इस राज्य को असम कहा जाता था। इस नामकरण के विषय में भी दो मत हैं-१.असम-बेजोड़ तथा २. असम-असमान भौम्याकृतिवाला। कुछ लोग इस नाम की व्युत्पत्ति अहोम ( सीमावर्ती बर्मा की एक शासक जनजाति) से भी बताते हैं। आसाम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़कर बंगलादेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था तथा उक्त नाम विषम भौम्याकृति के संदर्भ में अधिक उपयुक्त प्रतीत होता था क्योंकि हिमालय की नवीन मोड़दार उच्च पर्वतश्रेणियों तथा पुराकैब्रियन युग के प्राचीन भूखंडो सहित नदी (ब्रहापुत्र) निर्मित समतल उपजाऊ मैदान तक इसमें आते थे। परंतु विभिन्न क्षेत्रों की अपनी संस्कृति आदि पर आधारित अलग अस्तित्व की माँगों के परिणामस्वरूप वर्तमान आसाम राज्य का लगभग ७२ प्रतिशत क्षेत्र ब्रहापुत्र की घाटी (असम की घाटी)तक सीमित रह गया है जो पहले लगभग ४० प्रतिशत मात्र ही था। इसके वर्तमान स्वरूप के निर्धारण में प्रयुक्त ऐतिहासिक एंव प्रशासनिक तथ्यों का ब्यौरा निम्न है:

१. १८२६ ई. में प्रथम युद्धोपरांत ब्रिटिश संरक्षण में आया;

२. १८३२ ई. में कछार का मिलाया जाना;

३. १८३५ ई. में जयंतिया क्षेत्र का मिलाया जाना;

४. १८७४ ई. में ब्रिटिश साम्राज्य में मुख्य आयुक्त (चीफ कमिश्नर)

के अधीन प्रांत के रूप में बनाया जाना;

५. १९०५ ई., बंग विच्छेद तथा लेफ्टिनेंट गवर्नर का प्रशासन;

६. १९१५ई, पुन: मुख्य आयुक्त का प्रशासन;

७. १९२१ ई. से गवर्नर के प्रशासन में;

८. १९४७ ई. भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति एवं विभाजन के परिणाम स्वरूप मुस्लिम बहुल सिलहट क्षेत्र का पाकिस्तान में विलयन;

९. १९५१ ई. देवनगिरि का भूटान में विलयन;

१०. १९५७ ई. नागालैंड का केंद्रशासित क्षेत्र घोषित होना जो १९६२ में अलग राज्य घोषित हो गया;

११.१९६९ ई. गारो तथा संयुक्त खासी जयंतिया जनपदों का मेघालय राज्य के रूप में घोषित होना;

१२. १९७२ ई.मिजो जनपद का मिजोरम नाम से केंद्रशासित प्रदेश घोषित होना;

१३. हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र (कामेंग), सुंवसिरी, सिंयांग, लोहित तथा तिरप का अरुणाचल प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आना।

इस प्रकार वर्तमान आसाम राज्य का प्रशासन नौ जनपदों (ग्वालपांडा, कामरूप, दरंग, नौगाँव, शिवसागर, लखीमपुर, मिकिरहिल, नार्थ कछार हिल तथा कछार) तथा १०२ आरक्षी क्षेत्रों (पुलिस स्टेशनों) तक ही सीमित रह गया है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पूर्व में बंगलादेश स्थित है।

भू आकृति के अनुसार इस राज्य को तीन विभागों में विभक्त किया जा सकता है : १. उत्तरी मैदान अथवा ब्रह्मपुत्र का मैदान जो कि संपूर्ण उत्तरी भाग में फैला हुआ है। इसकी ढाल बहुत ही कम है जिसके कारण प्राय: यह ब्रद्मपुत्र की बाढ़ से आक्रांत रहता है। यह नदी इस समतल मैदान को दो असमान भागों में विभक्त करती है जिसमें उत्तरी भाग हिमालय से आनेवाली लगभग समानांतर नदियों, सुवंसिरी आदि, से काफी कट फट गया है। दक्षिणी भाग अपेक्षाकृत कम चौड़ा है। गौहाटी के समीप ब्रद्मपुत्र मेघालय चट्टानों का क्रम नदी के उत्तरी कगार पर भी दिखाई पड़ता है। बूढ़ी दिहिंग, धनसिरी तथा कपिली ने अपने निकासवर्ती अपरदन की प्रक्रिया द्वारा मिकिर तथा रेग्मा पहाड़ियों को मेघालय की पहाड़ियों से लगभग अलग कर दिया है। संपूर्ण घाटी पूर्व में ३० मी. से पश्चिम में १३० मी. की ऊँचाई तक स्थित है जिसकी औसत ढाल १२ से.मी. प्रति कि. मी. है। नदियों का मार्ग प्राय: सर्पिल है।

२. मिकिर तथा उत्तरी कछार का पहाड़ी क्षेत्र भौम्याकृति की दृष्टि से एक जटिल तथा कटा फटा प्रदेश है और आसाम घाटी के दक्षिण में स्थित है। इसका उत्तरी छोर अपेक्षाकृत अधिक ढलवा है।

३. कछार का मैदान अथवा सूरमा घाटी जलोढ़ अवसाद द्वारा निर्मित एक समतल उपजाऊ मैदान है जो राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है। वास्तव में इसे बंगाल डेल्टा का पूर्वी छोर ही कहा जा सकता है। उत्तर में डौकी भ्रंश इसकी सीमा बनाता है।

नदियाँ-इस राज्य की प्रमुख नदी ब्रह्मपुत्र (तिब्बत की सांगपी) है जो लगभग पूर्व पश्चिम में प्रवाहित होती हुई धुबरी के निकट बंगलादेश में प्रविष्ट हो जाती है। प्रवाहक्षेत्र के कम ढलवां होने के कारण नदी शाखाओं में विभक्त हो जाती है तथा नदीस्थित द्वीपों का निर्माण करती है जिनमें मजुली (९२९ वर्ग कि.मी.) विश्व का सबसे बड़ा नदी स्थित द्वीप है। वर्षाकाल में नदी का जलमार्ग कहीं कहीं आठ कि.मी. चौड़ा हो जाता है तथा झील जैसा प्रतीत होता है। इस नदी की ३५ प्रमुख सहायक नदियां हैं। सुवंसिरी, भरेली, धनसिरी, पगलडिया, मानस तथा संकाश आदि दाहिनी ओर से तथा लोहित, नवदिहिंग, बूढ़ी दिहिंग, दिसांग, कपिली, दिगारू आदि बाई ओर से मिलने वाली प्रमुख नदियां हैं। ये नदियां इतना जल तथा मलबा अपने साथ लाती है कि मुख्य नदी ग्वालपाडा के समीप ५० लाख क्यूसेक जल का निस्सारण करती है। ब्र्ह्रापुत्र की ही भाँति सुवंसिरी आदि भी मुख्य हिमालय (हिमाद्रि) के उत्तर से आती है तथा पूर्वगामी प्रवाह उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। पर्वतीय क्षेत्र में इनके मार्ग में खड्ड तथा प्रपात भी पाए जाते हैं। दक्षिण में सूरमा ही उल्लेख्य नदी है जो अपनी सहायक नदियों के साथ कछार जनपद में प्रवाहित होती है।

भौमिकीय दृष्टि से आसाम राज्य में अति प्राचीन दलाश्म (नीस) तथा सुभाजा (शिस्ट) निर्मित मध्यवर्ती भूभाग (मिकिर तथा उत्तरी कछार) से लेकर तृतीय युग की जलोढ़ चट्टानें भी भूतल पर विद्यमान हैं। प्राचीन चट्टानों की पर्त उत्तर की ओर क्रमश: पतली होती गई है तथा तृतीयक चट्टानों से ढकी हुई हैं। ये चट्टानें प्राय: हिमालय की तरह के भंजों से रहित हैं। उत्तर में ये क्षैतिज हैं पर दक्षिण में इनका झुकाव (डिप) दक्षिण की ओर हो गया है।

भूकंप तथा बाढ़ आसाम की दो प्रमुख समस्याएं हैं। बाढ़ से प्राय: प्रतिवर्ष ८ से १० करोड़ रुपए की माल की क्षति होती है। १९६६ की बाढ़ से लगभग १६,००० वर्ग कि.मी. क्षेत्र जलप्लावित हुआ था। स्थल खंड के अपेक्षाकृत नवीन होने तथा चट्टानी स्तरों के अस्थायित्व के कारण इस राज्य में भूकंप की संभावना अधिक रहती है। १८९७ का भूकंप, जिसकी नाभि गारो खासी की पहाड़ियों में थी, यहाँ का सबसे बड़ा भूकंप माना जाता है। रेल लाइनों का उखड़ना, भूस्खलन, नदी मार्गावरोध तथा परिवर्तन आदि क्रियाएँ बड़े पैमाने पर हुई थीं और लगभग १०,५५० व्यक्ति मर गए थे। अन्य प्रमुख भूकंपक्रमश: १८६९, १८८८, १९३०, १९३४ तथा १९५० में आए।

जलवाय-सामान्यतया आसाम राज्य की जलवायु, भारत के अन्य भागों की भंति, मानसूनी है पर कुछ स्थानीय विशेषताएं इसमें विश्लेषणोपरांत अवश्य दृष्टिगोचर होती हैं। प्राय: पांच कारक इसे प्रभावित करते हैं : १. उच्चावच; २. पश्चिमोत्तर भारत तथा बंगाल की खाड़ी पर सामयिक परिवर्तनशील दबाव की पेटियां, तथा उनका उत्तरी एवं पूर्वोत्तरीय सामयिक दोलन; ३. उष्णकटिबंधीय समुद्री हवाएं; ४. सामयिक पश्चिमी चक्रवातीय हवाएं तथा ५. पर्वत एवं घाटी की स्थानीय हवाएं। गंगा के मैदान की भांति यहां ग्रीष्म की भीषणता का अनुभव नहीं होता क्योंकि प्राय: बूंदाबांदी तथा वर्षा हो जाया करती है। कोहरा, बिजली की चमक दमक तथा धूल के तूफान प्राय: आते रहते हैं। वर्ष में ६०-७० दिन कोहरा तथा ८०-११५ दिन बिजली की कड़वाहट अनुभव की जाती है। औसत वार्षिक वर्षा २०० सें.मी. होती है पर मध्य भाग (गौहाटी, तेजपुर) में यह मात्रा १०० से.मी. से भी कम होती है जबकि पूर्व एवं पश्चिम में कहीं १,००० से.मी. तक भी वर्षा होती है। सापेक्ष आर्द्रता वर्ष भर अधिक रहती है (९० प्रतिशत)। जाड़े का औसत तापमान १२.८° सें.ग्रे. तथा ग्रीष्म का औसत तापमान २३° सें.ग्रे. रहता है। अधिकतम तापमान वर्षा ऋतु के अगस्त महीने में रहता है (२७.१७° सें.ग्रे.)।

भूमि-काँप तथा लैटराट इस राज्य की प्रमुख मिट्टियां हैं जो क्रमश: मैदानी भागों तथा पहाड़ी क्षेत्रों के ढालों पर पाई जाती हैं। नई काँप मिट्टी नदियों के बाढ़ क्षेत्र में पाई जाती है तथा धान, जूट, दाल एवं तिलहन के लिए उपयुक्त है। यह प्राय: उदासीन प्रकृति की होती है। बाढ़ेतर प्रदेश की वागर मिट्टी प्राय: अम्लीय होती है। यह गन्ना, फल, धान के लिए अधिक उपुयक्त है। पर्वतीय क्षेत्र की लैटराइट मिट्टी अपेक्षाकृत अनुपजाऊ होती है। चाय की कृषि के अतिरिक्त ये क्षेत्र प्राय: वनाच्छादित हैं।

खनिज-तृतीय युग का कोयला तथा खनिज तेल इस प्रदेश की मुख्य संपदाएं हैं। खनिज तेल का अनुमानित भंडार ४५० लाख टन है जो पूरे भारत का लगभग ५० प्रतिशत है तथा प्रमुखतया बह्मपुत्र की ऊपरी घाटी में दिगबोई, नहरकटिया, मोशन, लक्वा, टियोक आदि के चतुर्दिक् प्राप्य है। राज्य के दक्षिणपूर्वी छोर पर लकड़ी लेड़ी नजीरा के निकट कोयले का भांडार है। अनुमानित भांडार ३३ करोड़ टन है। उत्पादन क्रमश: कम होता जा रहा है। (१९६३ से ५,७७,००० टन; १९६५ में ५,४१,००० टन)। फायर क्ले, गृह-निर्माण-योग्य पत्थर आदि अन्य खनिज हैं।

कृषि-असम एक कृषिप्रधान देश है। १९७०-७१ में कुल (मिजोरमयुक्त) लगभग २५,५०,००० हेक्टेयर भूमि (कुल क्षेत्रफल का लगभग १/३) कृषिकार्य कुल भूमि का ९० प्रतिशत मैदानी भाग में है। धान (१९७१) कुल भूमि (कृषियोग्य) के ७२ प्रतिशत क्षेत्र में पैदा किया जाता है (२०,००,००० हेक्टेयर) तथा उत्पादन २०,१६,००० टन होता है। अन्य फसलें (क्षेत्रपफल १,००० हेक्टेयर में) इस प्रकार हैं-गेहूँ २१; दालें ७९; सरसों तथा अन्य तिलहन १३९। कुल कृषिभूमि का ७७ प्रतिशत खाद्य फसलों के उत्पादन में लगा है। इतना होते हुए भी प्रति व्यक्ति कृषिभूमि का औसत ०.५ एकड़ (०.२ हेक्टेयर) ही है। विभिन्न साधनों द्वारा भूमि को सुधारने के उपरांत कृषि क्षेत्र को पाँच प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है।

अन्य उत्पादन-चाय, जूट तथा गन्ना यहां की प्रमुख औद्योगिक तथा धनद फसलें हैं। चाय की कृषि के अंतर्गत लगभग ६५ प्रतिशत कृषिगत भूमि सम्मिलित है। आसाम के आर्थिक तंत्र में इसका विशेष हाथ है। भारत की छोटी बड़ी ७,१०० टी इस्टेट में से लगभग ७०० आसाम में ही स्थित हैं। १९७० ई. में कुल २,००,००० हेक्टेयर क्षेत्र में चाय के बाग थे जिनसे लगभग २१.५ करोड़ कि.ग्रा. (१९७०) चाय तैयार की गई। इस उद्योग में प्रतिदिन ३,७९,७८१ मजदूर लगे हैं, जिनमें अधिकांश उत्तर बिहार तथा पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के हैं। जूट लगभग छह प्रतिशत कृषियोग्य भूमि में उगाई जाती है। आर्थिक दृष्टिकोण से यह अधिक महत्वपूर्ण है। आसाम घाटी के पूर्वी भाग तथा दरंग जनपद इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। १९७० ई. में यहां की नदियों में से २६.५ हजार टन मछलियां भी पकड़ी गईं।

सिंचाइर्-वर्षा की अधिकता के कारण सिंचाई की व्यवस्था व्यापक रूप से लागू नहीं की जा सकी, केवल छोटी-छोटी योजनाएं ही क्रियान्वित की गई हैं। कुल कृषिगत भूमि का मात्र २२ प्रतिशत ही सिंचित है। १९६४ में प्रारंभ की गई जमुना सिंचाई योजना (दीफू के निकट) इस राज्य की सबसे बड़ी योजना है जिससे लगभग २६,००० हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाने का अनुमान है। नहरों की कुल लंबाई १३७.१५ कि.मी. रहेगी।

विद्युत-राज्य के प्रमुख शक्ति-उत्पादक-केंद्र (क्षमता तथा स्वरूप के साथ) ये हैं-गोहाटी (तापविद्युत्)

३२,५०० किलोवाट, नामरूप (तापविद्युत्) लखीमपुर में नहरकटिया से २० कि.मी., २३,००० किलोवाट का प्रथम चरण १९६५ में पूर्ण। ३०,००० किलोवाट का दूसरा चरण १९७२-७३ तक पूर्ण। जलविद्युत् केंद्रों में यूनिकेम प्रमुख है (पूरी क्षमता ७२,००० किलोवाट)।

पशु-१९६६ की गणना के अनुसार राज्य में (मिजोरमयुक्त) पशुओं की संख्या लगभग ८४.६ लाख थी, जिनमें गायें ६१ लाख, भैंसें ५.५ लाख, बकरी १४.६ लाख थीं। इनसे १,६२,००० टन दूध तथा ८,००० टन मांस का उत्पादन किया गया।

उद्योग-आसाम के आर्थिक तंत्र में उद्योग घंधों में, विशेष रूप से कृषि पर आधारित, तथा खनिज तेल का महत्वपूर्ण योगदान है। गौहाटी तथा डिब्रूगढ दो स्थान इसके मुख्य केंद्र हैं। कछार का सिलचर नगर तीसरा प्रमुख औद्योगिक केंद्र है। चाय उद्योग के अतिरक्ति वस्त्रोद्योग (शीलघाट, जूट तथा जारीरोड सिल्क) भी यहां उन्नत है। हाल ही में एक कपड़ा मिल गौहाटी में स्थापित की गई है। एरी, मूगा तथा पाट आसाम के उत्कृष्ट वस्त्रों में हैं। तेलशोधक कारखाने दिगबोई (पाँच लाख टन प्रति वर्ष) तथा नूनमाटी (७.५ लाख टन प्रति वर्ष) में है। उर्वरक केंद्र नामरूप में हैं जहां प्रतिवर्ष २,७५,००० टन यूरिया तथा ७,०५,००० टन अमोनिया का उत्पादन किया जाता है। चीरा में सीमेंट का कारखाना है जहां प्रतिवर्ष ५४,००० टन सीमेंट का उत्पादन होता है। इनके अतिरिक्त वनों पर आधारित अनेक उद्योग धंधे प्राय: सभी नगरों में चल रहे हैं। धुबरी की हार्डबोर्ड फैक्टरी तथा गौहाटी का खैर तथा आगर तैल विशेष उल्लेखनीय हैं।

यातायात-आवागमन तथा यातायात के साधनों के सुव्यवस्थित विकास में इस प्रदेश के उच्चावचन तथा नदियों का विशेष महत्व है। आसाम घाटी उत्तरी दक्षिणी भाग को स्वतंत्र भारत में एक दूसरे से जोड़ दिया गया है। गौहाटी के निकट यह संपूर्ण ब्रह्मपुत्र घाटी का एक मात्र सेतु है। १९६६ में रेलमार्गों की कुल लंबाई ५,८२७ कि.मी. थी (३,३३४ कि.मी. साइडिंग के साथ)। धुबरी, गौहाटी, लामडि, सिलचर आदि रेलमार्ग द्वारा मिले हुए हैं। राजमार्ग कुल २०,६७८ कि.मी. है जिसमें राष्ट्रीय मार्ग २,९३४ कि.मी. (१९६८) है। यहाँ जलमार्गों का विशेष महत्व है और ये अति प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहे हैं। नौकावहन-योग्य नदियों की लंबाई ३,२६१ कि.मी. है जिसमें १६५३ कि.मी. मार्ग स्टीमर चलने योग्य है तथा वर्ष भर उपयोग में लाए जा सकते हैं। शेष मात्र मानसून के दिनों में ही काम लायक रहते हैं।

भाषा-आसाम की राज्यभाषा संस्कृतमिश्रित 'असमी' है जो बहुत कुछ बंगला के समान है। इसमें कुछ तिब्बती एवं बर्मी भाषा के भी शब्द सम्मिलित हैं। भाषा प्राचीन है तथा १५वीं शताब्दी की इस भाषा के कई ग्रंथ उपलब्ध हैं।

आसाम की जातियाँ-आसाम की आदिम जातियाँ संभवत: भारत चीनी जत्थे के विभिन्न अंश हैं। भारत चीनी जत्थे की जातियां कई समूहों में विभाजित की जा सकती है। प्रथम खासी है जो आदिकाल में उत्तर पूर्व से आए हुए निवासियों के अवशेष मात्र हैं। दूसरे समूह के अंतर्गत दिमासा (अथवा पहाड़ी कचारी), बोदों (या मैदानी कचारी), रामा, कारो, लालूग तथा पूर्वी उपहिमालय में दफ्ला, मिरी, अबोर, अहप्पाटानी तथा मिश्मी जातियां हैं। तीसरा समूह लुशाई, आका तथा कुकी जातियों का है, जो दक्षिण से आकर बसी हैं तथा मैनपुरी और नागाजातियों में मिल गई हैं। कचारी, रामा तथा बोदो हिमालय के ऊँचे घास के मैदानों में निवास करते हैं। कोच, जो मंगोल जाति के हैं, आसाम के निचले भागों में रहते हैं। गोआलपाडा में ये राजवंशी के नाम से प्रसिद्ध हैं। सालोई कामरूप की प्रसिद्ध जाति है। नदियाल या डोम यहां की मछली मारने वाली जाति है। नवशाखा जाति के सदस्य तेली, ग्वाला, नापित (नाई), बरई, कुम्हार तथा कमार (लोहार) है। आधुनिक युग में यहां पर चाय के बाग में काम करनेवाले बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा अन्य प्रांतों से आए हुए कुलियों की संख्या प्रमुख हो गई है। (कै.ना.सिं.; न.ला.)

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