संस्कार (हिंदू) 'संस्कार' का अर्थ है शुद्ध किया जाना। आर्य जाति में वे कृत्य या विधान संस्कार कहलाते हैं जो जन्म से मृत्यु पर्यंत द्विज वर्णों में आवश्यक माने गए हैं। इन कृत्यों के किए जाने से जीवात्मा की शुद्धि होती है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। इनकी संख्या कहीं दस, कहीं बारह और कहीं सोलह मानी गई हैं। मनु के अनुसार द्वादश संस्कार ये हैं - गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतीन्नयन, जातकर्म, नामकर्म, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, उपनयन, केशांत, समावर्तन और विवाह। ये संस्कार या धार्मिक कृत्य क्रमश: इन अवसरों पर किए जाते हैं - १. गर्भाधान के पूर्व, २. स्त्री के गर्भ धारण के तीसरे मास में, ३. गर्भवती स्त्री के (चौथे, छठे अथवा) आठवें मास में; ४. पुत्रजन्म के अवसर पर; ५. बच्चे का नाम रखने के समय; ६. चार महीने के शिशु को पहले पहल घर से बाहर ले जाने के अवसर पर; ७. शिशु को पहली बार अन्न चखाने के समय; ८. बच्चे का पहली बार सिर मुँड़ाकर चोटी रखने के समय; ९. विद्याभ्यास के लिए प्रथम बार गुरु के पास भेजे जाने के समय; १०. उपनयन और समावर्तन के समय; ११. अध्ययन पूर्ण कर ब्रह्मचारी के घर लौटने के समय; १२. दांपत्य सूत्र में आबद्ध होने के अवसर पर (दे. उपनयन, विवाह)।