श्वान, थियोडोर (Schwann, Theodor, सन् १८१०-१८८२), जर्मन जैववैज्ञानिक, का जन्म राइनलैंड प्रदेश के नॉयस (Neuss) नगर में हुआ था। इन्होंने बॉन तथा बर्लिन में शिक्षा पाई थी।

कुछ काल तक जोहैनीज़ मुलर के अधीन कार्य करने के पश्चात् ये लूवैं (Louvain) के विश्वविद्यालय में शारीरशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् १८४७ में लिएज्ह (Liege) में प्रोफेसर का पद पाने पर, ये वहाँ चले गए और मृत्युपर्यंत वहीं रहे।

इन्होंने शरीर-क्रिया-विज्ञान संबंधी विविध अनुसंधान किए, जैसे मुर्गी के भ्रूण के श्वसन तथा पेशियों के कार्य करने की रीतियों को और पेप्सिन नामक एंजाइम को खोज निकाला तथा पदार्थों के सड़ने में सूक्ष्म जीवाणुओं की भूमिका का होना आवश्यक सिद्ध किया। विज्ञान को इनकी प्रमुख देन यह प्रतिपादित करना था कि जीवों के ऊतक भी उसी प्रकार कोशिकाओं के बने होते हैं जैसे वनस्पतियों के तथा ये मुख्यत: एक सदृश होते हैं। इस विचार ने पीछे अन्य वैज्ञानिकों द्वारा किए गए महत्व के अनेक अनुसंधानों को जन्म दिया। (भगवान दास वर्मा)