शून्य (Zero) वह अंक (०) है, जिसका मान 'कुछ नहीं' है। इसके अविष्कार के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, किंतु इतना सब मानते हैं कि अन्य अंकों की भाँति इसकी खोज भी भारत में हुई। ब्रह्मगुप्त (५९८ ई.) को शून्य की संकल्पना का बोध था। अरबवासियों ने भारत से शून्य तथा अन्य अंकों को लिया और उनका तथा स्थैतिक मान (position value) के आधार पर संख्या लेखन का प्रचार ७१९ ई. से स्पेन और अन्य यूरोपीयय देशों में किया। १२वीं शताब्दी के महानतम, भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शून्य की क्रियाओं के ८ नियम दिए हैं। ऐसे भिन्न को, जिसका हर (denominator) शून्य और अंश (numerator) कोई अन्य संख्या हो, आर्यभट्ट ने अनंत (Infinity) की संज्ञा दी थी। शून्य को अरबवासियों ने सिफर कहा और उसके लैटिन अनुवाद के अपभ्रंश से अंग्रेजी रूपांतर ज़ीरो बना। ज्ञानविकास के इतिहास में शून्य और अंकों के स्थैतिक मान के आविष्कार का प्रमुख स्थान है।
सं.ग्रं. - केंटर : हिस्ट्री ऑव मैथेमैटिक्स; डिक्सन : हिस्ट्री ऑव दि थ्योरी ऑव नंबर्स; वि. दत्त और ए.एन. सिंह : हिस्ट्री ऑव हिंदू मैथेमैटिक्स (१९३५ ई.); जे.एफ. स्टॉक : ए हिस्ट्री ऑव मैथेमैटिक्स (१९५८ ई.)। (हरिश्चंद्र गुप्त)