सर्पविद्या सर्पों से मनुष्य आदि काल से ही डरता आया है। उस समय मनुष्य नहीं समझते थे कि सभी सर्प विषधर नहीं होते। अत: सर्प के काटने से विष नहीं चढ़ता था तो समझा जाता था कि यह मंत्र का प्रभाव है। साँप के काटे पर मंत्र का प्रयोग करना बड़ी उपयोगी विद्या मानी जाती है। वैदिक युग में सर्पविद्या की भी गणना अन्य विद्याओं में की जाती थी। सर्पों को प्रसन्न करने के लिए मंत्र का प्रयोग होता था। इस समय भी सर्पदंश के विष को दूर करने के लिए कई प्रकार के मंत्र काम में लाए जाते हैं।

हिंदू लोग नागपंचमी पर सर्पों की पूजा करते हैं। साँप के काटने पर जब मंत्र का प्रयोग किया जाता है तो काटा हुआ मनुष्य प्रभावित होकर कभी कभी बात करने लगता है। यह संभव है कि ऐसे मनुष्य को विषहीन सर्प ने काटा हो। उस मनुष्य की बात साँप की बात मानी जाती है और मंत्रप्रयोक्ता उससे आग्रह करता है कि वह उस मनुष्य को छोड़ दे। ऐसा भी कहा जाता है कि मंत्रशक्ति से काटनेवाला सर्प वहाँ आ जाता है और कभी कभी अपने विष को वापिस चूस लेता है। परंतु इसमें तथ्य कितना है, कहना कठिन है। सर्पदंश पर मंत्रप्रयोग की कई विधियाँ हैं। कोई नीम के झौरे से, कोई झाडू से और कोई शास्त्र के द्वारा या अन्य विधि से मंत्र बोलकर विष उतारता है। ((स्वर्गीय) मथुरा लाल शर्मा)