संभाजी (जन्म, १६५७; मृत्यु, १६८९) उग्र, उद्धत, तथा अदूरदर्शी संभाजी केवल साहस को छोड़कर अन्य चारित्रिक विशेषताओं में अपने पिता, शिवाजी से विपरीत प्रकृति का था। नौ वर्ष की अवस्था में शिवाजी की प्रसिद्ध आगरा यात्रा में यह साथ गया था। औरंगजेब के बंदीगृह से निकल, शिवाजी के महाराष्ट्र वापस लौटने पर, मुगलों से समझौते के फलस्वरूप, संभाजी मुगल सम्राट् द्वारा राजा के पद तथा पंचहजारी मंसब से विभूषित हुआ। औरंगाबाद की मुगल छावनी में, मराठा सेना के साथ, उसकी नियुक्ति हुई (१६६८)। शिवाजी के राज्याभिषेक के बाद ही, संभाजी के दुश्चरित्र का प्रमाण पाने पर शिवाजी ने उसे दंडित किया (१६७६)। जब उसका कोई प्रभाव न पड़ा तो पन्हाला के किले में उसे नजरबंद कर दिया गया (१६७८)। इस नियंत्रण से विद्रोह कर संभाजी पन्हाला से भागकर मुगल सेनानायक दिलेर खाँ से जा मिला (१६ दिसंबर, १६७८)। किंतु दिलेर खाँ के अत्याचार से विमुख होकर वह पुन: पन्हाला आ गया। शिवाजी की मृत्यु के बाद कुछ लोगों ने संभाजी के अनुज राजाराम को सिंहासनासीन करने का प्रयत्न किया। किंतु संभाजी ने राजाराम और उसकी माता को बंदी बनाकर स्वयम् को छत्रपति घोषित कर दिया (२० जुलाई, १६८०)। १० जनवरी, १६८१ को उसका विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। इसी वर्ष औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर ने दक्षिण भाग कर संभाजी का आश्रय ग्रहण किया। फलत: संभाजी और मुगलों का तुमुल संघर्ष छिड़ गया। छह साल अकबर संभाजी के आश्रय में रहा। १६८१ में राजाराम के समर्थकों ने सभाजी की हत्या का विफल षड्यंत्र किया। इसका उसने भीषण प्रतिशोध लिया। अनेक सामंतों के साथ उसने अपनी विमाता की भी हत्या कर दी। १६८३ में उसने पुर्तगालियों को पराजित किया। किंतु जब औरंगजेब ने बीजापुर तथा गोलकुंडा राज्यों को समाप्त कर पुन: महाराष्ट्र पर आक्रमण किया, तो संभाजी की स्थिति संकटापन्न हो गई। अपने मित्र तथा एकमात्र सलाहकार कविकलश के साथ वह बंदी बना लिया गया (१ फरबरी, १६८९)। दोनों को असीम यंत्रणाएँ सहनी पड़ीं। ११ मार्च, १६८९ को दोनों को मृत्युदंड दिया गया। मृत्यु के समय संभाजी ने जिस असीम साहस का परिचय दिया, उससे नैराश्यपूर्ण महाराष्ट्र में नवस्फूर्ति जाग्रत हो गई।

सं.ग्रं. - जी.एस. सरदेसाई : दे न्यू हिस्टरी ऑव द मराठाज़; जदुनाथ सरकार : शिवाजी, तथा द हाउस ऑव शिवाजी। (राजेंद्र नागर.)