श्रीनिवासचार्य इनके पिता का नाम गंगाधर भट्टाचार्य उपनाम चैतन्यदास था। सं. १५७६ में वैशाखी पूर्णिमा को इनका जन्म हुआ था। श्री जीव गोस्वामी के यहाँ श्यामानंद जी तथा नरोत्तमदास ठाकुर के साथ भक्ति के ग्रंथों का बहुत दिनों तक अध्ययन किया। श्री जीव के आदेश से भक्तिग्रंथों का प्रतिलिपियाँ लेकर ये तीनों सं. १६३९ में बंगाल तथा उत्कल में धर्मप्रचार करने चले। विष्णुपुर में डाकुओं ने धन समझकर ग्रंथों के संदूक लूट लिए। वहाँ का राजकुमार इनकी भक्ति तथा विद्वत्ता से प्रभावित होकर इनका शिष्य हो गया और उसने ग्रंथों को ढूँढ निकाला। उत्तर तथा पश्चिम बंगाल में इस धर्म के प्रचार का श्रेय इन्हें तथा नरोत्तमदास ठाकुर ही को है। इनकी मृत्यु सं. १६६४ में हुई। ((स्वर्गीय) ब्रजरत्न दास)