सड़क परिवहन किसी देश के आर्थिक विकास के लिए प्रभावशाली परिवहन अनिवार्य है। माल और यात्रियों के ढोने की पर्याप्त सुविधाओं के बिना कोई भी राष्ट्र विकास की उन्नत स्थिति नहीं प्राप्त कर सकता है।

भारत जैसे देश में, जहाँ लगभग ८० प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है, वास्तविक प्रगति देहाती क्षेत्रों को पुनर्जीवन प्रदान करने पर ही निर्भर है। इसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकता है गाँवों तक पहुँचने की, अर्थात् परिवहन सुविधाओं के एक सुसमन्वित जाल की।

घोड़ागाड़ियों द्वारा माल ढुलाई महँगी होने और बैलगाड़ियों अत्यंत मंदगति की होने के कारण अधिक दूर की ढुलाई के निमित्त सड़कों का प्रयोग सीमित था। रेलपथ बनने पर तो सड़कें अधिक दूर की ढुलाई के लिए और भी कम महत्वपूर्ण रह गई। लगभग सौ वर्ष तक सड़क परिवहन अधिकांशत: स्थानीय ही था ओर यात्री एवं माल दोनों की ढुलाई के लिए देश में रेलें ही प्रमुख साधन थीं। इसमें संदेह नहीं कि भरी भरकम माल की लंबी दूरी की ढुलाई में रेलों का ऐसा ही योगदान बना रहेगा, किंतु इनके कार्यक्षेत्र का संकुचित होना इनके विस्तृत उपयोग में बाधक होता है। इसके अतिरिक्त रेलों के अतिशय विस्तार के बावजूद, विगत दो दशाब्दियों में उद्योग के द्रुत विकास के कारण रेलों की क्षमता सीमा तक पहुँच चुकी है।

रेल परिहवन की अपेक्षा सड़क परिवहन के अनेक लाभ हैं। रेल परिहवन में यात्रा के दोनों सिरों पर माल ढुलाई सड़क से करनी पड़ती है, जब कि सड़क परिवहन आत्मनिर्भर है और घर घर पहुँचनेवाली सेवा उपलब्ध करता है। इसमें माल की चढ़ाई उतराई, अथवा स्थानांतरण, अपेक्षाकृत कम होता है, इसलिए यह सस्ता पड़ता है। उठाईगीरी की संभावना और टूट फूट से हानि भी बहुत कम हो जाती है तथा समय की काफी बचत होती है। सड़क-मोटर-परिवहन की वितरण क्षमता स्पष्ट है। इसमें शक्ति का मितव्यय होता है और इसका कार्यक्षेत्र एवं व्यवस्था संकुचित नहीं है। इसके तथा अन्य लाभों के कारण कीमती और अपेक्षाकृत कम भार भरकम माल ढोने के लिए सड़क परिवहन अत्यंत लोकप्रिय है। फल, शाकभाजी, मुर्गी, अंडा, दूध और मक्खन आदि के लिए सड़क परिवहन की बड़ी माँग है। केवल स्थूल माल की लंबी दूरी की ढुलाई में ही रेल परिवहन सड़क परिवहन की अपेक्षा कुछ अधिक लाभदायी है।

प्रभावशाली रूप से रेलपथ से प्रतियोगिता कर सकने के लिए सड़क परिवहन का नियंत्रण होना चाहिए, ताकि सड़क और उसका आम उपयोग करनेवाले लोग सुरक्षित रह सकें और सड़क परिवहन उद्योग लाभदायी हो सके। सड़क की सुरक्षा गाड़ियों का भार सीमित करने से होती है। सड़क का आम उपयोग करनेवाले लोगों की सुरक्षा सुरक्षा नियमों से होती है, जिनमें ट्रकों और बसों की चौड़ाई, अधिकतम ऊँचाई, गाड़ियों ओर सम्मिलित गाड़ियों की लंबाई, गति सीमा तथा गाड़ियों में निश्चित रूप से सुरक्षा साधन संबंधी नियंत्रणात्मक उल्लेख होते है।

सड़क परिवहन उद्योग को लाभदाई बनाने के लिए ऐसे नियमों की आवश्यकता है जिनसे स्थिर और उचित दरें सुनिश्चित हो सकें और मोटर परिहवनवाले मनमानी, अथवा गलाकाटू प्रतियोगिता, न कर सके।

यद्यपि ऐसे नियमों की आवश्कता सर्वमान्य है, किंतु फिर भी ये सावधानीपूर्वक सोच विचारकर ही लागू किए जाने चाहिए। रेल परिवहन के हित में सड़क परिवहन को अलाभकारी बनाना, इन नियमों का उद्देश्य नहीं होना चाहिए।

चूँकि वर्तमान परिस्थितियों में रेलें अपनी ढुलाई की क्षमता बढ़ाने में असमर्थ हैं, इसलिए निरंतर बढ़ते हुए अतिरिक्त यातायात की आवश्यकता पूरी करने के लिए परिवहन के अन्य साधनों पर जोर बढ़ता जा रहा है। वायु और जल परिवहन की व्यवस्थाएँ सीमित होने के कारण, सड़क और सड़क परिवहन पर ध्यान केंद्रित हो रहा है, ताकि इनका योगदान अधिकाधिक महत्वपूर्ण हो।

परिस्थिति की माँग देखकर, देश के मुख्य इंजीनियरों ने अपनी २० वर्षीय (१९६१-१९८१) सड़क विकास योजना में यह सिफारिश की है कि देश में सड़कों की लंबाई बढ़ाकर दूनी कर दी जाए जिसमें ५,२०० करोड़ रुपया व्यय होगा। यद्यपि देखने में पूँजी निवेश के ये आँकड़े बहुत बड़े दिखाई पड़ते हैं, फिर भी लक्ष्य, प्रति वर्ग मील क्षेत्रफल में, केवल ०.५२ मील लंबी सड़कों का होगा, जबकि संयुक्त राज्य, अमरीका, में प्रति वर्ग मील में एक मील लंबी, ग्रेट ब्रिटेन में प्रति वर्ग मील में २.०० मील लंबी और फ्रांस में प्रति वर्ग मील में ३.०४ मील लंबी सड़कें हैं।

सड़क परिवहन के लिए सड़कों और पुलों का होना ही पर्याप्त नहीं है, वरन् उनका राष्ट्रहित में उपयोग करना होगा, और भली भाँति उपयोग करना होगा। तात्पर्य यह है कि मोटरपरिवहन उद्योग और पूरक उद्योगों का भी उचित विकास होना चाहिए।

अभी अनेक भारी करों के कारण गाड़ियों के चलाने की लागत क्षमता बढ़ाने की दिशा में, एक प्रगतिशील चरण ट्रकों के पीछे ठेला लगाना तो है ही, किंतु समस्या का दूरगामी समाधान तो परमिटों पर क्रियाविधि संबंधी अवरोधों के रूप में लगी विविध पाबंदियों को हटाना और भारी करभार घटाना ही हो सकता है। सड़कों की सतहें भी सुधारनी चाहिए, क्योंकि सड़कों की हालत बुरी होने से गाड़ियों के चलाने का व्यय बहुत बढ़ जाता है।

अंतरप्रदेशीय यातायात के लिए निकटस्थ राज्यों के बीच पारस्परिक ठहराव तो है, किंतु जारी किए जानेवाले परमिटों की संख्या नितांत अपर्याप्त है। देश में गाड़ियाँ भी काफी नहीं बनतीं।

देश की परिवहन आवश्यकता पूरी करने के लिए, मोटर परिवहन उद्योग का और भी तेजी से विकास होना चाहिए। बहुधा यह भुला दिया जाता है कि इस उद्योग में बहुत अधिक व्यक्तियों को काम में लगाने की क्षमता भी है। अनेक बाधाओं के होते हुए भी, यह अनुमान है कि इस समय २४ लाख व्यक्ति इस उद्योग में लगे हैं।

भारत में मोटर गाड़ियों की संख्या

(३१-३-६४ को)

मोटर साइकिल १,५५,७७६

स्वचालित रिक्शे १०,६१६

जीपें ३१,५६७

निजी कारें ३,२७,३३७

टैक्सियाँ ३१,४८९

बसें ६५,८९९

माल ढोनेवाली गाड़ियाँ २,२५,५८१

विविध ५१,३१०

कुल योग ८,९९,६७५

(जगदीश मित्र त्रेहन)