आल्वा, फेरनान्यो पतोलेयो (१५०७-८२) स्पेनी सेनापति, राजनीतिज्ञ और डयूक। जन्म पीएद्राहिटा में; मृत्यु थोमर में। इसके दादा फ्रेद्रिक ने इसकी शिक्षा दी। सात साल की आयु में दादा के साथ नवर्रा की लड़ाई में गया। १६ साल की आयु में स्पेनी सेना में भी भरती हुआ। इसने फुएनतारिया जीता और उसका गवर्नर बनाया गया। १५२९-१५३२ में सम्राट् चार्ल्स पंचम के साथ इटली में रहा। हंगरी में तुर्को से लड़ा और यश कमाया। १५३५ में त्यूनीशिया की विजय को भेजी सेना का सेनापति बनाया गया और सफल हुआ। १५३६ में मार्सेई के घेरे में भाग लिया, पर विफल रहा। लेकिन दुर्दांत महत्वाकांक्षा के कारण ऊँचा ही उठता गया। अल्जीरिया विजय के लिए जा रही स्पेनी सेना का सेनापति बना, किंतु यहां इसको अपयश ही मिला। सेना का इसने पुनस्संगठन किया।

प्राय: अजेय होकर भी वह अदूरदर्शी, अयोग्य और असहिष्ण् शासक एवं राजनीतिज्ञ था। फलत: इसकी विजयें व्यर्थ हो गईं। लूथरीय सेनाओं के साथ उसने जो बर्बरता बरती उससे जर्मनी और नेदरलैंड में स्पेनियों के प्रति घृणा हो गई।

रक्तपरिषद् (कौंसिल ऑव ब्लड) ने राजद्रोह के संदेह मात्र में और प्रोटेस्टेंटों से सहानुभूति रखने के आरोप में ही पाँच सालों में १,८०० को फाँसी दी, १०,००० को देश से निर्वासित कर दिया। परंतु कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट का भेद न कर सब पर समान रूप से 'एलक्यूबेला' (एक स्पेनी कर) लगाया। इससे हालैंड और जीलैंड में असंतोष की ज्वाला भड़क उठी और स्पेनी शासन के प्रतिरोध की भावना उग्र हो गई। इसी समय स्पेनी बेड़ा भी नष्ट हो गया। इससे भी इसकी शक्ति कम हो गई। स्वास्थ्य नष्ट हो गया। इससे भी इसकी शक्ति कम हो गई। स्वास्थ्य नष्ट हो जाने के कारण स्पेन वापस बुलाने की माँग की, जो मान ली गई।

इटली में पोप की राजनीतिक सत्ता को फ्रांस की मददके बावजूद अंत करने का (१५५९) श्रेय आल्वा को ही है। फिलिप द्वितीय का यह आठ साल परराष्ट्रमंत्री रहा। लेकिन राजा की इच्छा के प्रतिकूल अपने पुत्र के विवाह में मदद देकर राजकोप भी भोगा और १५७९ में निर्वासित कर दिया गया। उजेदो के किले में जब वह दिन बिता रहा था, तब पुर्तगाल में विद्रोह हो गया। इसको दबाने के लिए १५८० में उसको बुलाना पड़ा। आठ सप्ताहों में पुर्तगाल की उसने विजय कर ली। दो साल बाद १५८२ में मर गया।

(अ.कु.वि.)