शेख अहमद सरहिंदी (मुजद्दिद अल्फे सानी) का जन्म १४ शव्वाल, ९७१ हि. (२६ मई, १५६४ ई.) को सरहिंद में हुआ, जो उस समय अकबर के विरोधी शेखजादों का केंद्र था। शेख अहमद ने प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा अपने पिता शेख अब्दुल अहद से प्राप्त की जो चिश्ती एवं क़ादिरी सिलसिले के अनुयायी थे। कुछ समय के लिए वे आगरा भी पहुँचे किंतु वहाँ का 'सुलह कुल' (सब धर्मों के प्रति शांति) का वातावरण उन्हें पसंद न आया और वे सरहिंद लौट गए। १७ रजब, १००७ हि. (१३ फरवरी, १५९९ ई.) को उनके पिता की मृत्यु हो गई और साल भर बाद वे हज के लिए चल खड़े हुए। दिल्ली में ख्वाजी बाक़ी बिल्लाह नामक नक्शबंदी सूफ़ी से प्रभावित होकर हज का विचार त्याग दिया और ख्वाजा साहब की मृत्यु (नवंबर, १६०३ ई.) के पश्चात्, ख्वाजा साहब के प्राचीन शिष्यों के घोर विरोध के बावजूद, उनके उत्तराधिकारी बने। शेख साहब का विचार था कि १००० वर्ष बीत जाने के कारण तथा अकबर की 'सुलह कुल' की नीति से इस्लाम भ्रष्ट हो गया है। इस्लाम के शुद्धतम रूप को चलाने के लिए उन्होंने अपनी उपाधि मुजद्दिद अल्फ़ेसानी (इस्लाम के दूरे हज़ारे का पुनरुत्थान करनेवाला) रखी। अकबर की मृत्यु के उपरांत उन्होंने शेख फ़रीद बुखारी, लाला बेग (जहाँगीर कुली खाँ), मीरान सद्रेजहाँ, मिर्जा अज़ीज़ काका को इस आशय के पत्र लिखे कि जहाँगीर के राज्यकाल के प्रारंभ में ही इस्लाम के शुद्धतम रूप को प्रचलित करने का दृढ़ प्रयत्न करना चाहिए; खाने खाना, उसे पुत्र मिर्जा दाराब, कुलीज खाँ, ख्वाजये जहाँ तथा खाने जहाँ को लिखे पत्रों में भी उन्होंने इस्लाम के शुद्धतम रूप की उन्नति पर जोर दिया जिसकी परिभाषा किसी काल में भी एकमत से नहीं स्वीकार की गई। बुरे आलिमों तथा सूफियों को भी उन्होंने फटकारा किंतु किसी भी बुरे आलिम तथा सूफ़ी का नाम नहीं लिखा। इन पत्रों को साधारण रूप से पढ़नेवालों का विचार है कि मुजद्दिद के समकालिन अमीरों ने उनके विचारों का अत्यधिक प्रचार किया, किंतु इन अमीरों की जीवनियों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि वे अकबर की नीति का, जिसका जहाँगीर पोषक रहा, पालन करते रहे; यहाँ तक कि शेख फ़रीद बुखारी भी, जिन्हें ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह एवं मुजद्दिद पर बड़ी श्रद्धा थी, मुजद्दिद की शिक्षा को व्यावहारिक नहीं समझते थे, जब इनके पत्रों का प्रथम संग्रह लोगों के हाथों में पहुँचा तो इनकी बड़ी आलोचना हुई और १६१९ ई. में जहाँगीर ने इन्हें ग्वालियर के किले में बंदी बना दिया, किंतु साल डेढ़ साल में जब लोग शांत हो गए तो उन्हें सेना के शिविर में रहने अथवा घर चले जान की अनुमति दे दी। वे सेना के साथ कुछ वर्ष रहे और सेना में प्रचार से संतुष्ट थे, किंतु जहाँगीर की धार्मिक नीति में अंत तक कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ता। १६२४ ई. में मुजद्दिद की मृत्यु हो गई।

सं.ग्रं. - मुजद्दिद के पत्रों का संग्रह, ३ भाग; मुहम्मद हाशिम : जुब्दतुल मकामात; बद्रुद्दीन सरहिंदी : हजरातुलकुद्स; मीर अली अकबर हुसेनी : मजमउल औलिया; मुहम्मद अमीन बदख्शी; मनाकिबुल हज़रात; बुरहानुद्दीन अहमद फरूकी : दि मुजद्दिद्स कनसेप्शन ऑव तौहीद; सै.अ.अ. रिजवी : मुस्लिम रिवाइवलिस्ट मूवमेंट्स इन नार्दर्न इंडिया इन दि सिक्सटींथ ऐंड सेवेंटीथ सेंचुरीज। (सैयद अतहर अब्बास रिज़वी.)