श्रेणी (सीराज़, Series)
a1,
a2, a3,.....संख्याओं के समुदाय
को, जो धनात्मक पूर्णाकों के कुलक से संबद्ध है, अनुक्रम कहते
हैं और a1+ a2+ a3+.....श्रेणी
कही जाती है। यदि पदों की संख्या अपरिमित हो, तो इस श्रेणी
को अनंत श्रेणी कहते हैं और श्द्वारा
व्यक्त करते हैं। माना Sn = a1+...+an श्इस श्रेणी के प्रथम पदों n
पदों
का योग है। यदि n के की ओर अग्रसर होने
पर Sn एक परिमित सीमा S
की एक परिमित सीमा S की ओर अग्रसर हो,
तो श्रेणी
अभिसरित (converge) कही जाती है S
की ओर, और S श्रेणी का योग कहलाता है। यदि Sn
अग्रसर होता है �
� की ओर, तो श्रेणी
परिस्थिति के अनुसार �
� या - � की ओर अपसारित
(diverge) होती कही जाती है।
यदि Sn परिमित रूप से दोलित
होता है, अर्थात् यदि प्रत्येक n
के लिए ।Sn। <
K है, और यदि Sn
किसी सीमा की ओर अग्रसर नहीं होता है, तो श्रेणी परिमित
रूप से दोलित करती कही जाती है। यदि n
के अनंत की ओर अग्रसर होने पर,।Sn।
अपरिमित रहता है और Sn किसी सीमा की
ओर अग्रसर नहीं होता, तो श्रेणी अनंत रूप से दोलित होती
कही जाती है। श्रेणी १ -
१ + १ - १ +...के लिए n
के
सम या विषम होने के अनुसार Sn
= ० या १ है। अत:
यह श्रेणी परिमित रूप से दोलित है। श्रेणी १ - २ + ३ - ४ +....के लिए S2n
= n,
S2n-1
= n
है और यह श्रेणी अनंत रूप से दोलन करती है।
अत:
किसी श्रेणी का अभिसरण, या अपसरण अपूर्ण योगों {Sn}
के अनुक्रम के अभिसरण, या अपसरण, पर निर्भर होता है। अभिसरण
के लिए आवश्यक एवं पर्याप्त अनुबंध यह है कि किसी लघु अविहित
धनराशि �
के निश्चित होने पर एक ऐसा पूर्णांक N
ज्ञात किया जा सकता है कि । Sm - Sn
। < �
हो, यदि m � N,
n
� N हो।
विशेषत: यदि श्रेणी अभिसरित है, तो n के
अनंत की ओर अग्रसर होने पर ।Sn - Sn-1। = ।an।
� ० होगा। सामान्यत:
जो श्रेणी अभिसरित नहीं होती, वह अपसारित कही जाती है।
गुणोत्तर (geometrical) श्रेणी 1+r+r2+...के
लिए Sn = (1-rn) / (1-r)
यदि r � 1,
और Sn = n यदि r = 1
है। यदि । r। <1
है, तो यह श्रेणी योग १(1-r)
की ओर अभिसरित होती है, अन्यथा अपसरित रहती है। श्रेणी
श्जिसमें
p
वास्तविक है, p >1 के लिए श्रेणी अभिसारी
और p � 1
के
लिए श्रेणी अपसारी है।
S के लिए निश्चित व्यंजक ज्ञात करना सदैव सरल नहीं है। अत: हम यह जानने के लिए कि कोई विशिष्ट श्रेणी अभिसारी है या नहीं, अभिसारी और अपसारी की परीक्षाविधियों का प्रयोग करते हैं। यदि कोई श्रेणी केवल धनात्मक पदों से बनी है, तो किसी पद के उपरांत {Sn} एक वृद्धिमय अनुक्रम होगा और ऐसे वृद्धिमय अनुक्रम के अभिसरण के लिए आवश्यक और पर्याप्त अनुबंध यह है कि यह परिमित हो, अर्थात् एक ऐसी अचर राशि K का अस्तित्व हो कि n के समस्त मानों के लिए Sn < K हो। धनात्मक पदोंवाली श्रेणी के अभिसरण परीक्षण की विधियाँ निम्नलिखित हैं :
(अ) तुलनात्मक परीक्षा - यदि an और bn धनात्मक पदों की दो श्रेणियाँ हों और A यदि और B दो ऐसी धनात्मक संख्याएँ अस्तित्व में हों कि A <an/bn < B हो, तो एक श्रेणी का अभिसरण या अपसरण दूसरी श्रेणी के अभिसरण या अपसरण को सूचित करता है। यदि an/bn शून्य की ओर अग्रसर हो, तो San अभिसारी होगा यदि Sbn भी अभिसारी हो। यदि an/bn अनंत की ओर अग्रसर हो, तो San अपसारी होगा यदि Sbn भी अपसारी हो। अत: यदि an = 1/ (na+c), 0 � a � 1, c > ० हो, तो bn = 1/n तो रखने पर San अपसारी होगा।
(आ) कोशी (Cauchy)
की मूल परीक्षा -
यदि श्।an।1/n <
1 हो तो श्रेणी अभिसारी और यदि
श्।an।1/n <
1 हो, तो श्रेणी अपसारी होगी।
(इ) समाकल परीक्षा
- यदि an
= f (x) और x � xo
के लिए �f (x) अनपहृत हो, तो Sn
= f (x) dx का मान ० और f
(1) के अंतर्गत होगा अत: समाकल
f (x) dx और श्रेणी दोनों ही
एक साथ अभिसारी या अपसारी होंगे। यदि हम f
(x) = 1/xP, p >0, लें तो श्रेणी �1/nP, p
>1 के लिए अभिसारी p � 1 और
के लिए अपसारी होगी। और यदि p = 1
है तो,
श्
श्(ऑयलर
का अचल) का अस्तित्व होगा और इसका मान o
और १ के अंतर्गत होगा।
(ई)
डिनी (Dini) और कुमर (kummer)
के निम्नलिखित साध्य से दालाँबेयर, राबे इत्यादि प्रणीत निष्पत्ति
परीक्षाएँ निकलती हैं। यदि S1/Dn
कोई धनात्मक पदोंवाली अपसारी श्रेणी हो और यदि
व्यक्त करें,
तो San
अभिसारी होगा यदि १ >o, और अपसारी होगा
यदि L<o। Dn
= 1 और n रखने पर हमें क्रमश:
दालांवेयर और राबे की परीक्षाविधियाँ प्राप्त होती हैं।
अब
हम किसी श्रेणी के निरपेक्ष अभिसरण की व्याख्या करेंगे। यह विचार
विशेषत: दो श्रेणियों के गुणन में लाभप्रद है। San
निरपेक्षत: अभिसारी उस समय कहा जाता है, जब S।an।
अभिसारी हो। यदि San
अभिसारी, किंतु S।an।
अपसारी हो, तो श्रेणी San
अनिरपेक्षत: अभिसारी, अथवा अर्ध अभिसारी, कहीं जाती है। क्रमानुसार
धनात्मक और ऋणात्मक पदों से बनी श्रेणी San
तभी अभिसारी होगी ।an। जब एकस्वनी ्ह्रासमय
और an =
० हो। उदाहरणार्थ, श्रेणी
श्अभिसारी
है, किंतु निरपेक्षत: अभिसारी नहीं। यदि धनात्मक पदोंवाली
श्रेणी अभिसारी हो, तो इसका योग पदों के क्रम पर निर्भर
नहीं होता और यदि ऐसी श्रेणी अपसारी हो, तो उसके पद चाहे
कितना भी अव्यवस्थित कर दिए जाएँ, वह अपसारी ही रहेगी। यदि
एक श्रेणी निरपेक्षत: अभिसारी हो, तो उसक योग पदों के अविन्यास
से नहीं बदलता। लेकिन यह बात अर्ध-अभिसारी श्रेणी के लिए खरी
नहीं उतरती। ऐसी किसी श्रेणी के केवल धन अथवा ऋण पद लेने
अपसारी श्रेणियाँ बनती हैं। रीमान ने सिद्ध किया है कि ऐसी
किसी श्रेणी के पद एक ऐसी श्रेणी बनाने के लिए क्रमबद्ध किए जा
सकते हैं जो किसी निश्चित योग की ओर अभिसारी, या अपसारी,
या दोलित होगी। श्रेणी
श्की
ओर अभिसारी होती है, किंतु श्रेणी
श्की
ओर अभिसारी होगी।
(x-a)n रूपवाली श्रेणी घात
श्रेणी कहलाती है, क्योंकि यह के घातों द्वारा व्यक्त की जाती
है। कोशी की मूल परीक्षा द्वारा यह ज्ञात होता है कि
।an।1/n =
1/R है, अत: घात श्रेणी अभिसारी होगी यदि ।x-a।
<
R, और अपसारी होगी यदि ।x-a।
>
R। संख्या R श्रेणी की अभिसरण त्रिज्या
कही जाती है।
घातीय
श्रेणी ex = श्के
लिए R
= � और श्रेणी
श्के
लिए R
= o होता है, अर्थात् यही श्रेणी x
= o के अतिरिक्त x के किसी मान के अभिसारी
नहीं है। द्विपद श्रेणी (1+x)n =
1 + nx +
x2 +
x3+....,
और लघुगणकीय श्रेणी� log (1+x)
= x -
श्... के लिए
R
= 1 होता है।
द्विक्
श्रेणी
के अभिसरण की व्याख्या भी इसी प्रकार की
जा सकती है। यदि am bn
पदों का योग, जिसमें o � m � m, o � n � n
है, Smn द्वारा व्यक्त किया जाए, तो द्विक् श्रेणी
तभी अभिसारी होगी जब m
और n के स्वतंत्र रूप से अनंत की ओर अग्रसर
होने पर Smn एक निश्चित सीमा
S की ओर अग्रसर हो। हम ऐसी श्रेणियों
का योग पंक्तियों द्वारा भी ज्ञात कर सकते हैं अर्थात् यदि n कोई निश्चित संख्या हो और यदि
श्रेणी an0+anl+...An
की ओर अभिसारी हो, तो हम श्रेणी
का योग ज्ञात करेंगे। यदि यह श्रेणी अभिसारी
है, तो हम इस योग को द्विक् श्रेणी का पंक्ति योग कहते
हैं। इसी प्रकार हम स्तंभयोग की भी व्याख्या करते हैं। यदि
दिक् श्रेणी का योग पहली प्रकार का है, तो यह आवश्यक नहीं
है कि पंक्तियों अथवा स्तंभों द्वारा प्राप्त इस योग के बराबर
हो। यदि द्विक् श्रेणी निरपेक्षत: अभिसारी हो, तो पंक्तियों
अथवा स्तंभों द्वारा प्राप्त योग S
के बराबर होगा। योग प्राप्त करने की अन्य विधि एक ऐसी श्रेणी
बनाने से संबद्ध है कि जिसमें Ck
= a0,n + al,n-1 + a2,n-2+....+an,.o
हो। यदि यह श्रेणी अभिसारी हो, तो इसका योग कर्णों द्वारा
प्राप्त दिक् श्रेणी का योग कहा जाता है। त्रिगुणित तथा बहुगुणित
श्रेणियाँ द्विक्श्रेणियों के विस्तार ही हैं।
यदि
हम दो घात श्रेणियों और
को नियमानुसार
गुणा करें और गुणनफल को
द्वारा व्यक्त
करें, तो cn = ao
bn +...+an bo श्होगा। यदि दो श्रेणियाँ
और
श्निरपेक्षत:
अभिसारी हों, तो उनका गुणनफल
के बराबर
होगा, जो स्वयं भी निरपेक्षत: अभिसारी होगी। यदि दोनों
श्रेणियाँ San
और Sbn
अभिसारी हों और इनमें से निरपेक्षत: अभिसारी हो, तो Scn
योग C = A B श्की ओर अभिसारी होगी। यदि San ,
Sbn
और Scn
सब अभिसारी हैं तो भी C = AB होगी।
श्(an
cos nx + bn sin nx) रूपवाली श्रेणी त्रिकोणमितीय श्रेणी
कहलाती है। यदि यह कुछ अन्य अनुबंधों की तुष्टि करती हो,
तो इसे फूरियर श्रेणी कहते हैं।
संकर पदोंवाली श्रेणी Szn = S (an + bn)� तभी अभिसारी होगी जब San और Sbn दोनों अभिसारी हों। यदि S।zn। अभिसारी हो, तो श्रेणी Szn निरपेक्षत: अभिसारी कही जाती है। ऐसी दशा में San और Sbn दोनों निरपेक्षत: अभिसारी होगी।
यदि
एक श्रेणी (x) = S (x) के पदों में चरराशि
x
संयुक्त हो तो एकरूप समघात अभिसरण के विचारों को प्रविष्ट
करके, S (x) के सांतत्य, अवकलन आदि से संबद्ध
समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। श्रेणी
(x) अंतराल I (a � x � b)
में समघात अभिसारी कही जाएगी, यदि निश्चित �>0
के लिए एक अंक N = N (�),
जो
x से स्वतंत्र हो, ऐसा अस्तित्वमय हो कि n
> N और x के
अंतराल I में व्याप्त किसी मान के लिए। S
(x) - Sn (x)। < � हो।
संतत फलनों की समघात अभिसरित श्रेणियों का योग सतत होता
है। साथ ही, सतत फलनों की एकरूप समघात अभिसरित श्रेणियाँ
पदानुकलित की जा सकती हैं। ऐसी ही एक विधि पदावकलन करने
की भी है।
दोलित
श्रेणियों के लिए भी अभिसरण जैसे विचार व्यक्त किए गए हैं। श्रेणी
a को (C, 1)
संकलनशील (सिसरो की प्रथम क्रम की विधि) कहते हैं, यदि n
के अनंत की ओर अग्रसर होने पर On =
श्एक परिमित
सीमा की ओर अग्रसर होता हो। यदि श्रेणी अभिसारी हो, तो
यह उसी योग की ओर (C, 1)
संकलनशील होगी, और यदि श्रेणी +
� (या - �) की ओर अपसारी
हो, तो n के अनंत की ओर अग्रसर
होने पर on + �
(या - �) की ओर अग्रसर
होगा। श्रेणी १ -
१ + १ - १ +.... संसृत नहीं
है, किंतु इसका (C,1) योग
श्है।
(C,
k) संकलन की विधि भी इसी प्रकार व्यक्त की जाती है।
यदि
अस्तित्वमय हो,
तो श्रेणी
�(A)
संकलनशील कहीं जाती है। ऑबेल के साध्य द्वारा यह स्पष्ट है
कि यदि
अभिसारी हो
S
की ओर, तो
�= S
होगा। अत: प्रत्येक अभिसारी श्रेणी समान योग की ओर (A)
संकलनशील होती है, किंतु इसका विपर्यय सत्य नहीं है।
स. ग्रं. - के. क्नॉप : थ्योरी ऐंड ऐप्लिकेशन ऑव इनफिनिट सीरीज़ (१९२८); ब्रॉमविच : ऐन इंट्रोडक्शन टु दि थ्योरी ऑव इनफिनिट सीरीज़ (१९२६); हार्डी : डाइवर्जेंट सीरीज़ (१९३१); टिचमार्श: थ्योरी ऑव फंक्शंस (१९३९)। (स्वरूपचंद्र मोहनलाल शाह)