श्येन शिकारी चिड़िया हैं। इनके अंतर्गत तीन प्रमुख कुल फैल्कोनिडी (Falconidae), वल्ट्यूरिडी, तथा लैरिडी हैं। ये चिड़ियाँ शिकार को जिंदा पकड़ने में काम आती हैं। इनमें कुछ मुर्दाखोर भी होती हैं। ये शिकारी चिड़ियाँ पेड़ों पर सुगमता से बैठ सकती और धरती पर स्वच्छंदता से फुदक सकती हैं। ये प्रबल उड़ान भर सकती हैं। इनके नाखून बड़े तेज होते हैं और चोंच आगे को झुकी रहती है, जिससे ये शिकार को सरलता से फाड़कर खा सकती हैं। इनकी मादाएँ साधारणतया नरों से कुछ बड़ी होती हैं। ये सब मांसभक्षी हैं और छोटे छोटे जीव जंतुओं, पक्षियों, साँपों, छिपकलियों, मेढकों, मछलियों, कछुओं, केकड़ों, कीड़े मकोड़ों और मोलस्कों को खाती हैं।
फैल्कोनिडी कुल - इस कुल के पक्षी महाश्येन, बाज, बहरी शिकरा, टीसा, तुरमती, खेर मुनिया, लगर, चरग या चरख और चील हैं। महाश्येन कई प्रकार के होते हैं। ये अनेक देशों में पाए जाते हैं तथा भारत के हिमालय के ऊँचे प्रदेश में भी पाए जाते हैं। भारत के मैदानों में पाए जानेवाले महाश्येन छोटे होते हैं, जिन्हें उकाब (Tawry eagle) कहते हैं (देखें महाश्येन)। उकाब गहरे रंग का, गोल तथा लंबी पूँछवाला पक्षी है। इसकी शकल सूरत बहुत कुछ चील से मिलती जुलती है इसके पंजे बड़े मजबूत होते हैं। इसकी मादा २९ इंच की और नर लगभग २५ इंच के हाते हैं। मादा घासपात का घोंसला बनाकर, उसमें एक से तीन तक अंडे देती है। अंडे हलके राखी या सफेद रंग के होते हैं।
बाज (goshawk) भारत में सर्वत्र पाया जाता है। लगभग २० इंच लंबा यह पक्षी बड़ा बहादुर शिकारी है। इसके पंजे बड़े मजबूत होते हैं। इसका ऊपरी हिस्सा राखीपन लिए भूरा होता है और सिरा गुद्दी और गर्दन के दोनों बगल का हिस्सा काला होता है। नर तथा मादा दोनों एक रूप के होते हैं। मादा को बाज और नर को जुर्रा कहते हैं। इन्हें गुलाबचश्म भी कहते हैं। यह छोटे छोटे जंतुओं, सरीसृपों और चिड़ियों को खाता है। एक बार में इसकी मादा तीन से चार अंडे तक देती है। ये तीतर, कबूतर, चकोर, मोर, जंगली मुर्गियाँ, हंस आदि पक्षियों को खाते हैं। ये खरगोश सदृश छोटे जानवरों का भी शिकार करते हैं।
बहरी (peregrine falcon) समस्त भारत में पाई जाती है। यह सुंडा द्वीपों से लेकर फिजी और चीन तक पाई जाती है। बाज से यह पक्षी छोटा होतो है। इसका नर १६ इंच और मादा २० इंच की होती है। नर और मादा दोनों ही एक रंग रूप के होते हैं।
शिकरा (shikra, astur, badins) भारत के सब प्रदेशों में पाई जानेवाली चिड़िया है। इसका नर १२ इंच लंबा और मादा १४ इंच लंबी होती है।
टीसार (white-eyed buzzard) चिड़िया खुले मैदान में रहना ज्यादा पसंद करती है। शिकार पकड़ने के साथ साथ यह मुर्दाखोर भी होती है। नर तथा मादा एक रूप के और बराबर कद के होते हैं। मादा भद्दा या घोंसला बनाकर तीन चार अंडे देती है।
तुरमती शिकारी चिड़िया है। इसकी मादा नर से बड़ी होती है। यह १२-१४ इंच लंबी होती है। इसके बगल का हिस्सा हल्का खैरा और ऊपरी हिस्सा सलेटी रहता है, जिसपर भूरी धारियाँ पड़ी रहती हैं। इसके डैने कलछौंह और चोंच हरापन लिए पीली होती है। यह छोटी छोटी चिड़ियों को खाती है।
खेरमुनिया (kestrel) जाड़ों में देखी जाती है। अंडे हिमालय के पश्चिमी भागों में देती है। नर और मादा के रंग में थोड़ा भेद रहता है।
लगर (laggar falcon) १६ इंच लंबी शिकारी चिड़िया है। नर तथा मादा एक ही रूप रंग के होते हैं।
चील (kite) बारहमासी चिड़िया है। यह भारत के सब प्रदेशों में पाई जाती है। इसका सारा बदन भूरे रंग का होता है। चोंच काली और पैर पीले होते हैं। यह बड़ी तेजी से झपट्टा मारकर खाने की चीज ले भागती है। यह पशु, पक्षी, सरीसृप और कीड़े मकोड़ों के अतिरिक्त मुर्दा भी खाती है (देखें चील)।
वल्ट्यूरिडी कुल - इस कुल में विभिन्न प्रकार के गिद्ध आते हैं१ इनकी दृष्टि बड़ी तेज होती है। मुर्दे खाकर ये अपना पेट भरते हैं। ये हामरे लिए सफाई का काम करते हैं। जहाँ कहीं भी मरा हुआ जानवर देखते हैं, वहाँ से पहुँचकर नोंच नोंचकर मांस खा जाते हैं। विभिन्न प्रकार के गिद्धों (valtures) में चमर गिद्ध (white-backed valture), राज गिद्ध (king valtures) और गोबरगिद्ध (scavenger valtures) अधिक महत्व के हैं। ये तीनों ही प्रकार के गिद्ध भारत में बारहो मास पाए जाते हैं। इनके रूप, रंग और कद में थोड़ा अंतर है। इसमें चमर गिद्ध सबसे बड़ा होता है, राज गिद्ध सबसे छोटा होता है। चमर गिद्ध यूथचारी पक्षी है। भड़कीले लाल और काले रंग के कारण इसे राज, गिद्ध नाम मिला है। गोबर गिद्ध, चील से अधिक मिलता जुलता है। इसका रंग सफेद होता है। अत: इसे कहीं कहीं सफेद गिद्ध भी कहते हैं। यह गोबर और पाखाना भी खाता है, जिससे इसका नाम गोबर गिद्ध पड़ा है। अन्य गिद्धों की तरह इसकी गरदन लंबी नहीं होती। इसके पैर का रंग प्याजी सफेद होता है। मादा एक बार में बहुधा दो अंडे देती है (देखें गिद्ध)।
लैरिडी कुल - इस कुल के पक्षियों में मछारंग (osprey) अधिक महत्व का है। मछारंग मछली का शिकार करता है। इसी से इसका नाम मछारंग पड़ा है। साधारणत: यह मीठे और खारे पानी के किनारे पाया जाता है। इसके नर तथा मादा एक रूपरंग के होते हैं। शरीर का ऊपरी हिस्सा गाढ़ा भूरा और नीचे का सफेद होता है। चोंच कलछौंह और पैर पीले होते हैं। यह जाड़े में ही साधारणतया देखा जाता है, (देखें कुररी)।
सं. ग्रं. - सुरेश सिंह : जीव जगत्, हिंदी समिति, लखनऊ। (राम चंद्र सक्सेना)