शिवरात्रि इसका नामांतर महाशिवरात्रि भी है। माघ मासीय कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि या फाल्गुन मास (यदि पूर्णिमांत गणना हो) के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि ही प्रकृत शिवरात्रि है। यह 'शिव्व्रात' है। व्रतकारी को शिवचिंतापरायण होकर उपवास पूजा और रात्रिजागरण करना पड़ता है। यह व्रत रात्रिप्रधान है।

इस व्रत की महिमासूचक कई कथाएँ पुराणों में विस्तार के साथ कही गई हैं। किस प्रकार साधारण रूप से इस दिन उपवास आदि कर सामान्य लोगों ने असाधारण फल प्राप्त किया - यह इन कथाओं में दिखाया गया है। ईशान संहिता में कहा गया है कि माघ कृष्ण चतुर्दशी को शिव का लिंग रूप में आविर्भाव हुआ था।

शिवरात्रि व्रत के अनुष्ठान के विषय में आचार्यों में मतभेद है - कोई प्रदोष, कोई रात्रि (निशीथ) और कोई अर्धरात्रि पर बल देते हैं। इस व्रत में शिवलिंग की विशिष्ट रीति से पूजा की जाती है, जिसका विवरण तिथितत्व में दिया गया है। इस व्रत के अनुष्ठान में संप्रदायानुसार कुछ विभिन्नताएँ हैं। (रामांकर भट्टाचार्य)