समुच्चय सिद्धांत (Theory of Aggregates, or Sets) किसी भी प्रकार के अवयवों (वस्तुओं, विचारों या संकल्पनाओं) के समूह को समुच्चय कहते हैं। स्थूल रूप से अंग्रेजी समुच्चय के पर्याय सेट (set), ऐग्रिगेट (aggregate), क्लास (class), डोमेन (domain) तथा टोटैलिटी (totality) हैं। समुच्चय में अवयवों का विभिन्न होना आवश्यक है। यदि x समुच्चय A का कोई अवयव है, तो हम लिखते है : x A । सभी अवयवों का ब्यौरा न देकर, उन्हें नियम द्वारा भी बताया जा सकता है, जैसे विषम संख्याओं का समुच्चय। B को A का उपसमुच्चय (Subset) तब कहते हैं, जब B का प्रत्येक अवयव A का सदस्य हो और इसे इस प्रकार लिखते हैं : B A अथवा A B1 इसे यों भी पढ़ते हैं : B, A में समाविष्ट है। यदि A में कम से कम एक ऐसा अवयव हो जो B का सदस्य नहीं है और B, A का उपसमुच्चय है, तो B को A का वास्तविक (proper) उपसमुच्चय कहते हैं। ऐसे समुच्चय को, जिसका एक भी अवयव न हो, शून्य (null) समुच्चय कहते हैं और इसे f से प्रकट करते हैं। शून्य समुच्चय सैद्धांतिक विवेचन में उपयोगी होते हैं। समुच्चयों पर मूल क्रियाएँ ये हैं : तार्किक (logical) योग, तार्किक गुणन, तार्किक व्यकलन। दो समुच्चयों का योग A + B, जिसे A B अर्थात् A और B का संघ (union) भी कहते हैं, उन सभी अवयवों का, जो A और B दोनों में या किसी एक में हों, समुच्चय है। दो समुच्चयों का गुणनफल A B, जिसे A B भी लिखते हैं और जिसे A तथा B का सर्वनिष्ठ (intersection) कहते हैं, उन सभी अवयवों का, जो A तथा B दोनों के सदस्य हैं, समुच्चय है। अंतर A-B उन अवयवों का, जो A में हैं किंतु B में नहीं हैं समुच्चय है। यदि B A, तो A-B को A के प्रति B का संपूरक (complement), कहते हैं। तार्किक योग और गुणन सामान्य बीजगणित के साहचर्य (associative), क्रमविनिमेय (commutative) और वितरण (distributive) नियमों के अतिरिक्त एक नये वितरण नियम का पालन करते हैं : A + B C = (A + B) (A + C) और (A - B) (A - B) = A - (B + C), किंतु (A + B) - C कभी कभी A + (B - C) से भिन्न हो सकता है।

दो समुच्चयों का कार्तीय गुणनफल A B उन सभी युग्मों (x, y) का समुच्चय है, जिनमें पहला अवयव x, A का है और दूसरा अवयव y, B का समुच्चय है हम देखेंगे कि A B B A, किंतु (A + B) C = (A C) + (B C), (AB) C = (A C) (B C), अर्थात् कार्तीय गुणनफल, क्रमविनिमेय नियम का नहीं, वितरण नियम का पालन करता है। समुच्चयों के परिमाणों की तुलना एकैक संगतता (one to one correspondence) की संकल्पना पर आधारित है। अनंत समुच्य की यह विशेषता है कि इसके अवयवों की एकैक संगति एक उसके कुछ वास्तविक उपसमुच्चयों से स्थापित की जा सकती है (देखें संख्या)।

समुच्चय सिद्धांत सारे गणित का आधार है। इसका विवेचन सर्वप्रथम जॉर्ज कैंटर ने किया था और १९ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसका विशेष विकास हुआ।

स. ग्रं. - जॉर्ज कैंटर : कंट्रीब्यूशंस टु दि थ्योरी ऑव ट्रैंस फाइनाइट नंवर्सं; जे. ई. लिटिलवुड : एलिमेंट्स ऑव दि थ्योरी ऑव रीयल फक्शंस (१९२८); ई. डबल्यू. हॉब्सन: दि थ्योरी ऑव फंकशंस ऑव ए रीयल वैरिएबिल, खंड १ (१९२७)। (हरिश्चंद्र गुप्त.)