आवर्त सारणी ऐसी सारणी हे जिसमें तत्वों का क्रमबद्ध समूहों में वर्गीकरण रहता है तथा समान गुणवाले तत्व क्षैतिज अथवा उर्ध्वाधर अनुक्रम से संबंधित स्थानाें पर पाए जाते हैं। इस सारणी से ज्ञात तत्वों के अज्ञात गुणों के अतिरिक्त अज्ञात तत्वों के गुण भी, सारणी में उनकी स्थिति देखकर बताए जा सकते हैं।
इतिहास-भारत, अरब और युनान के समान पुराने देशों में चार या पांच तत्व माने जाते थे--छिति-जल-पावक-गगन-समीरा (तुलसी), अर्थात् पृथिवी, जल, तेज, वायु, और आकाश। पर बॉयल (१६२७-९१) ने तत्त्वों की एक नई परिभाषा दी, जिससे रसायनज्ञों को रासायनिक परिवर्तनों और प्रतिक्रियाओं के समझने में बड़ी सहायता मिली। साथ ही साथ बॉयल ने यह भी बताया कि तत्वों की संख्या सीमित नहीं मानी जा सकती। इसका फल यह हुआ कि शीघ्र ही नए नए तत्वों की खोज होने लगी और १८वीं सदी के अंत तक तत्वों की संख्या ६० से अधिक पहुँच गई। इसमें से अधिकांश तत्व ठोस थे; ब्रोमीन और पारद से समान कुछ तत्व साधारण ताप पर द्रव भी पाए गए और हाइड्रोजन, आक्सिजन आदि तत्व गैस अवस्था में थे। ये सभी तत्व धातु और अधातु दो वर्गो में भी बांटे जा सकते थे, पर कुछ तत्वों, जैसे बिसमथ और ऐंटीमनी, के लिए यह कहना कठिन था कि ये धातु हैं या अधातु।
तत्वों की आवर्त सारणी
यह जुलियस टामसेन द्वारा निर्मित की गई थी और यहाँ कुछ संशोधित रूप में दी गई है। प्रत्येक स्तंभ एक
आवर्त प्रदर्शित करता है। समान गुणधर्म के तत्वों को रेखाओं से संबंधित किया गया है।
रसायनज्ञों ने इन तत्वों के संबंध में ज्यों-ज्यों अधिक अध्ययन किया, उन्हें यह स्पष्ट होता गया कि कुछ तत्व गुणधर्मो में एक दूसरे से बहुत मिलते जुलते हैं, और इन समानताओं के आधार पर उन्होंने इनका वर्गीकरण करने का प्रयत्न किया। डाल्टन का परमाणु वाद प्रतिपादित होने के अनंतर ही इन तत्वों के परमाणुभार भी निकाले गए थे। सन् १८२० में डोबेराइनर ने यह देखा कि समान गुणवाले तत्व तीन तीन के समूहों में पाए जाते हैं जिन्हें त्रिक (ट्रायड) कहा गया। ये त्रिक दो प्रकार के थे-पहले प्रकार के त्रिकों में तीनों तत्वों के परमाणुभार लगभग परस्पर बराबर थे, जैसे लोह (५५.८४), कोबाल्ट (५८.९४) और निकेल (५८.६९) में अथवा ऑसमियम (१९०.२), इरीडियम (१९३.१) और प्लैटिनम (१९५.२५) में। दूसरे प्रकार का त्रिकों में बीचवाले तत्व का परमाणुभार पहले और तीसरे तत्वों के परमाणुभारों का मध्यमान या औसत था, जैसे क्लोरीन (३५.५), ब्रोमीन (८०) और आयोडीन (१२७) में ब्रोमीन तत्व का परमाणु क्लोरीन और आयोडीन के परमाणुओं के जोड़ के आधे के लगभग है।
तत्वों के वर्गीकरण का एक नया प्रयास न्यूलैंड्स ने सन् १८६१ के लगभग किया। उसने तत्वों को परमाणुभार के क्रमों के अनुसार वर्गीकृत करना आरंभ किया। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि परमाणुभार के क्रम से रखने पर तत्वों के गुणों में क्रमश: कुछ विषमताएँ बढ़ती जाती हैं, पर सात तत्वों के बाद आठवाँ तत्व ऐसा आता है जिसके गुण पहले तत्व से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं। इसे सप्तक का सिद्धांत (लॉ ऑव ऑक्टेब्ज़) कहा गया, जैसे मानो हारमोनियम के स रे ग म प ध नि स' रे' ग' म' प' ध' नि' आदि स्वर हों, जिसमें सात स्वरों के बाद स्वर की फिर आवृत्ति होती है। न्यूलैंड्स के वर्गीकरण की तीन पंक्तियाँ निन्नांकित प्रकार की थीं :
हा लि बंल बो का ना औ १ ७ ९ ११ १२ १४ १६ फ्लो सो मैग्नि ऐ सि फा गं १९ २३ २४ २७ २८ ३१ ३२ क्लो पो कै क्रो टाइ मैं लो ३५.५ ३९ ४० ५२ ४८ ५५ ५६
जैसे-जैसे सप्तक नियम और आगे चलाया गया, इसकी सफलता में संदेह होने लगा और न्यूलैंड्स के वर्गीकरण से रसायनज्ञों को संतोष नहीं हुआ। न्यूलैंड्स के समय में ही सन् १८६२ के लगभग डिचैकार्टो ने भी परमाणुभार के क्रम से तत्वों को सर्पकुंडली की भांति सजाने का प्रयत्न किया था। यह प्रयत्न भी यह व्यक्त करता था कि परमाणुभार के क्रम और तत्वों के गुणों के आवर्तन का संबंध है।
सन् १८६९ में
रूसी रसायनज्ञ
मेंडलीफ (द्मित्री
आइनोविच मेंडेलेएफ़)
ने पहली बार
आवर्त नियम स्पष्ट
शब्दों में घोषित
किया। उसने कहा
कि तत्वों के भौतिक
और रासायनिक
गुण उनके परमाणुभारों
के आवर्तफलन
हैं। आवर्त अथवा
आवृत्ति शब्द का
अर्थ लौटना या
बार बार आना
है। अंकगणित की
आवर्त संख्याओं
से सभी को परिचय
हे, जैसे १=
.०७६९२३०७६९२३... अथवा .०७६९२३, अर्थात्
दशमलव बनाने
में ०७६९२३ ये छह अंक बार
बार आतें हैं। इसी
प्रकार हम यदि
परमाणुभार
के क्रम से तत्वों
को सजाएँ तो
बार बार एक से
ही गुणधर्मवाले
तत्व एक से ही स्थानों
पर पाए जायंगे।
इसी को गणित
की भाषा में हम
कहते हैं कि तत्वों
के गुण परमाणुभारों
के आवर्तफलन
हैं।
जिस समय रूस में मेंडलीफ तत्वों के इस प्रकार के वर्गीकरण का प्रयास कर रहा था, लोथरमायर ने भी (१८७० में) आवर्त नियम की दूसरी तरह से अभिव्यक्ति की। उसने विभिन्न तत्वों के परमाणु आयतन निकाले, अर्थात् तत्वों के परमाणुओं को उनके घनत्वों से विभाजित करके जो संख्याएँ प्राप्त की उन्हें उसने तत्वों का परमाणु आयतन के हिसाब से एक वक्र खींचा। ऐसा करने पर उसे एक आवर्तवक्र प्राप्त हुआ और उसने देखा कि समान गुणधर्मवाले तत्व इस वक्र पर एक सी ही स्थिति पर हैं।
मेंडलीफ के समय तक सब तत्वों की खोज नहीं हो पाई थी, फिर भी अपनी आवर्त सारणी को मेंडलीफ ने इतनी सावधानी से रचा कि उसके आधार पर उसने कई अज्ञात तत्वों के गुणधर्मो की भविष्यवाणी की, जो अब स्कैंडियम, गैलियम और जर्मेनियम कहलाते हैं। उसने जिस संभावित तत्व का नाम एका-बोरान दिया था उसका पता सन् १८७९ में चला और उसे स्कैंडियम कहा गया। उसने जिसे एका-ऐल्यूमिनियम कहा था उसका नाम १८७६ में गैलियम पड़ा और मेंडलीफ का एका-सिलिकन १८७६ में आविष्कृत होने पर जर्मेनियम नाम से विख्यात हुआ। मेंडलीफ ने अपने आवर्त नियम के आधार पर बहुत से तत्वों के प्रचलित परमाणुभारों को भी संशोधित किया और बाद के प्रयोगों ने मेंडलीफ के संशोधनों की पुष्टि की।
मेंडलीफ के समय के बाद से उसकी आवर्त सारणी में बहुत से परिवर्तन और सुधार हुए। सन् १९१३ में मोसले ने यह बताया कि प्रत्येक तत्व की एक निश्चित परमाणुसंख्या है। यह परमाणुसंख्या परमाणुभार से भी अधिक महत्व की है, क्योंकि एक ही तत्व कई अलग अलग परमाणुभारों का तो हो सकता है, पर तत्व की परमाणुसंख्या स्थिर है बदलती नहीं। मोसले के समय से आवर्त नियम परमाणुभार की अपेक्षा से नहीं, प्रस्तुत परमाणु संख्या की अपेक्षा से व्यक्त किया जाने लगा। अब है, न कि परमाणु के क्रम से। परमाणुभार के क्रम से सज्जित करने में कभी कभी वर्गीकरण में दोष आ जाते थे और मेंडलीफ भी इन दोषों से अवगत था। उसने अपनी सारणी में परमाणुभारों के क्रम की कई स्थलों पर उपेक्षा की है, जैसे टेल्यूरियम को आयोडीन के पहले स्थान दिया है, यद्यपि टेल्यूरियम का परमाणुभार आयोडीन से अधिक है। इसी प्रकार परमाणुभार के क्रम की अवहेलना करके निकेल को कोबल्ट के बाद स्थान दिया है। परमाणु का क्रम देने पर ये दोष मिट जाते हैं।
मेंडलीफ के समय में वायुमंडल की हीलियम, नीआन, आर्गन, क्रिप्टनआदि गैसें ज्ञात न थीं। जब रैमज़े ने इनका आविष्कार किया और रसायनज्ञों ने देखा कि इन तत्वों के यौगिक नही बनते और इस अर्थ में ये अक्रिय हैं, तो इन्हें सारणी में एक अलग समूह में रखा गया। इसका नाम शून्यसमूह पड़ा। विद्युद्धनात्म्क और विद्युदृणात्मक प्रवृत्तियों के तत्वों के समूहों को संयुक्त करनेवाला शून्य विद्युतप्रवृत्ति का एक समूह होना ही चाहिए था।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी-मेंडलीफ की आवर्त सारणी में नौ समूह हैं जिन्हें क्रमश:शून्य, प्रथम, द्वितीय...अष्टम समूह कहते हैं। ये समूह उन तत्वों की संयोजकताओं के भी द्योतक हैं। प्रत्येक समूह में दो उपसमूह हैं-क और ख। बाईं ओर से दाईं ओर की जानेवाली दस पंक्तियां हैं, जिन्हें काल कहते हैं। वस्तुत: काल सात हैं, पर चौथे, पांचवे और छठे कालों में से प्रत्येक में दो दो श्रेणियां हैं। इस प्रकार कुल पंक्तियां दस हुई। लोथरमायर के वक्र में भी ये सातों काल स्पष्ट हैं।
जब तत्वों के परमाणुओं के इलेक्ट्रान विन्यास का पता चला, तब आवर्त नियम का महत्व और भी अधिक स्पष्ट हो गया। तत्वों की परमाणुसंख्या यह भी बताती है कि उस तत्व में विभिन्न परिधियों पर चक्कर लगानेवाले कितने इलेकट्रान हैं (द्र. 'परमाणु')। तत्वों के विन्यास में कई कक्षाएँ या परिधियां हैं और इन कक्षाओं या परिधियों में कितने इलेक्ट्रान आ सकते हैं, यह संख्या भी निश्चिम है। इन कक्षाओं अथवा परिधियों पर अधिक से अधिक क्रमश: २, ८, १८, ३२, ... इलेक्ट्रान रह सकते हैं। साथ ही साथ यह भी नियम है कि सबसे बाहरी परिधि पर आठ से अधिक नहीं रहेंगे और उससे पीछे वाली पर १८ इलेक्ट्रान से अधिक नहीं। इस नियम ने यह स्पष्ट कर दिया कि कुछ कालों में क्यों १८ और कुछ क्यों ३२ तत्व हें। इसने यह भी व्यक्त किय कि दुष्प्राप्य पार्थिव तत्व (लैंथेनम के बाद परमाणुसंख्या ५८ से ७१ तक) क्यों १४ ही हो सकते हैं।
जूलियस टामसेन ने इलेक्ट्रान विन्यास के हिसाब से जो आवर्त वर्गीकरण दिया, वह भी महत्वपूर्ण है। यह वर्गीकरण बताता है कि आवर्तन २, ८, १८, ३२,... परमाणुसंख्याओं पर होता है (द्र.चित्र)।
यूरेनियम की परमाणुसंख्या ९२ है। आवर्त वर्गीकरण में सबसे पहला तत्व अब हाइड्रोजन नहीं, बल्कि न्यूट्रान माना जाता है, जिसकी परमाणु संख्या शून्य (०) है। हाइड्रोजन से लेकर यूरेनियम तक के ९२ तत्व भूस्तर पर प्रकृति में पाए जाते हैं, शेष नहीं; पर अब तो कृत्रिम विधि से यूरेनियम के बाद के भी सात आठ तत्व बनाए जा सकते हैं-नेप्च्यूनियम (९३), प्लूटोनियम (९४), अमरीकियम (९५), क्यूरियम (९६), बर्केलियम (९७), कैलिफोर्नियम (९८), आइंस्टियम (९९), शतम् (१००) आदि। इन्हें ऐक्टिनाइड कहा जाता है। जैसे लैंथेनम (५७) के बाद १४ विरल पार्थिव तत्व हैं, उसी प्रकार ऐक्टीनियम (८९) के बाद १४ तत्वों का होना, जिनका अभी पता नहीं है, असंभव बात नहीं है। इन नए तत्वों का अस्तित्व आवर्त नियम के सर्वथा अनुकूल हैं।
रूसी रसायनज्ञ मैंडलीफ ने अपने समय (१८६९) तक ज्ञात तत्वों को, बढ़ते हुए परमाणुओं के क्रम में एक सारणी के रूप में व्यवस्थित किया। इसे मैंडलीफ की आवर्त सारणी कहते हैं। आधुनिक आवर्त सारणी में मैंडलीफ के पश्चात् मालूम किए गए कई तत्व सम्मिलित हैं और इस वर्गीकरण में तत्वों का स्थान उनकी परमाणु संख्या पर आधारित है (द्र. चित्र)।
आधुनिक आवर्त सारणी को कभी कभी बोर की सारणी भी कहते हैं। इस सारणी की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:
(१) इसमें १६ उर्ध्वाधर खाने हैं जिन्हें उपवर्ग कहते हैं। विभिन्न उपवर्गो को IA, IB, IIA, IIB...VIIA, VIIB, VIII तथा ० संख्याओं द्वारा सूचित किया जाता है।
(२) इसके क्षैतिज खानों को आवर्त कहते हैं।
आवर्त सारणी की सहायता से रसायन का अध्ययन बहुत सरल हो जाता है। अब तक प्रामाणिक रूप से ज्ञात ११४ तत्वों का अध्ययन केवल नौ वर्गसूमहों के अध्ययन में बदल जाता है। चूंकि एक वर्गसमूह के सभी तत्वों के गुणों में समानता होती है, अतं: किसी एक तत्व के गुण का साधारण ज्ञान प्राप्त कर उस वर्गसमूह के अन्य तत्वों के गुणों का भी अध्ययन हो जाता है। जैस, Na के गुणों का अध्ययन यदि कर लीजिए तो उपवर्ग I A के अन्य तत्वों के गुणों का अध्ययन समान तौर पर हो जाता है।
सं.ग्रं.-जे.डब्ल्यू. मेलर : ए कॉम्प्रिहेंसिव ट्रीटिज़ ऑन इनॉर्गेनिक ऐंड थ्योरेटिकल केमिस्ट्री (१९२२); ई. रैबिनोविटश और ई. थिलो : पीरिओडिशेस सिस्टेम (स्टुट गार्ट १९३०)। (स.प्र., नि.सिं.)