सनातनानंद सकलानी 'सत्कविदास' का जन्म श्रीनगर में हुआ रतूड़ी जी की ही भाँति गढ़वाली और हिंदी दोनों भाषाओं में कविता करते थे। उनकी कुछ कविताएँ 'गढ़वाली' में प्रकाशित भी हुई थीं। हिंदी में उनकी कविताएँ 'सरस्वती', 'माधुरी' और 'बंगवासी' में छपती रहती थीं। वे हिंदी के उन गिने चुने कवियों में थे, जिनका अभ्युदय 'सरस्वती' के प्रकाशन के साथ हुआ था। १९०५ से १९२४ तक वे सरस्वती में लिखते रहे।