शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी के पूर्वज बुखारा निवासी थे। उनके पिता शेख सैफुद्दीन एवं चाचा शेख रिज़्कुल्लाह मुश्ताक़ी बड़े विद्वान् थे। शेख रिज़्कुल्लाह हिंदी के भी कवि थे। राजन उनका उपनाम था और पैमान एवं ज्योतिनिरंजन नामक दो काव्यों की उन्होंने रचना की थी। शेख अब्दुल हक़ का जन्म १५५१ ई. में हुआ था। अध्ययन में उनकी बड़ी रुचि थी। १५८८ ई. मे वे मक्का गए और वहाँ शेख अब्दुल वह हाव मुत्तकी से हदीस की शिक्षा ग्रहण की। १५९१ में वे दिल्ली लौट आए और आजीवन शिक्षा दीक्षा में व्यस्त रहे। खानेखाना एवं शेख फ़रीद बुखारी को इनपर बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने हदीस एवं मुहम्मद साहब की जीवनी से संबंधित अनेक ग्रंथ लिखे जिनमें अशेअतुल्लम आत फ़ी शरहे मिश्कात, एवं मदारिजुन्नुबूवत बड़े महत्वपूर्ण हैं। मरजुल बहरैन नामक ग्रंथ में उन्होंने सूफियों एवं आलिमों के पारस्परिक विरोध को दूर करने का प्रयत्न किया है। इनका सबसे अधिक प्रसिद्ध ग्रंथ अख्वारुल अखियार फ़ी असरारुल अब्रार है। इनमें हिंदुस्तान के सूफ़ी संतों का बड़ा ही प्रामाणिक विवरण दिया है और उनकी रचनाओं के उद्धरणों का भी समावेश कर दिया है। जहाँगीर ने इस ग्रंथ की रचना के कारण उन्हें अपने राज्यकाल के १४ वें वर्ष में अत्यधिक सम्मानित किया किंतु अंत में शेख के तथा जहाँगीर के संबंध खराब हो गए। उसने १६२७ ई. में उन्हें कश्मीर, जहाँ वह ठहरा था, बुलवाया। इसी बीच जहाँगीर की मृत्यु हो गई। ऐसा ज्ञात होता है कि शेख की इस्लाम के शुद्धतम रूप की शिक्षा को जहाँगीर ने शासन के हित में न समझकर उनपर प्रतिबंध लगाना चाहा था। जून, १६४२ ई. में शेख की मृत्यु हो गई। शाहजहाँ के राज्यकाल के सभी इतिहासकारों ने इनकी अत्यधिक प्रशंसा की है। (सैयद अतहर अब्बास रिज़वी)