संयोजकता (Valency) तत्वों की संयोजन शक्ति (combining power) को संयोजकता का नाम दिया गया है। १९वीं शताब्दी के लगभग मध्यकाल में अंग्रेज रसायनज्ञ फ्रैंकलैंड (Frankland) तथा जर्मन रसायनज्ञ कॉल्बे (Kolbe) ने संयोजकता के विषय में अपनी कल्पनाएँ व्यक्त कीं। फ्रैंकलैंड ने प्रदर्शित किया कि अकार्बनिक (inorganic) यौगिकों में प्राय: एक केंद्रीय तत्व अन्य तत्वों के निश्चित तुल्यांकों से संयोग करता है। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस तथा आर्सेनिक का एक परमाणु हाइड्रोजन तथा क्लोरीन के तीन अथवा पाँच परमाणुओं से संयोग करके यौगिक बनाता है। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि संयुक्त हानेवाले तत्वों की संयोजनशक्ति सदैव अन्य परमाणुओं की निश्चित संख्या से संतुष्ट हो सकती है। अतएव यदि हाइड्रोजन की संयोजकता को इकाई मान लिया जाए, तो किसी तत्व की संयोजकता हाइड्रोजन परमाणुओं की उन संख्याओं के बराबर होगी जिनके साथ उस तत्व का परमाणु संयोग कर सकता है। उदाहरणार्थ, क्लोरीन, ऑक्सीजन परमाणुओं की उन संख्याओं के बराबर होगी जिनके साथ उस तत्व का परमाणु संयोग कर सकता है। उदाहरणार्थ, क्लोरीन, ऑक्सीजन तथा कार्बन का एक परमाणु हाइड्रोजन के क्रमश: एक, दो, तीन तथा चार परमाणुओं से संयोग करता है। इसलिए क्लोरीन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन की संयोजकताएँ क्रमश: एक, दो, तीन तथा चार हैं। कुछ तत्व हाइड्रोजन के साथ संयोग नहीं करते। ऐसे तत्वों की संयोजकता, क्लोरीन या ऑक्सीजन की संयोजकता को क्रमश: एक या दो मानकर, निकाली जा सकती है। उदाहरण के लिए थोरियम का एक परमाणु क्लोरीन के चार तथा ऑक्सीजन के दो परमाणुओं से संयोग करता है। अत: थोरियम की संयोजकता चार है।

प्राय: तत्वों की संयोजकता को रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है। इन रेखाओं को 'संयोजकता बंधन' (Valency bonds) कहा जा सकता है। इन बंधनों का प्रयोग करते हुए, कुछ सरल यौगिकों के सूत्र नीचे दिखलाए गए हैं :

श्

प्रसिद्ध कार्बनिक रसायनज्ञ केकूले (Kekule) के विचार भी फ्रैंकलैंड के विचारों से मिलते जुलते थे। केवल एक बात में दोनों में तीव्र मतभेद था। जैसा उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है, अकार्बनिक यौगिकों में बहुधा एक ही तत्व की संयोजकता विभिन्न यौगिकों में भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, PCI3 तथा PCI5 यौगिकों में फ़ॉस्फ़ोरस की संयोजकता क्रमश: तीन तथा पाँच है। इसके विपरीत कार्बनिक यौगिकों में, जो अधिकतर कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के संयोग से बने होते हैं, इन तत्वों की संयोजकता स्थिर, और सब कार्बनिक यौगिकों में क्रमश: चार, एक, दो तथा तीन, होती है। इनकी संयोजकताओं में साधारणतया कभ अंतर नहीं होता।

संयोजकता के बारे में स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होने से रसायनज्ञों को तत्वों के परमाणुभार निकालने में बहुत सहायता मिली है। किसी भी तत्व का परमाणुभार उसके तुल्यांकी भार और संयोजकता के गुणनफल के बराबर होगा। तत्वों के तुल्यांकी भार प्रयोगों द्वारा सरलता से निकाले जा सकते हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के चौथे भाग में, जब रूसी महान् वैज्ञानिक मेंडेलीफ़ (Mandeleef) ने आवर्त सारणी (Periodic Table) का वर्णन किया, तो उन्होंने साथ ही साथ उस सारणी में किसी तत्व की स्थिति और उसकी संयोजकता का संबंध भी सुस्पष्ट किया। तत्वों को उनके परमाणुभार के क्रम से रखने पर, प्रत्येक तत्व अपने से आठवें तत्व के साथ भौतिक तथा रासायनिक गुणों में समानता प्रदर्शित करता है। इस प्रकार निष्क्रिय गैसों के आविष्कार के बाद, वर्तमान आवर्त सारणी नौ समूहों में बँट जाती है। इनमें निष्क्रिय गैसों, जैसे हीलियम, नीअन, आगंन, क्रिप्टन, जीनन तथा रैडन का समूह शून्य समूह कहलाता है, क्योंकि ये तत्व किसी भी अन्य तत्व के प्रति साधारणतया संयोजनशक्ति नहीं प्रदर्शित करते। अगला समूह ऐलकैली या क्षारीय धातुओं (जैसे लीथियम, सोडियम, पोटैशियम आदि) का प्रथम समूह है और इन सबकी संयोजकता भी हाइड्रोजन, क्लोरीन तथा ऑक्सिजन सब के प्रति एक होती है। इसी प्रकार द्वितीय (मैग्नीशियम, कैल्सियम आदि), तृतीय (बोरॉन, ऐल्यूमिनियम आदि) तथा चतुर्थ (कार्बन, सिलिकन आदि) समूह के तत्वों की संयोजकता क्रमश: दो, तीन तथा चार है। पाँचवें (नाइट्रोजन, फ़ॉसफ़ोरस आदि), छठे (सल्फ़र, क्रोमियम आदि), सातवें (फ्लुओरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन आदि) समूह के तत्व ऑक्सीजन के प्रति तो क्रमश: पाँच, छह तथा सात संयोजकताएँ प्रदर्शित करते हैं, परंतु हाइड्रोजन तथा क्लोरीन के प्रति इन समूहों के तत्वों की संयोजकताएँ क्रमश: तीन, दो तथा एक हैं।

२०वीं शताब्दी के आरंभिक काल में वैज्ञानिक सर जे.जे. टॉमसन तथा नील्स बोर ने प्रयोगों तथा अपनी कल्पनाओं द्वारा परमाणुओं की रचना के बारे में हमारे ज्ञान में वृद्धि की ओर रदरफर्ड ने परमाणुओं के नाभिक (nuclear) रूप की विवेचना की। इसके अनुसार प्रत्येक परमाणु के केंद्र या नाभि में बहुत सूक्ष्म पिंड होता है, जिसपर धनावेश होता है और इसी धनावेश की बराबर संख्या के इलैक्ट्रॉन (electron) केंद्र के चारों ओर परिधियों में चक्कर लगाया करते हैं। अंतिम परिधि के इलेक्ट्रॉनों को 'संयोजन इलेक्ट्रॉन' का नाम दिया गया है, क्योंकि 'संयोजकता के इलेक्ट्रॉन सिद्धांत' के अनुसार, यही इलेक्ट्रॉन तत्व की संयोजनशक्ति निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिए, आवर्त तालिका के प्रथम दो समूहों के परमाणुओं की रचना नीचे दी गई है और संयोजकता इलेक्ट्रॉनों को काले अंकों से दिखलाया गया है :

���������������������������������������������������������������� H������� He

���������������������������������������������������������������� 1�������� 2

Li������ Be������ B������� C�������� N������� O������� F�������� Ne

2,1����� 2,2����� 2,3����� 2,4����� 2,5����� 2,6����� 2,7����� 2,8

Na����� Mg���� Al������ Si������� P�������� S�������� Cl������ Ar

2,8,1�� 2,8,2�� 2,8,3�� 2,8,4�� 2,8,5�� 2,8,6�� 2,8,7�� 2,8,8

उपर्युक्त सारणी में निष्क्रिय गैसों के परमाणुओं की अंतिम परिधि में (हीलियम को छोड़कर जिसमें २ इलेक्ट्रॉन होते हैं) ८ इलेक्ट्रॉन होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह विन्यास इतना स्थायी है कि ये स्वयं साधारणतया किसी रासायनिक क्रिया में भाग नहीं लेते और अन्य तत्व भी एक, दो, या तीन इलेक्ट्रॉन खोकर, या बढ़ाकर, इन्हीं के विन्यास को प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। उदाहरण के लिए, सोडियम श्का परमाणु एक इलेक्ट्रॉन खोकर और फ़्लुओरीन श्का परमाणु एक इलेक्ट्रॉन की वृद्धि करके सोडियम फ्लोराइड बनाते हैं और इस क्रिया में सोडियम (Na+) तथा फ़्लुओराइड दोनों आयन निष्क्रिय गैस नीऑन का इलेक्ट्रॉन विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार की संयोजकता को विद्युत् संयोजकता (electrovalency) कहा जाता है और इसके कुछ अन्य उदाहरण भी नीचे दिए गए हैं :

विद्युत्संयोजकता से बने यौगिक साधारणतया उच्च गलनांक और क्वथनांकवाले होते है और जल में विलीन होकर आयनित हो जाते हैं। इस प्रकार की विद्युत्संयोजकता की कल्पना सर्वप्रथम जर्मन रसायनज्ञ कॉसेल (Kossel) ने १९१६ में की थी। इसके अतिरिक्त अमरीकी रसायनज्ञ ल्यूइस (Lewis) ने कुछ ही मास बाद कल्पना की कि उपर्युक्त विधि के अतिरिक्त कुछ तत्व एक अन्य विधि से भी निष्क्रिय गैसों का इलेक्ट्रॉन विन्यास प्राप्त कर सकते हैं। इस कल्पना के अनुसार संयोग करनेवाले दो परमाणु कभी कभी अपने एक, दो, या तीन इलेक्ट्रॉनों का साझा करके दोनों के दोनों निष्क्रिय गैसों का विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार के संयोजन को केवल संयोजन इलेक्ट्रॉनों की सहायता से निम्न चित्र में दिखलाया गया है। सुविधा के लिए इनमें भिन्न तत्वों के संयोजन इलेक्ट्रॉनों को भिन्न चिन्हों से दिखला दिया गया है, यद्यपि इन इलेक्ट्रॉनों में परस्पर कोई अंतर नहीं है :

उपर्युक्त प्रकार की संयोजकता को सहसंयोजकता (covalency) का नाम दिया गया है और इसमें बने सहसंयोजक यौगिक साधारणतया निम्न गलनांक तथा क्वथनांक प्रदर्शित करते है और अधिकतर कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं (देखें सहसंयोजकता)।

इन दोनों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार की संयोजकता की कल्पना की गई है, जिसमें एक यौगिक या तत्त्व अपने दो खाली इलेक्ट्रॉन किसी दूसरे यौगिक या तत्व को देकर, दोनों में निष्क्रिय गैसों के इलेक्ट्रॉन विन्यास की अवस्था ला देता है। उदाहरण के लिए, अमोनिया अपने दो खाली इलैक्ट्रॉन हाइड्रोजन या बोरॉन क्लोराइड को प्रदान करके, उनको क्रमश: हीलियम तथा नीऑन का इलैक्ट्रॉन विन्यास दे देता है :

इस प्रकार की संयोजकता को उपसहसंयोजकता (Coordinate covaiency) कहा गया है, क्योंकि इस प्रकार की संयोजकता की कल्पना उपसहसंयोजक यौगिकों, जैसे हेक्साऐमीन, कोबाल्टी क्लोराइड तथा पोटैशियम फेरोसायनाइड आदि के गुणों को समझने में बहुत सहायक सिद्ध हुई है।

संयोजकता का यथार्थ ज्ञान ही समस्त रसायन शास्त्र की नींव है। पिछले ३०-४० वर्षो में द्रव्यों के स्वभाव तथा गुणों का अधिक ज्ञान होने के साथ साथ संयोजकता के ज्ञान में भी वृद्धि हुई है। (रामचरण मेहरोत्रा)