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सतत भिन्न (Continued Fractions) कोई पद संहित
क१ +
जिसमें क१ को छोड़कर जो शून्य भी हो सकता है, सब क और ख धनात्मक अथवा ऋणात्मक पूर्ण संख्याएँ हों, सतत भिन्न कहलाती है। इसको संक्षेप में
क१
+ श्
द्वारा
दर्शाया जाता है। इसमें क१,
क१ +
इत्यादि को सतत भिन्न का प्रथम, द्वितीय,
तृतीय इतयादि अभिसरक (convergent)
कहते हैं।
यदि
कनश् =
, नवाँ अभिसरक
हो, तो पन =
कन पन-१ + खन पन-२ और
फन = कन फन-१
+ खन फन-२
होगा, जबकि पo = १, फo = o,
प1 = क१, फ1 = 1।
सतत भिन्न में अवयवों की संख्या सीमित होने पर उसे सांत
(terminating)
सतत भिन्न तथा अवयवों की संख्या अनंत होने पर, उसे अनंत
सतत भिन्न कहते हैं।
..... ...... अनंत
सतत भिन्न,
........
का अनुक्रम (sequence) माना जा सकता है,
जो अभिसारी (convergent), अपसारी (divergent),
या दोलक (oscillating) तत्व होगा जब उक्त
अनुक्रम क्रमश: अभिसारी, अपसारी या दोलक होगा।
सतत भिन्न अभिसारी होने पर उसका मान होगा।
सतत
भिन्न क१ + ..... ..... में
प्रत्येक 'ख' के स्थान पर
'१' रखने से प्राप्त सतत भिन्न क२ +श्
साधारण सतत
भिन्न कहलाता है। एक साधारण सतत भिन्न सर्वदा अभिसारी (divergent)
होता है।
यदि
श्साधारण
सतत भिन्न का न वाँ अभिसरक हो, तो
पन फन-१ - पन-१ फम = (-१)न
श्यदि किसी अनंत साधारण सतत भिन्न में कुछ अवयवों के बाद के अवयव बार बार उसी क्रम में आते हों, तो सतत भिन्न को आवर्ती (recurring) सतत भिन्न कहेंगे। बार बार उसी क्रम में आनेवाले अवयवों को 'चक्रीय (cyclic) भाग' या 'चक्र' तथा बार बार न आनेवालों को 'अचक्रीय'(noncyclic) भाग कहा जाता है। 'चक्रीय भाग' दर्शाने के लिए, इसके प्रथम और अंतिम अवयवों के नीचे तारे का निशान लगा देते हैं।
सतत
भिन्न ...... को
श्द्वारा
दर्शाते हैं, जहाँ
अचक्रीय भाग
और
श्चक्रीय
भाग है।
किसी वास्तविक संख्या को साधारण सतत भिन्न के रूप में दर्शाया जा सकता है। यह सतत भिन्न उसी हालत में समाप्त (terminate) होगा, जब वह संख्या परिमेय (rational) हो।
किसी
परिमेय संख्या श्को
साधारण सतत भिन्न के रूप में निम्न क्रिया द्वारा दर्शाया जा सकता
है :
वे
बीजीय संख्याएँ, जो वर्गकरणी , इसप्रकार
की संख्या को वर्गकरणी कहते हैं, जिसमें न
पूर्ण नहीं है और ख शून्यसहित कोई भी संख्या
हो सकती है। अपरिमेय संख्या वर्गकरणी की एक विशेष स्थिति
(particular
case) है, जब ख शून्य
हो जाता है।] या अपरिमेय (irrational)
हैं, एक आवर्ती सतत भिन्न के रूप में दर्शाई जा सकती हैं। e
और p
इस नियम के अपवाद हैं।
एक वर्गकरणी च को आवर्ती सतत भिन्न के रूप में भिन्न प्रकार के समीकण बनाकर दर्शाया जा सकता है :
च = क१ + च१ (o < च१ < 1)
= क१
+
तथा कन+१ + श्(न
= १, २, ३....) (o < च <
1)
जब
क१ और कन+१
क्रमश: वे सबसे बड़ी पूर्ण संख्याएँ हैं जो च या श्से
छोटी हैं।
यदि त कोई संख्या हो जो पूर्ण वर्ग नहीं है, तो � त के रूप की संख्याओं का विस्तार जानने के लिए � ११ लेंगे। इसको सतत भिन्न के रूप में निम्न क्रिया द्वारा दर्शाया जा सकता है :
�= 3 + (
-3)
[ ३ वह सबसे बड़ी पूर्ण संख्या है जो � ११ से छोटी है ]
= 3 +�
= 3 +
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एक अपरिमेय संख्या, जो वास्तव में वर्गकरणी नहीं है, जैसे e और p, एक अनंत सतत भिन्न के रूप में जो आवर्ती नहीं होगा, दर्शाई जा सकती है।
e = 2.71828.........
श्और p = ३.१४१५९
बादवाले सतत भिन्न में निर्माण का कोई नियम स्पष्ट नहीं है।
यदि
ट और ठ धनात्मक हों और श्पूर्ण
वर्ग न हो तो
श्के
रूप की कोई भी संख्या एक साधारण अनंत सतत भिन्न के रूप
में दर्शाई जा सकती है।
श्के
रूप की एक संख्या है, पूर्व वर्णि रीति द्वारा सतत भिन्न के रूप
में दर्शाई जा सकती है।
इसके
विस्तार में केवल एक अनावर्ती (nonrecurring)
अवयव क१ होता
है। चक्र का अंतिम अवयव क२
और प्रारंभ तथा अंत से समान दूरी पर स्थित अवयव बराबर
होते हैं। इस प्रकार श्अनुक्रम
क२, क३, क४,..... क४, क३ क२ अवयवों के चक्र का व्युत्क्रम भाग
कहलाता है।
यह भी सिद्ध किया जा सकता है कि प्रत्येक आवर्ती सतत भिन्न एक वर्गकरणी के तथा अनंत साधारण सतत भिन्न एक अपरिमेय संख्या के तुल्य होता है।
अभिसरक
(convergents) क्रमश: एकांतरत: (alternatelty)
सतत भिन्न से छोटे और बड़े होते हैं। यदि
�का
सतत भिन्न के रूप में विस्तार देखें, तो ज्ञात होगा कि अभिसरक
क्रमश: एकांतरत: ३,
,
,
इत्यादि हैं। वे क्रमश: एकांतरत:
�से
छोटे और बड़े हैं।
विषम अभिसरक एक वर्धी अनुक्रम और सम अभिसरक एक ्ह्रासी अनुक्रम बनाते हैं। प्रत्येक विषम अभिसरक सम अभिसरक से छोटा होता है, अर्थात् प्रत्येक विषम अभिसरक पूर्व अभिसरक की अपेक्षा सतत भिन्न के मान के निकट पहुंचता जाता है।
एक साधारण सतत भिन्न, जिसमें प्रारंभ और अंत से समान दूरी पर स्थित अवयव बराबर हों, सममित सतत भिन्न (Symmetric Continued Fraction) कहलाता है
३ +
और ३ +
सममित सतत भिन्न के उदाहरण हैं, जिनमें से पहले में अवयवों की संख्या विषम तथा दूसरे में सम है।
इस प्रकार के सतत भिन्न की जिसमें अवयवों की संख्या सम हो, एक मुख्य विशेषता निम्नलिखित है :
माना
तथा
जिसमें पा/फा और प/फ अपने न्यूनतम पदों में हों (be in their lowest terms) तथा पा�/फा� और प�/फ�, पा/फा और प/फ के ठीक पहले के अभिसरक हों तो
प२ = पा२ + पा�२; फ२ = फा२ + फा�२
और फ२ + १ = पफ�
यह सिद्ध किया जा सकता है कि कोई भी साधारण आवर्ती ससत सतत भिन्न, परिमेय गुणकवाले एक वर्ग समीकरण का एक मूल है और इसका दूसरा मूल भिन्न भिन्न स्थितियों में निम्न प्रकार होगा :
(१)��� यदि सतत भिन्न में कोई भी अचक्रीय भाग नहीं है, तो यह ० औैर -१ के बीच होगा।
(२)��� यदि सतत भिन्नमें अचक्रीय भाग है और वह एक अवयव का है, तो यह -१ से छोटा या शून्य से बड़ा होगा।
(३)��� यदि अचक्रीय भाग एक से अधिक अवयवों का है, तो यह केवल शून्य से बड़ा होगा।
तथा
के सतत भिन्न
के रूप में विस्तार की सहायता से समीकरण
ठ क्ष२ - ट य२ = म
तथाश्श् क्ष२ - त य२ = म
को हल किया जा सकता है।श् (श्रीनारायण मेहरोत्रा)