श्वासावरोध अगर कोई प्राणी एक छोटी झोली में रखी उच्छ्वसित वायु को बार बार अंदर खींचता है और उसे शुद्ध वायु नहीं मिलती है, तो श्वासावरोध के कारण अंत में वह मर जाता है। ऐसी स्थिति श्वासनली के रोध, वातिलवक्ष के द्वारा श्वसन, मांसपेशियों के पक्षाघात इत्यादि कारणों से भी हो सकती है। यह घटना तीन क्रमों में होती है : (क) अतिश्वसन, इसमें श्वासगति अधिकता से लयबद्ध होकर आगे बढ़ती है और इस क्रम के अंत में प्राणी चेतनाहीन हो जाता है, (ख) दूसरे क्रम में उच्छ्वसन ऐंठन उत्पन्न होती है। रक्तवाहिका में संकुचन होता है। लार के स्राव तथा आंत्रगति में या तो अवरोध होता है या वृद्धि तथा (ग) दूसरे क्रम के अंत में उच्छ्वास ऐंठन बंद हो जाती है तथा प्रश्वसन ऐंठन होती है। ऐसी अवस्था में प्राणी साँस लेने के लिए अपना मुँह बाहर निकालता है। साँस लेने के लिए मुख चौड़ा करता है और तब तीन चार मिनट के बाद अंतिम साँस लेता है।
सं. ग्रं. - डेविस, हॉल्डेन, किनैवे : जे. फिजिऑल, १९२०, ५४, ३२; वी. ई. उलर एवं सॉडरवर्ग : जे. फिजिआल, १९५२, ११८, ५४५. (राम चंद्र शुक्ल)