आसफ़उद्दौआ
(शासनकाल १५७५-१५९८), अवध
का नवाब वज़ीर
शुजाउद्दौला और
उम्मुतुल जौहर
का ज्येष्ठ पुत्र। पिता
ने पुत्र को शिक्षित
तथा सुसंस्कृत
बनाने में संपूर्ण
प्रयत्न किए, किंतु
वह प्रकृति से विलासी
और आमोदप्रिय
निकल गया। गद्दीनशीन
होते ही उसने
अनुभवी पदाधिकारियों
का पदच्युत कर अपने
कृपापात्रों को
पदासीन कर दिया,
जिससे शासन की
दुरवस्था प्रारंभ
हो गई। अपनी माता
के अनुशासन से
बचने के लिए राजधानी
फैजाबाद से लखनऊ
स्थानांतरित
कर दी, जिसे उसने
पूरे मनोयोग
से संवारा, और
शीघ्र ही लखनऊ
अवध की कला और
संस्कृति का प्रमुख
केंद्र बन गया। किंतु
दरबारी कुमंत्रणाओं
को और आधिक
छूट मिलने लगी।
उसने अपनी शक्ति
और उत्तरदायित्व
पहले अपने प्रथम
मंत्री मुर्तजा
खां, जिसकी हत्या
कर दी गई, और
फिर अपने चौथे
मंत्री हैदरअली
बेग को, जो वारेन
हेस्टिंग्ज़ के पूर्ण
प्रभाव में था, अर्पित
कर दी। नवाब
का ईस्ट इंडिया
कंपनी से संपर्क
तथा तज्जनित परिणाम
उसके शासनकाल
की विशिष्ट घटना
थी। गवर्नर जनरल
वारेन हेस्टिग्ज़
का अवध की बेगमों
के साथ दुर्व्यवहार
इतिहासप्रसिद्ध
है, विशेष रूप से
इसलिए भी कि हेस्टिंग्ज़
के इस अनैतिक आचरण
की उस समय ब्रिटिश
पार्लामेंट में
बड़ी कटु आलोचना
हुई। अपने दुर्व्यसनों
के कारण आसफउद्दौला
पर ईस्ट इंडिया
कंपनी का ऋण
बढ़ गया। उधर कंपनी
की आर्थिक दशा
भी संकटाकीर्ण
हो गई। अस्तु, हेस्टिंग्ज़
ने कंपनी की आर्थिक
दशा सुधारने
के लिए बेगमों
से उनका निजी
धन हस्तगत करने
का निश्चय किया।
इसके लिए इकरारनामे
के विरुद्ध उसने आसफउद्दौला
को बेगमों और
उनके नौकरों
के साथ घृणित
व्यवहार किया।
सामर्थ्यहीन नवाब
के शासन में हेस्टिंग्ज़
के विस्तृत हस्तक्षेप
के फलस्वरूप तथा
परोक्ष और अपरोक्ष
रूप में अंग्रेजी प्रभुत्व
और अंग्रेज साहसिकों
के अधिक्य के कारण
शासकीय अव्यवस्था
और भी विशृंखल
हो गई। किंतु आसफउद्दौला
ने निस्संदेह संस्कृति,
साहित्य तथा कला
को, विशेष रूप
से स्थापत्य को,
अमित प्रोत्साहन
दिया। लखनऊ की
साजसज्जा ने दिल्ली
को भी मात कर
दिया। उसने प्राय:
४०० उद्यान तथा अनके इमारतों
का निर्माण किया
जिनमें बड़ा इमामबाड़ा
प्रमुख है। उसकी
उदारता 'जिसको
न दे मौला, उसको
दे आसफलउद्दौला
के कथन के रूप में
जनस्मृति का अंश
बन गई, यद्यपि वह
दयाशीलता की
भावना से उत्पन्न
न होकर उसकी
अहंमन्यता, सनकीपन
तथा फिजूलखर्ची
का ही परिचायक
थी। (रा.ना.)