संयोजी ऊतक (Connective Tissue) गर्भाशय में भ्रूण का जैसे जैसेश् विकासश् होता जाता है, एक वर्ग की कोशिकाएँ दूसरे वर्ग की कोशिकाओं से भिन्न होती ही जाती हैं। प्रत्येक वर्ग की कोशिकाएँ विशेष प्रकार का शारीरिक ऊतक बनाती हैं। इस प्रकार ऊतकों की कोशिकाएँ अचल होती हैं।

ऊतक की रचना - शरीर के अंग, उपांग एवं भित्ति की जिनके द्वारा ये आवृत्त रहते हैं, रचना स्थूल रूप से पाँच प्रकार के ऊतकों से होती है। ये निम्न हैं : १. उपकला ऊतक, २. संयोजी ऊतक, ३. कंकाली ऊतक, ४. पेशी ऊतक तथा ५. तंत्रिका ऊतक। इनमें से प्रत्येक में अपनी अपनी विशेषताएँ हैं। तंत्रिका ऊतक के अतिरिक्त अन्य ऊतक पुन: प्रकारांतर से अनेक हैं, परंतु अपनी जन्मजात विशेषताएँ प्रत्येक में रहती हैं। संयोजी एवं कंकाली ऊतकों में आकारिकी (morphology) के अनुसार बहुत सी समानताएँ हैं तथा साथ साथ ही रहते हैं, परंतु भौतिक रूप से भिन्न हैं। संयोजी ऊतक मृदु होते हैं जब कि कंकाली ऊतक कठोर होते हैं।

संयोजी ऊतक - पूर्वमध्यजन स्तर (mesenchyme) से संयोजी ऊतकों का विकास होता है। इसके अंतर्गत अनेक ऊतक हैं, जो निष्क्रिय कार्य करते हैं, जैसे आपस में बँधना, अथवा सक्रिय संरचनाओं के कार्यों को आश्रय देना। ये आकार में एक दूसरे से भिन्न होते हैं, परंतु आपस में अनेक दृष्टियों से संबंधित हैं।

संपूर्ण संयोजी ऊतकों में अनेक कोशिकाएँ होती हैं, जो एक आधात्री (matrix), अथवा धूसर पदार्थ, में अंत: स्थापित होती हैं। इस पदार्थ में तंतु विद्यमान हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते। बहुधा आधात्री तथा तंतुओं को मिलाकर अंतराकोशिकी पदार्थ (Intercellular substance) कहते हैं। संयोजी ऊतकों में बड़ी मात्रा में अंतराकोशिकी पदार्थ विद्यमान है। उपकला ऊतक की कोशिकाओं के विपरीत संयोजी ऊतक की कोशिकाएँ दूर दूर विद्यमान रहती हैं।

१. तंतुप्रसू (fibroblast), २. हिस्टोसाइट (histocyte), ३. प्लाविका कोशिका (plasma cell), ४. मास्ट कोशिकाएँ (mast cells), ५. वसा कोशिकाएँ (fat cells) तथा ६. वर्णक कोशिकाएँ (pigmented cells)।

उपर्युक्त कोशिकाओं के अतिरिक्त, साधारण संयोजी ऊतक में लसीकाणु (lymphocytes), उदासीन रंजी कोशिकाएँ (neutrophillic cells) तथा इओसिनरागी बहुरूपकेंद्रक श्वेताणु (eosinophilic polymorpho-neuclear leucocytes) रुधिर से निकलकर, इसमें सम्मिलित हो जाते हैं।

कार्यों की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में संयोजी ऊतक आकार, संगति तथा संघटन में भिन्न होते हैं। यह भिन्नता कोशिका प्रकार अथवा तंतु, तंतुओं के विन्यास तथा आधात्रीश् की राशि एवं गुणों पर आधारित है। इस आधार पर संयोजी ऊतक का निम्न प्रकार से वर्गीकरण कर सकते हैं :

१. अवकाशी (areolar) ऊतक, २. वसाऊतक (adipose),श् ३. प्रत्यास्थ (elastic), ४. जालिका (reticular), ऊतक ५. श्वेततंतुमय (white fibrous) ऊतक, ६. श्लेष्माभ्र (mucoid) ऊतक, ७. न्यूरॉग्लिआ (neuroglia), एक विशेष प्रकार का संयोजी ऊतक, जो केंद्रीय तंत्रिकातंत्र (central nervous system) में पाया जाता है, तथा ८. एक परिवर्धित संयोजी ऊतक जो आधार कलाओं (basement membranes) में होता है। यह कला उपकला-कोशिका के स्तरों के नीचे लगी रहती है। उच्च कोटि के जीव के शरीर के प्रत्येक भाग एवं अंगों का एक विशेष कार्य होता है, जो उसे करना होता है। प्रत्येक अंग कोशिकाओं का पुंज है। इन अंगों की विशेषता कोशिकाओं पर निर्भर करती है, अर्थात् जिस प्रकार की कोशिकाओं से यह अंग बना है, उसका कार्य भी उसी के अनुसार होगे। अमीवा एक कोशिकीय जीव है। इसके शरीर में सभी प्रकार के कार्य, जैसे श्वसन, पाचन, मलत्याग आदि सुचारु रूप से होते रहते हैं। बहुकोशिकी जीवों में कोशिकाओं में भिन्नता होती है और कोशिकाएँ कई प्रकार की होती हैं। प्रत्येक प्रकार की कोशिकाओं का एक विशेष कार्य होता है, जिसको उन्हें करना होता है।

संयोजी ऊतक के कार्य - संयोजी ऊतक का कार्य शक्ति देना, एक दूसरे को जोड़ना एवं आश्रय देना है। यह दूसरे प्रकार की कोशिकाओं के समूहों को आपस में बाँधने का कार्य करता है तथा विभिन्न अंगों के लिए एक प्रकार का ढाँचा तैयार करता है, जिससे उनको आश्रय मिलता है। इस प्रकार यह मांसपेशी के तंतुओं के पुंजों को आपस में बाँधता तथा यकृत, वृक्क आदि अंगों के लिए तंतुओं के बने संपुट (capsule) बनाता है और त्वचा के गंभीर स्तरों के बनने में भाग लेता है। पड़ोसी अंगों एवं भागों के बीच

के स्थानों को भरने का भी कार्य इसी ऊतक द्वारा संपन्न होता है। अभिघात अथवा रोग के कारण नष्ट हुए ऊतकों को बदलना भी इस ऊतक का कार्य है।

अस्थि ऊतक भी एक प्रकार का संयोजी ऊतक है। इस ऊतक में खनिज पदार्थ, अर्थात् कैल्सियम एवं फ़ॉस्फ़ोरस, कैल्सियम फ़ॉस्फेट एवं कैल्सियम कार्बोनेट के रूप में, अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। साथ ही साथ मैग्नीशियम, फ्लुओरीन, क्लोरीन तथा लोहा भी थोड़ी मात्रा में इस ऊतक में रहता है। शाखाओं की कुछ अस्थियाँ उपस्थि में स्थित खनिज पदार्थो कें कारण ही विकसित होती है। करोटि (cranium) की अस्थियाँ कला ऊतक (membranous tissue) में स्थित खनिज पदार्थों के कारण विकसित होती हैं।

तंतु ऊतक (Fibrous Tissue) यह एक विशिष्ट प्रकार का संयोजी ऊतक है। इसकी विशेषता यह है कि खींचे जाने पर यह खिंच नहीं पाता। इसमें श्वेत तंतुओं के पुंज होते हैं। यही कारण है कि इसके द्वारा पेशियों की स्यायुएँ, संघियों की पुटियाँ (sacs of joints), हृदय का हृदयावरण (pericardium) एवं अनेक प्रसर (sheets) तथा प्रावरणी (fascia) बनती हैं, जिनपर मांसपेशियाँ लगी रहती है अथवा अस्थियाँ आपस में बँधी रहती हैं। अभिघात होने पर क्षत (wound) में तंतु ऊतक बनता है। इस ऊतक में संकुचन होता है। इस कारण व्रणचिह्नों (scars) में संकोच हो जाया करते हैं, जो देखने में भद्दे लगते हैं। यदि किसी प्रकार से इस ऊतक पर अधिक खिंचाव डाला जाए, तो यह खिंच भी जाता है। इन तंतुओं में कोलेजन नामक प्रोटीन पदार्थ होता है। यदि इन तंतुओं को पानी में डालकर उबाला जाए, तो यह कोलेजन पदार्थ जिलेटिन में परिवर्तित हो जाता है। यही कारण है कि प्रौढ़ जानवर का माँस, जो कठोर एवं तंतुमय होता है, उबाला जाता है। इस ऊतक को बनानेवाले तंतुप्रसू अथवा कोशिकाओं की क्रिया के लिये आहार में विटामिन 'सी' का होना अत्यंत आवश्यक है।

अवकाशी ऊतक (Areola Tissue) यह अदृढ़ संयोजी ऊतक है, जिसमें तंतुओं के अतिरिक्त कोशिकाएँ भी होती हैं। तंतु से तंतु ऊतक का विकास होता है। हिस्टिओसाइट (Histiocytes) रंजक द्रव्य को ग्रहण करता है। यह शरीर के जालक-अंतअ-कला-तंत्र (reticulo-endothelial system), महाभक्षक (macrophage) अथवा अपमार्जन तंत्र (scavenging system) से सम्बन्ध रखता है। इसमें कणिकामय मास्ट कोशिकाएँ (mast cells) तथा कणिकविहीन प्लैज्मा कोशिकाएँ (plasma cells) होती हैं। ऊतक में पहुँचे हुए जीवणओं से इन कोशिकाओं का सम्बन्ध होता है। इसके अतिरिक्त वर्णक कोशिकाएँ (pigmented cells) भी इसमें पाई जाती हैं।

वसा ऊतक (Adipose Tissue) अवकाशी ऊतक बड़ी पुटिकामय वसा कोशिकाओं में वसा का संचय करते हैं। जब इनमें वसा अधिक मात्रा में संचित जाती है, तब उसी को वसा ऊतक कहते हैं। अवकाशी ऊतक में जल का भी संचय होता है जिसके कारण वे फूल जाते हैं।

प्रत्स्यास्थ ऊतक (Elastic Tissue) इसमें अल्प मात्रा में पीले रंग के तंतु होते हैं। इन्हीं तंतुओं के कारण इस ऊतक में प्रत्यास्थता होती है। वाहिकाओं की कला में यह ऊतक होता है। फुप्फुस में ये ऊतक होते हैं। श्वासनली (trachea) तथा श्वसनिओं (bronchii) की उपस्थियों (cartilages) में प्रत्यास्थता इसी ऊतक के कारण होती है। मन्यास्नायु (ligamentum nuchi) में, जो करोटि को मेरुदंड से जोड़ती है, यह ऊतक बहुतायत से पाया जाता है। (रमेश चंद्र कपूर)