श्वासनलस्फीति (Bronohiectasis) फुप्फुस का रोग है, जिसमें श्वासनलिकाओं का विस्फारण (dilatation) हो जाता है। यह विस्फारण आकार में वर्तुल अथवा थैले या पुटी के समान हो सकता है। साथ ही नीलिकाओं की भित्तियों में शोथ हो जाता है और वे गलने लगती हैं। श्वाससंबंधी जीर्ण रोगों में राजयक्ष्मा के पश्चात् इसी रोग का स्थान है। अतएव यह रोग बहुत फैला हुआ है। रोग के लक्षणों के कारण जीवाणुसंक्रमण और श्वासनलिकाओं की रचना में परिवर्तन होते हैं, जिनके कारण उनमें बना हुअ स्राव पूर्णतया बाहर नहीं निकल पाता। चेचक, कुकरखाँसी या बाल्यकाल में कुकरखाँसी के कई आक्रमणों से इस रोग की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है।
रोग के विशेष लक्षण निरंतर खाँसी का आना और दुर्गंधयुक्त स्राव का बहुत अधिक मात्रा में निकलना है। रुधिर का आना दूसरा लक्षण है। फुप्फुस से अधिक मात्रा में रक्तस्राव हो सकता है। चिकित्सा में सावधानी की आवश्यकता है (देखें श्वसनतंत्र के रोग)। (मुकुंद स्वरूप वर्मा)