आर्मस्ट्रांग विलियम जार्ज आर्मस्ट्रांग बैरन (१८१०-१९००), अंग्रेज आविष्कारक तथा तोप आदि बनाने के कारखाने का मालिक था। सन् १८३३ से १८४० तक वह वक़ील था, परंतु उसका मन यांत्रिक और वैज्ञानिक खोजों में लगा रहता था। सन् १८४१-४३ में उसने कई खोजपत्र प्रकाशित किए जिनमें बर्तनों से निकली भाप की विद्युत् पर अन्वेषण किया गया था। इसका ध्यान इस ओर आकर्षित होने का कारण यह था कि उससे एक इंजन चालक ने पूछा कि भाप में हाथ रखकर बायलर को छूने से झटका क्यों लगता है। पीछे उसने समुद्रतट पर जहाजों से भारी माल उठाने के लिए जलचालित क्रेन का आविष्कार किया। आर्मस्ट्रांग ने एल्स्विक का कारखाना इसी यंत्र के निर्माण के लिए स्थापित किया, परंतु शीघ्र ही उसका ध्यान तोप बनाने की ओर आकर्षित हुआ। उसकी बनाई तोपों में विशेषता यह थी कि पुष्टता लाने के लिए इस्पात के नल के ऊपर धातु के तप्त छल्ले चढ़ाए जाते थे, जो ठंडे होने पर सिकुड़ कर भीतर की नाल को खूब दबाए रहते थे, जिससे नाल फटने नहीं पाती थी। नाल के भीतर पेच कटा रहता था और गोल गोलों के बदले इसमें आधुनिक ढंग के लंबे गोले दागे जाते थे जो नाल के पेच के कारण अपनी धुरी पर तीव्रता से नाचते हुए निकलते थे। इससे गोला दूर तक पहुँचता था और लक्ष्य पर सच्चा जा बैठता था। इन गुणों के अतिरिक्त तोप में गोला मुंह की ओर से न डालकर पीछे से डाला जाता था। इन सब सुविधाओं के कारण आर्मस्ट्रांग की तोपें खूब चलीं, यद्यपि बीच में कुछ वर्षों तक ब्रिटिश सेना ने इनको अयोग्य ठहरा दिया था। सन् १८८७ में ब्रिटिश सरकार ने आर्मस्ट्रांग को बैरन की पदवी प्रदान करके सम्मानित किया। अपने खोजपत्रों के अतिरिक्त आर्मस्ट्रांग ने दो पुस्तकें भी लिखीं हैं : ए विज़ट टु ईजिप्ट और इलेक्ट्रिक मूवमेंट्स इन एअर ऐंड वाटर।