श्रीवास इनके माता पिता श्रीहद से नवद्वीप में आ बसे थे। यहीं सं. १५१० में इनका जन्म हुआ। ये आरंभ में निष्ठुर, नास्तिक तथा दंभी थे पर स्वप्न में प्रेरणा प्राप्त कर भक्त हो गए। श्री गौरांग ने इन्हें तथा इनके परिवार को प्रत्यक्ष अवतारी महाभावावेश का दर्शन दिया था और एक वर्ष इनके गृह पर रहकर भक्ति का प्रचार किया। श्री गौरांग के कृष्णलीलाभिनय में इन्होंने नारद जी की भूमिका ग्रहण की थी। श्री गौरांग के पुरी चले जाने पर यह श्रीहद चले गए और वहाँ भक्तिकीर्तन का प्रचार किया। १५९० में श्रीगौर के अंतर्धांन होने पर यह भी अंतर्हित हो गए। इस संप्रदाय के पंचतत्व में यह भी एक हैं। ((स्वर्गीय) ब्रजरत्न दास.)