सरदार कवि ये काशिराज श्री ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह के आश्रित कवि थे। इन्होंने अपने को ललितपुर के निवासी हरिभजन कवीश्वर का आत्मज लिखा है। इनके पिता ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे। बंदीजन कविवर सरदार का रचनाकाल संवत् १९०२ से १९४० तक माना गया है। ब्रजभाषा की पुरानी परिपाटी पर काव्यरचना करनेवालों में ये अपने समय के वस्तुत: सरदार थे। इनकी शृंगार तथा भक्ति विषयक रचनाओं में पर्याप्त माधुर्य है। शृंगार के क्षेत्र में इनकी अंतर्वृत्ति अधिक रमी हुई दिख पड़ती है जिसके कारण नायिकाभेद एवं ऋतुवर्णन में इन्हें अच्छी सफलता मिली है। इनकी भाषा आलंकारिक एवं अनुप्रासयुक्त है। सरदार कवि की दूसरी उल्लेखनीय विशेषता यह है कि प्राचीन काव्यों की इनकी सरस टीकाएँ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। टीकाओं में इन्होंने अपने प्रिय शिष्य कविवर नारायण से भी सहायता ली है जिसका उल्लेख कई स्थलों पर है। यह इनके हृदय की विशालता का परिचायक है। आश्रयदाता के प्रशस्तिवर्णन में इन्होंने भी परंपरानुसार अतिश्योक्ति का सहारा लिया है। काशिराज से इन्हें काफी सम्मान और धन प्राप्त हुआ था।
कृतियाँ - साहित्यसरसी, हनुमतभूषण, मानवभूषण, तुलसीभूषण, व्यंग्यविला, षट्ऋतुवर्णन, रामायणरतनाकर, साहित्यसुधाकर, रामलीलाप्रकाश आदि। टीकाएँ - सुखविलासिका, दूसरा नाम काशिराजप्रकाशिका (रसिकप्रिया की टीका), कविप्रिया का तिलक, सूरकृत दृष्टिकूट का तिलक, बिहारी सतसई का तिलक। शृंगारसंग्रह (प्राचीन कव्यसंग्रह)।
सं. ग्रं. - खोजविवरण १९०९-११; आचार्य रामचंद्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास। (रामशंकर पांडेय)