सत्ययुग चार प्रसिद्ध युगों में सत्य या कृतयुग प्रथम माना गया है। यद्यपि प्राचीनतम वैदिक ग्रंथों में सत्यत्रेतादि युगविभाग का निर्देश स्पष्टतया उपलब्ध नहीं होता, तथापि स्मृतियों एवं विशेषत: पुराणों में चार युगों का सविस्तार प्रतिपादन मिलता है।
पुराणादि में सत्ययुग के विषय में निम्नोक्त विवरण मिलता है - वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया रविवार को इस युग की उत्पत्ति हुई थी। इसका परिमाण १७,२८,००० वर्ष है। इस युग में भगवान् के मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह ये चार अवतार हुए थे। इस काल में स्वर्णमय व्यवहारपात्रों की प्रचुरता थी। मनुष्य अत्यंत दीर्घाकृति एवं अतिदीर्घ आयुवाले होते थे। इस युग का प्रधान तीर्थ कुरुक्षेत्र था।
इस युग में ज्ञान, ध्यान या तप का प्राधान्य था। प्रत्येक प्रजा पुरुषार्थसिद्धि कर कृतकृत्य होती थी, अत: यह 'कृतयुग' कहलाता है। धर्म चतुष्पाद (सर्वत: पूर्ण) था। मनु का धर्मशास्त्र इस युग में एकमात्र अवलंबनीय शास्त्र था। महाभारत में इस युग के विषय में यह विशिष्ट मत मिलता है कि कलियुग के बाद कल्की द्वारा इस युग की पुन: स्थापना होगी (वन पर्व १९१/१-१४)। वन पर्व १४९/११-१२५) में इस युग के धर्म का वर्ण द्रष्टव्य है। (रामशंकर भट्टाचार्य)