समूह (Groups) कभी कभी गणित में ऐसी क्रियाएँ भी दृष्टिगोचर होती है जब उनमें से एक एक करके दो क्रियाएँ की जाएँ तो फल वही निकलता है, जो उसी प्रकार की एक ही क्रिया से निकल आता है। तनिक इन चार संख्याओं पर विचार करें :

१, - १, ,

जिन्हें इस प्रकार भी लिख सकते हैं :

१, -१, ए, - ए।

यदि किसी राशि को इनमें से दूसरी और तीसरी संख्याओं से गुणा करें, तो वही फल निकलेगा तो जो अकेल चौथी संख्या से गुणा करने से निकलता है। इसी प्रकार, यदि उपर्युक्त संख्याओं में से किन्हीं दो से किसी राशि को गुणा करें, तो वही फल निकलता है जो उक्त संख्याओं में से एक ही संख्या से गुणा करने से निकल सकता है।

इस प्रकार की क्रियाओं के समुच्चय (set) को बंद समुच्चय कहते हैं और क्रियाओं के इस गुण को समूह गुण (Group property) कहते हैं।

प्रतिस्थापन समूह (Substitution Groups) - इस संबंध में सबसे पहला अध्ययन प्रतिस्थापन के बंद समुच्चयों का किया गया था और इनका प्रयोग सर्वप्रथम अक्षरों और चिह्नों पर किया गया था। गाल्वा (Galois) ने ऐसे बंद समुच्चय को संघ का नाम दिया था। तनिक इस अक्षरविन्यास पर विचार करें :

मान लें कि इन अक्षरों के क्रम को बदलकर इस प्रकार लिखते हैं :

तो स्पष्ट है कि हमारे चार प्रत्ययों १ २ ३ ४ का हेरफेर इस प्रकार ४ २ १ ३ हुआ है और प्रत्ययों ५ ६ का पारस्परिक हेरफेर ६ ५ हुआ है। सातवें प्रत्यय को ज्यों का त्यों छोड़ दिया गया है। पहले चार प्रत्ययों में से भी दूसरे प्रत्यय का स्थान अक्षुण्ण रखा गया है। अब मान लें कि इसी क्रमपरिवर्तन को इस प्रकार लिखते हैं :

() ()

पहले कोष्ठक का यह अर्थ है कि के स्थान पर रखो, के स्थान पर और के स्थान पर । इसी प्रकार दूसरे कोष्ठक का अर्थ यह है कि के स्थान पर रखो और के स्थान पर । यदि हम अपनी संकेत लिपि को और भी संक्षिप्त करना चाहें, तो उक्त प्रतिस्थापन को इस प्रकार भी लिख सकते हैं : (१ ४ ३) (५ ६)। प्रत्येक कोष्ठक के अंदर एक प्रतिस्थापन चक्र (cycle) पूरा हो जाता है।

यदि किसी समुच्चय के अक्षरों पर प्रतिस्थापन लगाया जाए और फिर नए क्रम पर प्रतिस्थापन फ लगाया जाए, तो इन दोनों क्रियाओं को मिलाकर प्रतिस्थापन पफ कहेंगे। यह प्रतिस्थापन क्रिया व्यत्तशील नहीं है। उदाहरण के लिए मान लें कि = (य) और = (य), तो का फल होगा । इस पर प्रतिस्थापन लगाने का फल होगा । अब देखना चाहिए कि प्रतिस्थापन फ प का क्या परिणाम निकलता है। सुच्चय पर लगाने का फल होगा , और इस फल पर लगाने का परिणाम होगा । स्पष्ट है कि यह प फ के फल से भिन्न है। अत: प फ फ प। जिस प्रतिस्थापन में केवल दो अक्षरों का एक चक्र हो, उसे पक्षांतरण (Transposition) कहते हैं।

यह सरलता से सिद्ध किया जा सकता है कि प्रतिस्थापनों का गुणन सहचरणशील (associative) है। अत: (फ ब) = (प फ)

अमूर्त (Abstract) समूह - यदि किसी समूह की ऐसी परिभाषा दी जाए जिसका उक्त समूह के तत्वों के गुणों से कोई संबंध न हो, तो ऐसे समूह को अमूर्त समूह कहते हैं। साधारणतया अमूर्त समूह निम्नलिखित नियमों का पालन करते हैं :

(१) समुच्चय के किन्हीं दो तत्वों क, ख का गुणनफल एक तीसरा तत्व ग होगा, जो उसी समुच्चय का एक तत्व होगा, अर्थात् क ख =

(२) तत्व सहचरणशील होते हैं, अर्थात्

क (ख ग) = क ख ग (क ख) ग।

(३) समुच्चय में एक तत्वऐसा भी होता है कि प्रत्येक तत्व के लिए क ऐ = ऐ क =। उक्त तत्व को सर्वसम तत्व (Indentical element) कहते हैं।

(४) समुच्चय के प्रत्येक तत्व का एक व्युत्क्रम तत्व - ऐसा होता है कि क क-=-=

सं. ग्रं. - एच. हिल्टन : ऐन इंट्रोडक्शन टु दि थिओरी ऑव ग्रूप्स ऑव फाइनाइट ऑर्डर (१९०८); एल. ई. डिक्सन : लीयिर ग्रूप्स विद ऐन एक्सपोज़िशन ऑव दि गाल्वा फील्ड थिओरी (लाइप्जिग) १९०१; डब्ल्यू बर्नसाइड : थिओरी ऑव ग्रुप्स ऑव फाइनाइट ऑर्डर (द्वितीय संस्करण १९१७)। (ब्रज मोहन)