सफेदी (पुताई) दीवारों और छतगीरी आदि में चूने की पुताई सफेदी कहलाती है। सफेदी से सतह पर सफाई और दर्शनीयता आती है और किसी सीमा तक यह कीटाणुनाशक भी होती है। सफेदी करने के लिए सतह भली भाँति साफ और सूखी होनी चाहिए। यदि सतह बहुत चिकनी है, तो उसे रेगमाल से थोड़ा घिस देना चाहिए नहीं तो उसपर सफेदी नहीं लगेगी। पुरानी सफेदी पर पुन: सफेदी करनी हो, तो पुरानी पपड़ी साफ कर देनी चाहिए।
सामग्री - ताजा साफ अनबुझा चूना एक नाँद में डालकर, ऊपर से बहुत सा स्वच्छ पानी मिलाकर, मलाई जैसा पतला कर लेना चाहिए। फिर इसे खद्दर में से छानकर, प्रति घन फुट द्रव में १ पाउंड कीकर की गोंद या सरेस पानी में घोलकर, अथवा एक पाउंड चावल की माँड बनाकर, मिला देना चाहिए। थोड़ा सा नील या तूतिया मिलाने से सफेदी अच्छी खिलती है, चौंध नहीं देती और देखने में भली लगती है। इसी में भाँति भाँति के रंग मिलाने से सतह पर रंग भी आ जाता है। यह रंगपुताई कहलाती है।
सफेदी कूँची से दो बार से करनी चाहिए, एक बार खड़ी और दूसरी बार पड़ी। पहिली बार की पुताई हो तो केवल एक बार, अर्थात् पहिले खड़ी और उसपर तुरंत पड़ी, कूँची लगाना पर्याप्त होता है। (विश्वंनाथ प्रसाद गुप्त)