आर्सेनिक रसायन की आवर्तसारणी के पंचम मुख्य समूह का एक तत्व है। इसकी स्थिति फासफोरस के नीचे तथा ऐंटीमनी के ऊपर है। आर्सेनिक में अधातु के गुण अधिक और धातु के गुण कम विद्यमान हैं। इस धातु को उपधातु (मेटालॉयड) की श्रेणी में रखा जाता है। आर्सेनिक से नीचे ऐंटीमनी में धातुगुण अधिक हैं तथा उससे नीचे बिस्मथ पूर्णरूपेण धातु है। पंचम मुख्य समूह में नीचे उतरने पर धातुगुण में वृद्धि होती है।
आर्सेनिक की कुछ विशेषताएं निम्नांकित हैं :
संकेत : आ (अंतरराष्ट्रीय ॠद्म है)
परमाणु अंक ३३
परमाणु भार : ७४.९६
आर¸ ¸ + आयन का अर्धव्यास : ०.६९´१०-८ सेंटीमीटर
गलनांक : ८२०° सेंटीग्रेड (३६ वायुमंडल दाब पर)
विद्युत्प्रतिरोधकता : ३.५´१०-५ (ओह्म-सेंटीमीटर) २०° सें. पर
आर्सेनिक सल्फाइड का पता बहुत पहले लग चुका था। कौटिल्य ने अपने 'अर्थशास्त्र' में इसका वर्णन किया है। उसमें इस अयस्क का नाम हरिताल है। प्राचीन काल में इसका उपयोग हस्तलिखित पुस्तकों में अशुद्ध लेख को मिटाने के लिए किया जाता था। यूनानियों ने आर्सेनिक सल्फाइड का अध्ययन ईसवी से चौथी शताब्दी पूर्व किया। १३वीं शताब्दी में प्रसिद्ध कार्यकर्ता ऐलबर्टस मैगनस ने सल्फाइड अयस्क को साबुन के साथ गर्म करके एक धातु से मिलता जुलता पदार्थ बनाया। सन् १७३३ ई. में ब्रैंट ने यह सिद्ध किया कि आर्सेनिक एक तत्व है। सन् १८१७ ई. में स्वीडन देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक बर्जीलियस ने इसका परमाणु भार निकाला।
उपस्थिति-यौगिक अवस्था में आर्सेनिक पृथ्वी पर अनेक स्थानों में पाया जाता है। ज्वालामुखी के वाष्पों में, समुद्र तथा अनेक खनिजीय जलों में यह मिश्रित रहता है। आर्सेनिक के मुख्य अयस्क आक्साइड तथा सल्फाइड हैं। कहीं-कहीं यह तत्व अन्य धातुओं के साथ यौगिक रूप में मिलता है, मुख्यत: सिल्वर, ऐंटीमनी, ताम्र, लौह और कोबाल्ट के साथ आर्सेनिक यौगिक बनाता है।
गुणधर्म-साधारण ताप पर आर्सेनिक के दो भिन्न-भिन्न अपर रूप होते हैं, एक धूसर रंग का आर्सेनिक तथा दूसरा पीला आर्सेनिक।
धूसर रंग का आर्सेनिक अपारदर्शी है। इसके मणिभ षट्कोणीय, कठोर, भंगुर तथा धातु की चमक लिए होते हैं। इसका आपेक्षिक घनत्व ५.७ है। यह आर्सेनिक तत्व का स्थायी रूप है।
पीला आर्सेनिक पारदर्शी होता है। इसके मणिभ घनाकार तथा नम्र होते हैं। इसका आपेक्षिक घनत्व २.० है। यह अस्थायी अपर रूप है। कार्बन द्विसल्फाइड में आर्सैनिक विलयन से पीला आर्सेनिक मणिभीकृत किया जाता है। पीले अपर रूप को गर्म करने या प्रकाश में रखने से वह धूसर रूप में परिणत हो जाता है। कुछ उत्प्रेरक पील अपर रूप को भूरे अपर रूप में परिवर्तित कर देते हैं।
आर्सेनिक के अणु ८००° सेंटीग्रेड तक आर४ तथा तथा १७००° सेंटीग्रेड पर आर२ रूप में मिलते हैं।
आर्सेनिक तत्व में उपचायक (आक्सिडाइज़िंग) तथा अपचायक (रिड्यूसिंग) दोनों ही गुण विद्यमान हैं। यह आक्सीजन, फ्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन, आयोडीन, गंधक, पोटैसियम क्लोरेट तथा नाइटेट द्वारा उपचयित (आक्सीकृत) हो जाता है। इसके विपरीत सोडियम, पोटैसियम तथा अन्य क्षारीय धातुएँ आर्सेनिक को उपचयित करती हैं। जिन अवस्थाओं में वह यौगिक बनाता है उनके अनुसार आर्सेनिक की दो, तीन तथा पांच संयोजकताएँ हैं, हाइड्रोजन के साथ आरहा३ यौगिक बनता है, जो साधारण ताप पर गैसीय, रंगहीन, विषैला तथा अस्थायी होता है। आरहा३ अथवा आर्सेनिक हाइड्राइड एक शक्तिशाली अपचायक है। यह ताप या प्रकाश द्वारा विघटित हो जाता है।
क्षार, क्षारीय मृदाएँ (ऐल्कैलाइन अर्थ्स) तथा कुछ अन्य धातुएँ जैसे यशद, एल्यूमीनियम आदि आर्सेनिक के साथ यौगिक बनाती हैं। ये प्रतिक्रियएँं आर्सेनिक के अधातु गुणधर्म की पुष्टि करती है।
आर्सेनिक अम्ल का सूत्र आर (औहा)३ अथवा हा३ और औै३ है। क्षार द्वारा इस अम्ल के क्रियात्मक लवण आर्सेनाइट कहलाते हैं। आर्सेनिक आक्साइड आथवा संखिया का सूत्र आर४ औ६ है। यह यौगिक कई अपर रूपों में मिलता है और शक्तिशाली संचयी (अक्युम्युलेटिव) विष है।
क्लोरीन, ब्रोमीन तथा आयोडीन के साथ आर्सेनिक त्रिसंयोजकीय यौगिक बनाता है। इन यौगिकों का विघटन बहुत कम हाता है। इस कारण इनमें लवण के गुण नहीं हैं।
आर्सेनिक के पाँच प्रधान यौगिक आक्साइड आर२औ५, आर्सेनिक अम्ल हा३आऔ४ तथा उससे बने आर्सिनेट सल्फाइड आर२ग५, और फ्लोराइड आरफ्लो५ हैं।
आर्सेनिक के कार्बनिक व्युत्पन्न भी बनाए गए हैं, जिनमें (काहा३)३ आर, (काहा३)४ आर क्लो, (काहा३)२ आर--आर (काहा३)२ और (काहा३)२आर औऔहा मुख्य हैं।
गुणात्मक विश्लेषण में आर्सेनिक को सल्फाइड के रूप में पारद, वंग (राँगा), ऐंटिमनी आदि के साथ अलग करते हैं। आर्सेनिक के यौगिक अधिकतर विषैले होते हैं। इसलिए इसकी सूक्ष्म मात्रा में उपस्थिति की पहचान करना, विलयन तथा गैस दोनों रूपों में, आवश्यक हो सकता है। आर्सेनाइट का विलयन ताँबे द्वारा अपचयित हो जाता है। ताँबें के टुकड़े को विलयन में डालने से उसपर आर्सेनिक की काली परत छा जाती है। आरहा३ अथवा आर्सीन का वाष्प सिल्वर नाइट्रेट को उपचयित कर देता है। आर्सीन का वाष्प गर्म नली में आर्सेनिक की काली तह जमा देता है; इस परीक्षा को मार्श की परीक्षा कहा जाता है।
उपयोग-आर्सेनिक आक्साइड आर्सेनिक का सबसे उपयोगी यौगिक है। यह तांबे, सीसे तथा अन्य धातुओं के अयस्क से सहजात के रूप में निकाला जाता है। आर्सेनिक आक्साइड अन्य आर्सेनिक यौगिकों के निर्माण में काम आता है। इसका उपयोग काँच बनाने तथा चमड़े की वस्तुएँ सुरक्षित करने में होता है। इस काम में लेड आर्सेनाइट, कैल्सियम आर्सेनाइट और ताँबे के कार्बनिक आर्सेनाइट का विशेष उपयोग होता है। आर्सेनिक के कुछ अन्य यौगिक वर्णकों (रंगों) के लिए विशेष उपयोगी होते हैं।
आर्सेनिक का उपयोग मिश्र धातुओं के निर्माण में भी होता हे। सीसे में एक प्रतिशत आर्सेनिक डालने से उसकी पुष्टता बढ़ जाती है। इस मिश्रण का उपयोग छर्रे बनाने में होता है। ताँबे के साथ थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक मिलाने पर उसका आक्सीकरण तथा क्षरण रुक जाता है।
आर्सेनिक के यौगिक प्राय: विषैले होते हैं। वे शरीर की कोशिकाओं में पक्षाघात (पैरालिसिस) पैदा करते हैं तथा अंतड़ियों और ऊतकों को हानि पहुँचाते हैं। आर्सेनिक खाने पर सिरपीड़ा, चक्कर तथा वमन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। कुछ व्यक्तियों का विचार है कि आर्सेनिक सूक्ष्म मात्रा में लाभकारी होता है। अत: उसके अनेक कार्बनिक तथा अकार्बनिक यौगिक रक्ताल्पता, तंत्रिकाव्याधि, गठिया, मलेरिया, प्रमेह तथा अन्य रोगों के उपचार में प्रयुक्त होते हैं। विशेषकर प्रमेह के उपचार में सालवारसन का उपयोग होता है, जो आर्सेनिक का कार्बनिक यौगिक आर्सफिनामीन हाइड्रोक्लोराइड है। इसक़ी संरचना निम्नलिखित है :
आर्सेनिक यौगिक उदरविष होते हैं। इस कारण वे पत्तियाँ खानेवाले कीटाणुओं को नष्ट करने में उपयोगी होते हैं। कैल्सियम आर्सिनेट टमाटर के कीड़े नष्ट करता हे। लेड आर्सिनेट फल, फूल तथा अन्य हरी तरकारियों के कीड़ों को नष्ट करता है। उन फलों तथा तरकारियों को, जिनपर आर्सेनिक यौगिकों का छिड़काव हुआ हो, अच्छे प्रकार से धोकर खाना चाहिए।
उत्पादन-आर्सेनिक आक्साइड को कोक (तपाया हुआ पत्थर का कोयला) द्वारा अपचयित करके आर्सेनिक तत्व का बनाया जाता है। कुछ आर्सेनिक यौगिकों को गर्म करने पर उनका विघटन हो जाता है। इस प्रकार की आर्सेनिक तत्व रूप में बनाया जाता है। अच्छा तथा शुद्ध मणिभ आर्सेनिक पाने के लिए ताप का नियंत्रण आवश्यक है। (र.चं.क.)