श्वेत यों तो वह शब्द एक द्वीपविशेष तथा शुक्र ग्रह के लिए आता है पर श्रीमद्भागवत में किसी श्वेत पर्वत का परिमाणादि वर्णित है (स्कंध ५, अध्याय १६)। पर उससे भी प्रसिद्ध है शिव जी का श्वेत-अवतर जिसका विवरण कौर्म के ५०वें अध्याय में इसप्रकार दिया है :

''आदौ कलियुगे श्वेतो देवदेवो महाद्युति:
नाम्ना हिताय विप्राणां अमू वैतस्वतेऽतंरे।।
हिमवच्छिखरे रम्ये विमले पर्वतोत्तमे।
तस्य शिष्यां शिखायुक्ता बभूवुरमितप्रभा:।।
श्वेत श्वेततिशखश्चैव श्वेतास्य: श्वेतलोहित:।
चत्वारस्ते महात्मानो ब्राह्मण वेदपारगा:।।

+

श्वेतस्तथा पर: शूली तिंडी मुंडी च वै क्रमात्।
सहिष्णु: सोमशर्मा च नकुलीशोऽन्तिमे प्रभु:।।
वैवस्वतेऽन्तरे शम्भोरवतारा स्त्रिशूलिन:।
अष्टाविंशतिराख्याता ह्यन्तेकलियुगे प्रभो:।।''

रामायण में श्वेत नामक एक बलवान् बानर का भी वर्णन है- 'श्वेतो रजतसंकाश: चपलो भीमविक्रम:। बुद्धिमान् वानर वरस्त्रिषु लोकेषु विश्रुत:।श्श् ((स्वर्गीय) रामाज्ञा द्विवेदी)