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सदिश विश्लेषण (Vector Analysis) गणित की वह शाखा है जो सदिश बीजगणित तथा अदिश बिंदु फलनों और सदिश क्षेत्रों के दिक् या काल परिवर्तन दर की व्याख्या करती है। सदिश (vector) एक सत्ता है, जो एक दिष्ट परिमाण (directed magnitude) को, जैसे बल या वेग को, निरूपित करती है और जिसे बराबर तथा समांतर रेखाखंडों की किसी पद्धति से निरूपित किया जाता है।
सामान्य रूप से सदिशों को क्लैरेंडन टाइप के अक्षरों से जताया जाता है और उसके परिमाण सामान्य टाइप के उन्हीं अक्षरों से जताए जाते हैं : अ, ब, स,....अ, ब, स, (A, B, C...., a, b, c,...) रेखा सदिश, जो सबसे सरल सदिश है, दो बिंदुओं म, प (OP) से निर्धारित होता है। ये बिंदु इस प्रकार के होते हैं कि सदिश का परिमाण सरल रेखा म प की लंबाई होती है और दिशा म प की ओर। यह सदिश संकेत रूप में म प द्वारा बताया जाता है। जिस सदिश का गुणांक (modulus) इकाई होता है, उसे एकांक सदिश (unit vector) कहते हैं। यदि दो सदिशों की लंबाई और दिशा एक हो, तो वे आपस में बराबर होते हैं।
सदिश योग - कतिपय सदिशों के ज्यामितीय योग ज्ञात करने की प्रक्रिया को सदिश योग कहते हैं। यानी इसके अंतर्गत दो या दो से अधिक सदिशों के तुल्यमान का एक सदिश निर्धारित किया जाता है। सदिशों का योग ज्ञात करने के लिए, उन्हें निरूपित करने वाली रेखाएँ एकरेखीय श्रेणी में, बिना दिशा बदले, इस प्रकार रखी जाती हैं कि पहली रेखा के बाद हर रेखा उस बिंदु से शुरु होती है जिसपर उसके पहले वाली रेखा समाप्त होती है। पहले सदिश के आरंभ बिंदु और अंतिम सदिश के अंतिम बिंदु को मिलानेवाली रेखा सदिशों का योग होती है। सदिश राशियों को त्रिभुज नियम के अनुसार संयोजित किया जाता है। इसके अनुसार यदि तीन बिंदु म, प और र इस प्रकार
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हों कि मप = अ और पर = य, तो सदिश मर, अ और ब का योग कहलाता है। यदि इस योग को स माना जाए, तो स = अ + ब।
� � �
स्पष्ट है कि दो सदिशों अ = मप तथा ब = मत्र का योग सदिश रम है, जो उस समांतर चतुर्भुज के विकर्ण से निर्धारित होता है, जिसकी भुजाएँ मप और मत्र हैं। क्रमविनिमेयता (commutativity) और साहचर्य (associativity) के नियम संदिशों के जोड़ने में लागू होते हैं, सदिशों की संख्या चाहे जितनी हो। योग पदों के क्रम (order) और समूहन (grouping) से निरपेक्ष होता है। यदि किसी सदिश के साथ ऋण चिह्न पूर्वलग्न हो, तो वह एक ऐसे सदिश को निरूपित करता है जिसका परिमाण तो मूल सदिश के बराबर हो किंतु दिशा विपरीत हो।
किसी वास्तविक संख्या त और किसी सदिश अ का गुणनफल त. अ द्वारा जताया जाता है। यह एक ऐसा सदिश होता है जिसकी लंबाई अ की। त। गुनी होती है और दिशा अ की ओर होती है, या अ के विपरीत होती है। यह त के धनात्मक या ऋणात्मक होने पर निर्भर करती है।
दो सदिशों का अदिश गुणनफल - दो सदिशों अ और ब का अदिश गुणनफल अ. ब, या ब. अ, द्वारा जताया जाता है और
अ. ब = ब. अ = अ ब कोज्या (अ, ब),
होता है, जिसमें कोज्या (अ, ब), अ और ब के नीचे के कोण को निरूपित करता है। यदि सदिश अ और ब एक दूसरे पर लंब हों तो अ ब, = o
दो सदिशों का सदिश गुणनफल - सदिशों अ और ब के सदिश गुणनफल को अ � ब द्वारा प्रदर्शित किया जाता है और परिभाषा के अनुसार
अ � ब = -ब � अ = अब ज्या (अ, ब)
जहाँ न, अ और ब पर लंब, ऐसा एकांक सदिश है कि यदि अ, न के चारों और ब के अभिमुख घूर्णन करे, तो न और घूर्णन की दिशा में वही संबंध होगा जो दक्षिणावर्ती पेंच (right handed screw) के प्रणोद (thrust) और ऐंठन (twist) में होता है।
अदिश त्रिगुण गुणनफल - अ.ब � स इसका उदाहरण है। जाहिर है कि
अ.ब � स = अ.न ब स ज्या (ब, स)
= अ ब स कोज्या (अ, न) ज्या (ब, स)
गुणनफल का मान सदिशों के चक्रीय क्रम पर निर्भर करता है और बिंदु या काट की स्थिति के निरपेक्ष है। यदि कोई एक अचक्रीय अंतर्विनिमय किया जाए, तो गुणनफल का चिह्न बदल जाता है। गुणनफल का परिमाण अ, ब, स द्वारा निरूपित रेखा सदिशों पर निर्मित समांतर षट्फलक के आयतन के तुल्यसंख्यक होता है।
सदिश त्रिगुण गुणनफल - अ (ब � स) एक उदाहरण है और
अ (ब � स) = ब (अ.स) -स अ (अ. ब)।
तीन से अधिक सदिशों के गुणनफल की आवश्यकता बिरले ही होती है।
एकांक सदिशों की इ - ज - उ (i, j, k) पद्धति - यदि इ, ज, उ तीन एकांक रेखा सदिश य, र, ल अक्षों की धनात्मक दिशा में हों, तो।
इ. इ = ज. ज = उ.उ = १
इ. ज = ज. उ = उ. इ = o
इ � इ = ज � ज = उ � उ = o
इ � ज = उ, ज � उ = इ, उ � इ = ज
और यदि
अ = अ१ इ + अ२ ज + अ३ उ
ब = ब१ इ + ब२ ज + ब३ उ
को
श्श् अ + ब = (अ१ + ब१) इ + (अ२ + ब२) ज +श् (अ३ + ब३) उ
श्श् अ ब. =श् अ१ + ब१ + अ२ + ब२ + अ३ + ब३
अ१ ब२ ब३
और अ � ब = ब१ ब२ ब३
इश् जश् उ
सदिश क्षेत्र - यदि दिक् का प्रत्येक बिंदु किसी सदिश से सहचरित हो, तो दिक् को सदिश क्षेत्र कहते हैं। गुरुत्वीय, चुंबकीय और वैद्युत क्षेत्र इसके उदाहरण हैं। मान लीजिए कि बिंदु प (य, र, ल) से सहचारि एक सदिश व निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जाता है :
व श्= व१ इ + व२ ज + व३ उ
और य + ताय, र + तार, ल + ताल किसी प्रतिवेशी (neighbouring) बिंदु के निर्देशांक हों, जिसमें ताय, तार, ताल; य, र, ल में अनंतसूक्ष्म वृद्धि के सूचक हैं, फिर यदि सदिश व में संगत वृद्धि को ता व द्वारा जताया जाता है तो
ताव = इ ताव१ + ज ताव२ + उ ताव३
जहाँ
ता व१ =
ता व२ =
ता व३ =
सदिश का डाइवर्जैंस और कर्ल - किसी भी सदिश फलन व से दो अन्य बिंदु फलन व्युत्पन्न किए जा सकते हैं। इनमें से एक अदिश और दूसरा सदिश होता है। इनका सदिश विश्लेषण में बहुत महत्व है। इनमें से पहला व का डाइवर्जैंस कहलाता है और इसकी परिभाषा निम्नलिखित होती हैं :
डाइव
व =
=
और दूसरा व का कर्ल कहलाता है जिसकी परिभाषा
कर्ल
व =
d/d य d/d र d/d ल
व१ व२ व३
इ ज उ
होती है। इनके मान अक्षों के संदर्भ में निश्चर होते हैं।
निम्नलिखित प्रसार सूत्र अत्यंत महत्वपूर्ण हैं :
डाइव (क्ष व) = Dक्ष. व + क्ष डाइव व
श्कर्ल (क्ष व) = Dक्ष � व + क्ष कर्ल व
डाइव (क्ष�व) = व. कर्ल क्ष - क्ष. कर्ल व
कर्ल (क्ष�व) = व.�क्ष-क्ष. Dव + क्ष डाइव व-व डाइव क्ष
ग्रेड (क्ष.व) = व.Dक्ष+क्ष. Dन +व � कर्ल क्ष+क्ष �कर्ल व
श् कर्ल ग्रेड व = o
डाइव कर्ल ग्रेड व = o
डाइव ग्रेड व = �oव
�२ जिसमें लाप्लास परिचालक है।
गाउस का डाइवर्जैस प्रमेय - इसका सदिशीय रूप निम्नलिखित हैं :
फ. न ता द =
डाइव
फ ताव
जिसका तात्पर्य यह है कि किसी बंद क्षेत्र की सीमा पर फलन फ का अभिलंब पृष्ठ समाकल (normal surface integral) समूचे परिबद्ध दिक् में लिए हुए फ के डाइवर्जेंस के दिक् समाकल के बराबर होता है।
स्टोक का प्रमेय - यह निम्नलिखित है :
फ. ता प्र
=
न. कर्ल
फ ता द (प्र
= इ य + ज र + उ ल) जिसका तात्पर्य
यह है कि किसी सादेश फलन फ के लिए, जो अपने व्युत्पन्न के साथ किसी भी दिशा में
एकसमान, (uniform) सांत (finite)
और अविच्छिन्न (continuous) है, बंद वक्र स के चारों ओर फ का स्पर्शीय रेखा समाकल, दर
पर कर्ल फ के अभिलंब पृष्ठ
समाकल के बराबर होता है।
ग्रीन का प्रमेय - इसे यों व्यक्त किया जाता है :
(क्ष�व
- व�क्ष), न ताद =
(क्ष�२
व
- व �३
क्ष) ताव
यदि किसी सदिश व का कर्ल लुप्त हो जाता है तो उसे स्तरित या अधूर्ण सदिश कहते हैं। यदि डाइव व = o, तो सदिश व को परिनालिकय सदिश कहते हैं।
सदिश विश्लेषण का अनुप्रयोग अनेक ज्यामितियों, बीजगणित, क्वांटम यांत्रिकी, आपेक्षिकता सिद्धांत, टेंसर विश्लेषण आदि गणित की अनेक शाखाओं में होता है। (प्रभु दास शाह)