सरकार, यदुनाथ (जदुनाथ) (१८७०-१९५८) का जन्म १० दिसंबर १८७० को राजशाही (पू. पाकिस्तान) से ८० मील उत्तर-पूर्व करछमरिया गाँव के एक धनाढ्य कायस्थ घराने में हुआ। शिक्षा राजशाही और कलकत्ते में हुई। १८९२ में एम. ए. की परीक्षा अंग्रेजी साहित्य में प्रेसीडेंसी कालेज से प्रथम श्रेणी में पास की और न केवल सर्वप्रथम रहे, किंतु अपने प्राप्त अंकों द्वारा एक नया रेकार्ड स्थापित किया। रिपन कालेज और विद्यासागर कालेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक का कार्य करने के पश्चात् १८९८ में प्रांतीय शिक्षा सेवा में चुन लिए गए और कलकत्ता, पटना तथा उत्कल में क्रमश: अँग्रेजी साहित्य व इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे। सबसे लंबा काल पटना में (१९०२-१९१७, १९२३-१९२६) व्यतीत किया और वहीं से १९२६ में अवकाश ग्रहण किया। १९१७ में उनकी नियुक्ति काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के अध्यक्ष के पद पर हुई, किंतु अगले साल किन्हीं कारणों से उसे छोड़ कर रेवेंशा कालेज, उत्कल चले गए। निदान १९१९ में ब्रिटिश सरकार ने इनकी योग्यता पहिचानी और भारतीय शिक्षासेवा में इनकी नियुक्ति की। अवकाश ग्रहण करने के बाद दो साल के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय के अवैतनिक उपकुलपति रहे। १९२३ में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सी. आई. ई. और १९२९ में 'सर' की पदवी प्रदान की। १९४१ तक उन्होंने दार्जिलिंग और तत्पश्चात् कलकत्ता को अपना निवासस्थान बनाया, जहाँ १९५८ में उनकी मृत्यु हो गई।
यदुनाथ सरकार की पहली पुस्तक 'इंडिया ऑव औरंगजेब, टॉपॉग्राफी, स्टेटिस्टिक्स ऐंड रोड्स' (India of Aurangzeb : Topography, Statistics and Roads) १९०१ में प्रकाशित हुई। 'औरंगजेब का इतिहास' (History of Aurangzeb) के प्रथम दो खंड १९१९ में और पाँचवाँ तथा अंतिम खंड १९२८ में छपा। उनकी पुस्तक 'शिवाजी ऐंड हिज टाइम्स (Shivaji and His Times) १९१९ में प्रकाशित हुई। इन पुस्तकों में फारसी, मराठी, राजस्थानी और यूरोपीय भाषाओं में उपलब्ध सामग्री का सावधानी से उपयोग कर सरकार ने ऐतिहासिक खोज का महत्वपूर्ण कार्य किया और मूलभूत सामग्री के आधार पर खोज करने की परंपरा को दृढ़ किया। विशेष रूप से जयपुर राज्य में सुरक्षित फारसी अखबारात और अन्य अभिलेखों की ओर ऐतिहासिकों का ध्यान आकर्षित करने और उनको खोज कार्य के लिए उपलब्ध कराने का महान् कार्य सरकार ने किया। उनकी दृष्टि में औरंगजेब एक महान् विभूति था जिसने भारत को राजनीतिक एकतंत्र में बाँधने का प्रयास किया, किंतु अपनी योग्यता और अथक परिश्रम के बावजूद अपने दृष्टिकोण की संकीर्णता के कारण असफल रहा। शिवाजी ने भी एक नए एकतंत्र की नींव डाली, किंतु मराठा समाज की जातिव्यवस्था की विषमता को वह दूर न कर सके। अन्य मराठी नेताओं ने भी महाराष्ट्र के बाहर रहनेवाले हिंदुओं को लूट-पाटकर संकीर्णता का सबूत दिया। स्पष्ट है कि सरकार सामाजिक और धार्मिक संकीर्णता को भारत के राजनीतिक ऐक्य का सबसे बड़ा शत्रु समझते थे।
उत्तर मुगलकालीन भारत की ओर यदुनाथ सरकार का ध्यान विलियम इरविन कृत 'लेटर मुगल्स १७०७-१७३९' का संपादन करते समय (१९२२) आकर्षित हुआ। १७३९ से १८०३ तक मुगल साम्राज्य के विघटन और सूवाई रियासतों के उत्थान का इतिहास उन्होंने चार खंडों में १९३२ और १९५० के बीच (हिं. मुगल साम्राज्य का पतन, १९६१) प्रकाशित किया। ऐतिहासिक कला की दृष्टि से यह उनकी प्रौढ़तम रचना है। यदुनाथ सरकार की भाषा प्रभावशाली और सारगर्भित होते हुए भी बोझिल नहीं होती। ऐतिहासिक घटनाओं से नैतिक निष्कर्ष भी वे स्थान स्थान पर निकालते हैं।
यदुनाथ सरकार की अन्य कृतियों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं -
'एनेकडोट्स ऑव औरंगजेब' (१९१२, तीसरा संशोधित संस्करण, १९४९); 'चैतन्याज लाइफ़ ऐंड टीचिग्ज़' (१९२२, मूल लेख १९१२), 'स्टडीज इन मुगल इंडिया' (१९१९) 'मुगल ऐडमिनिस्ट्रेंशन', (दोनों खंड १९२५); 'बेगम समरू' (१९२५); 'इंडिया थ्रू दी एजेज़' (१९२८); 'ए शार्ट हिस्टरी ऑव औरंगजेब' (१९३०); 'बिहार ऐंड उड़ीसा ड्यूरिंग द फॉल ऑव द मुगल एंपायर' (१९३२); हाउस ऑव शिवाजी' (१९४०), 'मअसिर-ए-आलमगीरी' (अंग्रेजी अनुवाद, १९४७); 'हिस्टरी ऑव बंगाल' (दूसरा भाग, संपा., १९४८); 'पूना रेज़ीडेंसी कारेस्पॉन्डेंस' (Poona Residency correspondence) जिल्द १, ८ व १४ संपादित १९३०, १९४५, १९४९) 'आईन-ए-अकबरी' (जैरेट कृत अनुवाद का संशोधित संस्कण, (१९४८-१९५०); 'देहली अफ़ेयर्स, १७६१-१७८८' (१९५३); 'मिलिटरी हिस्टरी ऑव इंडिया' (१९६०)।
सरकार ने जयपुर राज्य का इतिहास भी लिखा। (सतीश चंद्र)