संतोख सिंह, भाई (सन् १७८८-१८४३) वेदांत और सिक्ख दर्शन के विद्वान् और ज्ञानी संप्रदाय के विचार थे। आपके पूर्वज छिंवा या छिब्बर नाम के मोह्याल ब्राह्मण थे। आपका जन्म अमृतसर में हुआ। आपके पिता श्री देवसिंह निर्मला संतों के संपर्क में रहे। आपकी माता का नाम राजादेई (राजदेवी) था। आप रूढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे। अपनी परिवारिक परंपराओं की अवमानना करके आपने रोहिल्ला परिवार में विवाह किया। आपके सुपुत्र अजयसिंह भी बड़े विद्वान् हुए।

भाई साहब ने ज्ञानी संतसिंह से काव्याध्ययन किया। तदनंतर संस्कृत की शिक्षा काशी में प्राप्त की। सन् १८२३ में आप पटियालानरेश महाराज कर्मसिंह के दरबारी कवि के रूप में पधारे। दो वर्ष बाद कैथल के रईस श्री उदयसिंह आपको अपने यहाँ लिवा ले आए। पटियाला की भाँति कैथल में भी आपका बड़ा सम्मान हुआ और वहाँ पर अनेक विद्वानों का सहयोग भी प्राप्त हुआ। आपकी निम्नोक्त रचनाएँ उपलब्ध हैं : (१) 'नामकोश' (सन् १८२१) 'अमरकोश' का भाषानुवाद है। (२) गुरुनानक प्रताप सूर्य अथवा गुरु नानक प्रकाश (सन् १८२३) में गुरु नानक देव का जीवनचरित् उल्लिखित है। (३) जपुजी : गरब गजिनी टीका (सन् १८२९) गुरु नानक देव की रचना की टीका है जिसमें पूर्ववर्ती टीकाओं का खंडन मंडन भी है। लेखक स्वयं वेदान्त और स्मृतियों का पोषक दिखाई पड़ता है। (४) आत्मपुराण का उलथा (रचनाकाल अज्ञात)। (५) वाल्मीकि रामायण (१८३४ ई.) वाल्मीकि के आधार पर रामचरित का स्वतंत्र ग्रंथ। (६) गुरु-प्रताप-सूर्य (सन् १८४३) दो खंडों में है। पहले भाग में आदि सिक्ख गुरु नानक देव का तथा दूसरे भाग में शेष नौ गुरुओं का जीवनचरित् उल्लिखित है। इसपर पौराणिक प्रभाव स्पष्ट है।

इनकी रचनाओं में व्रजभाषा का प्राधान्य है। यत्रतत्र संस्कृत, फारसी और पंजाबी शब्द भी व्यवहृत हुए हैं। छंदों में दोहा, चौपाई का प्रयोग प्रचुर परिमाण में हुआ है, यथास्थान त्रिभंगी, कवित्त और सवैये का भी उपयोग हुआ है।

सं.ग्रं. - कान्हसिंह : गुरुशब्द रत्नाकर : महान् कोश; भाषा विभाग, पंजाब, पटियाला (द्वितीय संस्करण, सन् १९६०)। चंद्रकांत वाली : पंजाब प्रांतीय हिंदी साहित्य का इतिहास (प्रथम संस्करण, सन् १९६२)। सत्यपाल गुप्त : पंजाब का हिंदी साहित्य (प्रथम संस्करण, सन् १९५९)।श्श् (नवरत्न कपूर)