सरी सक़्ती (शैख़) सरी अल सक़्ती (उपनाम हुसन सरी) बिन अल मुफ़्लिस सुन्नी संप्रदाय के एक सूफ़ी थे। जुनैद बग़्दाादी के चाचा होते थे। नूरी, खरज़ि तथा खैर नस्साज से दीक्षित थे। अपने समय के महान् सूफ़ी, सृष्टि के पथप्रदर्शक और बड़े आलिम (धर्मपंडित) समझे जाते थे। आध्यात्मिक सिद्धांतों में अल मुहास्वी के अनुयायी थे। उनके कथनानुसार ईश्वर और मानव प्रेमसत्र में संबद्ध हैं, और सच्चे प्रेमी को शारीरिक संताप सहन नहीं करना पड़ता। मर्द (पुरुष) वह है जो बाजार में भी ईश्वर के गुणगान में संलग्न रहे। महाबली तथा मल्ल वह है जो अपनी दुरभिलाषाओं को अपने वश में कर ले उन्होंने यह भी कहा कि जब हृदय में और कोई वस्तु होती है तो यह पाँच बातें वहाँ नहीं होतीं - ईश्वरभय, आशा, प्रेम, लज्जा तथा अनुकंपा। पुरुष वह है जिससे सृष्टि को किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचे। जुनैद बग़्दाादी के कथानुसार सरी सक़्ती चिंतन तथा ईश्वर-गुणगान में अद्वितीय थे। ९८ वर्षों तक कभी धरती पर नहीं बैठे। इब्ने हबल ने उनके इस मत का खंडन किया है कि कुरान के अक्षर मनुष्य रचित हैं। व्यापार करते थे। ९८ वर्ष की आयु में २८ रमज़ान २५० (८७० ई.) अथवा २५३ (८६७ ई.) को स्वर्गवास हुआ। समाधि बगदाद में है।

सं. ग्रं. - इब्न अल जौज़ी : तल्बीस इब्लीस (मिस्र, १३४०) १८०-१९७; ख्वाजा फ़रीदुदीन उत्तार, तजकिरतुल औलिया (निकलसन द्वारा संपादित) १,१७४-८४; मौलाना अब्दुर्रहमान जामी : नफ़्हातुल उंस (नवलकिशोर, लखनऊ १३२३) ५५-५७; दारा शिकोह : सफ़ीनतुल औलिया (उर्दू अनुवाद, कराँची, १९६१) ५८-५९; Encyclopaeadia of lslam (London 1934) 4,191 (मुहम्म्द उमर )