सनाउल्ला पानीपती शैख जलालुद्दीन पानीपती के वंशज थे। ७ वर्ष की उम्र में कुरान हिपज (कंठस्थ) किया और १६ वर्ष की अवस्था में शिक्षण से निवृत्त हुए। सर्वप्रथम शैखुल शयूख मुहम्मद आबिद सूनामी नक्शबंदी मुजद्ददी से दीक्षित हुए तथा उनकी शिक्षाओं द्वारा अध्यात्मवाद की 'फ़ना' की श्रेणी को प्राप्त किया। अध्यात्म गुरु के स्वर्गवास के उपरांत मिर्जा मज्हर जानजाना से दीक्षा ली। वह अत्यंत संयमी, निस्पृह तथा तपस्वी थे। मिर्जा मज्हर से खिलाफत का सम्मान प्राप्त करके अपनी जन्मभूमि पानीपत में एक खानकाह स्थापित की, धर्मप्रचार के कार्य में संलग्न हो गए और हजारों व्यक्तियों को ईश्वरदर्शन का मार्ग दिखाया। मिर्जा मज्हर ने उन्हें 'इल्मुल हुदा' की उपाधि से सम्मानित किया था। मिर्जा को अपने इस शिष्य के प्रति इतना अनुराग था कि एक अवसर पर उन्होंने कहा कि महाप्रलय के दिन जब ईश्वर मुझसे पूछेगा कि मेरे लिए क्या लाए हो तो कह दूँगा कि सनाउल्ला पानीपती को लाया हूँ। वह महान् धर्मपंडित थे तथा अनेक रचनाओं का श्रेय उन्हें प्राप्त है। उदाहरणतया, ७ भागों में तफसीरे मज्हरी, सैफुल मस्लूल, ईशादुल तालबीन माला बदमहता, हुकूकुल इस्लाम, शहाबे साकिब इत्यादि। कोई ३० से अधिक पुस्तकें और रिसाले उन्होंने लिखे। १२२५ (१८१० ई.) में स्वर्गवास हुआ। पानीपत में उनकी समाधि है। (मुहम्म्द उमर )