संवेदनाहरण और संवेदनाहारी (Anaesthesia and Anaesthetics) समस्त जीवधारियों के तंत्रिकातंत्र (nervous system) का कार्य बाह्य उत्तेजनाओं की अनुभूति कराना है। जिस प्राणी का तंत्रिकातंत्र जितना अधिक उन्नत एव परिष्कृत होगा, जितना उसमें बाह्य उत्तेजनाओं की अनुभूति तथा उसके प्रति प्रतिक्रिया उतनी ही अधिक स्पष्ट एवं तात्कालिक होगी। तंत्रिकातंत्र द्वारा बाह्य उत्तेजना, पीड़ा आदि अनुभव करने के गुण को ही संज्ञा या संवेदन कहते हैं तथा विशिष्ट औषधि के प्रयोग से इस गुण को नष्ट कर देना ही संवेदनाहरण (Anesthesia) कहलाता है। जिस औषधि के प्रयोग द्वारा संवेदनाहरण का कार्य होता है उसे संवेदनाहारी कहते हैं। आजकल शल्यचिकित्सा में इसका अत्यधिक उपयोग होता है।
संवेदनाहरण के प्रकार निम्नलिखित हैं :
१.����� स्थानिक संवेदनाहरण (Local Anaesthesia) - इसमें स्थान विशेष की संज्ञावह तंत्रिकाओं को निष्क्रिय कर देते हैं, जिससे पीड़ा की अनुभूति न हो। छोटे छोटे शल्यकर्मों में इसी का उपयोग किया जाता है। कोकेन तथा उसके भिन्न भिन्न यौगिक प्रधान स्थानिक संवेदनाहारी होते हैं।
२.����� सर्वांगीय संवेदनाहरण (General Anaesthesia) - किसी भी स्थल से जानेवाली पीड़ा संबंधी संवेदनाओं को निश्चित पीड़ा अनुभूति में बदलनेवाली मस्तिष्क की घूसर वस्तु (gray matter of the brain) ही है। यदि इसको निष्क्रिय कर दिया जाए, तो किसी भी स्थल से वेदना की फिर अनुभूति नहीं हो सकती। धूसर वस्तु को निष्क्रिय करने की सर्वांगीय संवेदनाहरण कहते हैं। क्लोरोफॉर्म, नाइट्रस ऑक्साइट, ईथर इत्यादि प्रधान सर्वांगीय संवेदनाहारी हैं। इनका बड़े बड़े शल्य कर्मों में उपयोग होता है।
३.����� अवरोधक संवेदनाहरण (Blocking Anaesthesia) � इसमें सुषुम्ना स्थल विशेष को निष्क्रिय बनाकर बाधा डाल दी जाती है, जिससे पीड़ा इत्यादि की अनुभूति आगे बढ़कर मस्तिष्क तक पहुँच ही नहीं सकती।
संवेदनाहारी पदार्थों में निम्नलिखित गुण होने चाहिए :
१.���������� इसको सुगमतापूर्वक सेवन कराया जा सके।
२.���������� शीघ्र ही इसका प्रभाव व्यक्त होने लगे।
३.���������� कार्य को चुकने के पश्चात् इसका प्रयोग बंद करने पर शीघ्र ही प्रभाव दूर होने लगे।
४.���������� प्रभाव दूर हो चुकने पर, इसका कोई भी बुरा प्रभाव शरीर पर न रह जाए।
५.���������� इसके द्वारा पूर्ण संवेदनाहरण तथा पेशियों का शिथिलन (relaxation of muscles) उत्पन्न हो।
६.���������� घातक मात्रा (lethal dose) एवं चिकित्सीय मात्रा (therapeutic dose) में पर्याप्त अतंर हो, जिससे घातक प्रभाव होने की संभावना कम से कम रहे। इसी को सुरक्षा सीमा (Margin of safety ) कहते हैं।
सवेदनाहारी के प्रयोग के पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
१.���������� रोगी की सुरक्षा एवं आराम � सर्वांग संवेदनाहरण के पश्चात् सदैव खतरे की संभावना रहती है।
२.���������� रोगी की आयु तथा स्वास्थ्य।
३.���������� शल्यकर्म की प्रकृति � जैसे फोड़ा चीरना, अस्थिभंग ठीक करना इत्यादि में स्थानिक संवेदनाहरण ही उपयुक्त है।
४.���������� संवेदनाहरण के प्रयोग के पूर्वं रोगी की परीक्षा � इसमें रोगी के हृदय, फुफ्फस, यकृत तथा अन्य प्रधान अंगों की दशा जाँच लेनी चाहिए।
५.���������� संवेदनाहरण के पूर्वं की तैयारी � यदि केवल सर्वांगीय संवेदनाहरण देना हो, तो भोजन इत्यादि पर नियंत्रण करके पूर्व तैयारी की जाती है। अन्य किसी भी प्रकार के संवेदनाहरण में इवकी कोई विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती।
भिन्न भिन्न संवेदनाहारी पदार्थ निम्नलिखित हैं :
१. क्लोरोफोर्म (Chloroform) � सर्वांगीय संवेदनाहरण के लिये इसका प्रयोग सर्वाधिक रूप से होता चला आ रहा है। यही मीठी मीठी गंधवाला, वाष्पशील, रंगरहित द्रव है, जिसको विशेष उपकरण द्वारा रोगी को सुँघाकर बेहोश किया जाता है। सुँघाने पर यह द्रव श्वासमार्ग से रुधिर में चला जाता है और रुधिर से मस्तिष्क में पहुँचकर एवं वहाँ संचित होकर, अपना प्रभाव दिखाता है। निम्नलिखित चार अवस्थाओं में इसका प्रयोग होता है:।
(क) विसंघटित चेतना की अवस्था (disorganised conciousness) में।
(ख) उत्तेजना एवं प्रलापावस्था (excitement and delerium) में।
(ग) शल्यकर्म के लिये संवेदनाहरण (surgical anaesthesia) में।
(घ) मेरुशीर्षी पक्षाघात (bulbar paralysis) में
२. नाइट्स ऑक्साइड (Nitrous oxide) या ्ह्रास गैस (Laughing gas) � इसको सूँघने से ही शीघ्र बेहोशी आती है।
(३) ईथर (Ether) � इसका स्प्रे द्वारा स्थानिक संवेदनाहरण औषधि के रूप में उपयोग होता है।
(४) प्रोकेन हाइड्रोक्लोराइड (Procain hydrochloride) � इसका भी स्थानिक संवेदनाहरण के रूप में प्रयोग होता है।
(५) पॉणटोकेन (Pontocain) तथा सोडियम पेंटोथाल (Sodium pentothal) का भी स्थानिक संवेदनाहरण औषधि के रूप में उपयोग होता है।