सपरी, एडवर्ड (१८८४-१९३९ ई.) अमरीका के प्रसिद्ध नृतात्विक भाषाशास्त्री। जन्म २६ जनवरी, १८८४ ई. को जर्मनी में हुआ। पाँच वर्ष की अवस्था में माता पिता के साथ अमरीका में आकर बस गए। १९०६ ई. में पुलिट्ज़र फेलोशिप लेकर 'जरमानिक्स' में एम. ए. तथा १९०९ में पी-एच.डी. डिग्री प्राप्त की। सन् १९१० में जियोलॉजिकल सर्वे ऑव कैनाडा के नृतत्व विभाग के अध्यक्ष होकर औटवा गए। कैनाडा में बिताए गए १५ वर्षों में सपीर ने नूत्का, अथापास्कन, नवाहो, सार्सी, टिनगिट और कुचिन आदि अनेक (रेड) इंडियन भाषाओं का क्षेत्रीय कार्य किया।
सन् १९२६ में वे शिकागो आए १९२७ से १९३२ ई. तक शिकागो विश्वविद्यालय में सामान्य भाषाशास्त्र एवं नृतत्व के प्रोफेसर रहे। इसी वर्ष येल विश्वविद्यालय के आग्रह पर वे न्यू हैवेन आए, जहाँ जीवन के अंतिम वर्षो तक वे नृतत्व एवं भाषाशास्त्र के प्रोफेसर रहे। अब तक सपीर अमरीकन नृतत्व के क्षेत्र में पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर चुके थे। सन् १९२९ में कोलंबिया विश्वविद्यालय ने इन्हें डी.एस-सी. की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। अपनी उत्कृष्ट सेवाओं के बल पर ही ये अमरीकन ऐअपालॉज़िकल एसोसिएशन और लिंग्विस्टिक सोसाइटी ऑव अमरीका के प्रेसीडेंट भी चुने गए। न्यू हैवेन की प्रशासकीय और अध्यापन संबंधी व्यस्तताओं ने सपीर को इतना झकझोर डाला कि ४ फरवरी, सन् १९३९ ई. को हृदय की गति रुक जाने से इनका निधन हो गया।
भाषाशास्त्र के अमरीकन स्कूल के उन्नायकों में फ्रेंत बोज, सपीर और ब्लूमफील्ड का नाम प्रमुख है। सपीर के समय तक अमरीकन लोग भाषातत्व और नृतत्व में काफी आगे बढ़ चुके थे। एक ओर ब्लूमफील्ड जैसे शुद्ध भाषाशास्त्री थे तो दूसरी ओर फ्रेंच बोज जैसे नृतत्वविद्। सपीर ने मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए इन दोनों के समन्वय का मार्ग प्रशस्त किया। रेड इंडियनों की अज्ञात भाषाओं का वैज्ञानिक विवरण देकर सपीर ने लोकसंस्कृति और नृतत्व के अनेक नए आयाम उद्घाटित किए, साथ ही संस्कृति का अनोखा विश्लेषण भी किया। संस्कृति के साथ व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार, रीतिरिवाज, फैशन और भाषा के विविध अंतरावलंबनों का सूक्ष्म अध्ययन कर सपीर ने नृतात्विक भाषाशास्त्र (Ethno Linguistics) को सुदृए बाया। इस प्रकार नृतात्विक भाषाशास्त्र को व्यवस्थित रूप देने, अमेरिंड भाषाओं का वैज्ञानिक विवरण प्रस्तुत करने और सामान्य भाषा तथा नृतत्व के अंतरावलंबन का मार्ग प्रशस्त करनेवालों में सपीर ने प्रकाशस्तंभ का काम किया। सपीर की महत्ता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि ३३ वर्षों के लेखनकाल में उन्होंने लगभग ३५० वैज्ञानिक निबंध और २५० कविताएँ भी लिखी। इनकी प्रसिद्ध कृति लैंग्वैज के अतिरिक्त विशिष्ट निबंधों का एक संग्रह भी 'सेलेक्टेड राइटिंग्ज ऑव एडवर्ड सपीर' के नाम से प्रकाशित है। (रमानाथ शर्मा)