शिवि महाराज ययाति के दौहित्र तथा राजा उशोनर के पुत्र, वैदिक मंत्रद्रष्टा तथा यज्ञकर्ता (ऋ. १०.१७९.१), 'शिवि औशीनर' जिनकी उदारता एवं दयालुता जगत्प्रसिद्ध है (ब्रह्मांड ३.७४.२०)। इन्हीं गुणों की परीक्षा लेने के लिए इंद्र तथा अग्नि बाज एवं कबूतर बनकर इनके पास पहुँचे। बाज कबूतर को खा जाना चाहता था पर शिवि ने उसे अपनी गोद में छिपा लिया। बाज ने भूख मिटाने के लिए कबूतर के बराबर ही स्वयं राजा का मांस माँगा। कबूतर को तराजू के एक पलड़े पर रखकर शिवि दूसरे पलड़े पर अपना मांस काट काटकर रखने लगे, पर वह पक्षी इतना भारी हो गया कि शिवि को स्वयं पलड़े पर बैठना पड़ा। इसपर अपने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर दोनों देवताओं ने महाराज शिवि को वर दिया। (महा. वन. १३०.१९-२०) इनके पुण्य तथा औदार्य की कथाएँ पद्मपुराण तथा महाभारत में अन्यत्र भी मिलती हैं। ((स्वर्गीय) रामाज्ञा द्विवेदी)