सआदत खाँ इसका पूरा नाम सआदत अली खाँ था। यह प्रारंभ में खुरासाँ का निवासी था। बाद में यह भारत आया और इसने अवध के सूबे की नींव डाली। उस समय अवध में आधुनिक क्षेत्रों के अतिरिक्त इलाहाबाद तथा कानपुर के समीपवर्ती कुछ जिले तथा वाराणसी भी सम्मिलित थे। इस समय मुगल साम्राज्य छिन्न भिन्न हो रहा था और मुगलों की केंद्रीय शक्ति जर्जरित हो गई थी। मुगल सम्राट् केवल नाममात्र को ही था। प्रांतीय नवाब दिखावे के लिए ही उसके अधीन होने का अभिनय करते थे। वास्तव में वे स्वतंत्र हो गए थे। इनमें अवध, दक्षिण तथा बंगाल के नवाब मुख्य थे।
सन् १७२४ में सआदत अली खाँ को अवध का नवाब बनाया गया था। वह एक सुयोग्य शासक था। थोड़े ही समय में अपने गुणों के कारण उसने अवध निवासियों के हृदय में घर कर लिया। बनारस जैसे धनी और शक्तिशाली प्रदेश अवध के अधीन थे। इन्हीं कारणों से सआदत खाँ की शक्ति बहुत बढ़ी चढ़ी थी और उसकी ख्याति देशव्यापी हो गई थी। सन् १७३९ में फारस के नादिरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसी वर्ष सआदत खाँ को दिल्ली में उपस्थित होने का आदेश दिया गया। वह इसका अर्थ खूब समझता था। अत: उसने आत्महत्या कर ली। उसके बाद उसका भांजा और दामाद सफदरजंग बंगाल का नवाब हुआ। ( मिथिलेश चंद्र पांड्या)