सआदत अली यह अवध के नवाब आसफ़ुद्दीन का ज्येष्ठ भाई था। सन् १७९७ में आसफुद्दौला की मृत्यु पर उसका बेटा वजीर अली नवाब बना। बाद में कंपनी के अधिकारियों का उसके नवाब का बेटा होने में संदेह हुआ और गवर्नर जेनरल जॉन शोर ने जनवरी, १७९८ में सआदत अली से एक संधि करके उसे अवध के सिंहासन पर बिठला दिया। इसके बदले में उसने कंपनी को बारह लाख रुपया दिया। बजीर अली को डेढ़ लाख रुपया वार्षिक पेंशन देकर बनारस भेज दिया गया। उपर्युक्त संधि के अनुसार नवाब ने सामरिक महत्व वाले इलाहाबाद के दुर्ग को कंपनी को दे दिया तथा उसकी मरम्मत के लिए आठ लाख रुपया भी दिया। अंग्रेजों के अतिरिक्त अन्य यूरोपीयों को अपने राज्य में प्रविष्ट न होने देने का उसने वचन दिया तथा अंग्रेजों को ७६ लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया। किसी बाह्य शक्ति से संधि करने का उसे कोई अधिकार नहीं रह गया। नवाब बजीर की अपनी सेना कम करके ३५ हजार कर दी गई। सर जॉन शोर सआदत अली के साथ मनमाना व्यवहार करता था तथा अवध के शासन मे भी हस्तक्षेप करने लगा था। इस प्रकार का हस्तक्षेप अवध के साथ की गई पुरानी संधियों के सर्वथा विपरीत था।

सर जॉन शोर ने अवध में अंग्रेजी सेना काफी बढ़ा दी क्योंकि उस समय अवध पर जमनशाह के आक्रमण का भय था। जमनशाह अहमदशाह दुर्रानी का पौत्र था। भारत पर आक्रमण करके वह लाहौर तक पहुँच गया था। अवध में अंग्रेजी सेना बढ़ाकर नवाब वज़ीर को खर्च के लिए दबाया गया।

शोर के बाद लॉर्ड वेलेज़ली भारत का गवर्नर जनरल हुआ। कई कारणों से उसने यह राय बनाई कि कंपनी को अवध पर अधिकार कर लेना चाहिए। सन् १७९९ में वेलेज़ली ने सआदत अली को अपनी सेना तोड़ देने की आज्ञा भेजी। बिना सआदत की अनुमति के अवध में अंग्रेजी सेना बढ़ा दी गई और उससे सेना का खर्च देने को कहा गया। जनवरी, १८०१ में उसने सआदत अली को लिखा कि या तो वह अभी तक का अंग्रेजी सेना का खर्च देकर भविष्य के लिए अपना आधा राज्य कंपनी को सौंप दे या पेंशन लेकर राजकार्य से अवकाश ग्रहण कर लें। मजबूर होकर नवंबर, १८०१ में सआदत अली ने कंपनी से संधि कर ली। इस संधि के द्वारा नवाब की सेना घटा दी गई तथा अवध की सीमा पर स्थित चुने हुए जिले कंपनी ने ले लिए। बचे हुए राज्य पर नवाब ने अंग्रेजों की सलाह से शासन करना स्वीकार कर लिया। अब अवध के चारों ओर अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया।

सआदत अली एक सुयोग्य शासक था। उसके समय में शासन में कई सुधार किए गए तथा प्रजा प्रसन्न थी। अवध की सीमाओं को भी उसने यथासंभव दृढ़ करने का प्रयत्न किया था तथा राज्य की आमदनी बढ़ा दी थी। उसके मरने पर सरकारी खजाने में बहुत सा धन था। अंग्रेजों के उससे असंतुष्ट होने का कारण यह था कि वह अपने राज्य में उनका बहुत हस्तक्षेप सहन न करता था। सन् १८१४ में उसका देहांत हो गया। (मिथिलेश चंद्र पांड्या)