शिक्षाशास्त्री पूरब और पश्चिम के अनेक शिक्षाशास्त्रियों - शंकर रामानुज, निंबार्क, कर्वे, मदनमोहन मालवीय, सुकरात न्यूटन, स्पेसर आदि का वर्णन उनके संबंधित लेखों के साथ तथा 'शिक्षादर्शन' आदि लेखों में किया गया है। कुछ के नाम तथा संक्षिप्त विवरण यहाँ दिया जा रहा है। पश्चिम के शिक्षाशास्त्रियों में सुकरात, अफलातून और उसके शिष्य अरस्तू का प्रमुख स्थान है।

अफलातून - यूनान का अति प्रसिद्ध दार्शनिक और शिक्षाविद् था। उसने अकादेमी नामक स्थान में एक बड़े शिक्षा संस्थान की स्थापना की थी जिसमें विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी। उसका विश्वास था कि परिपक्व बुद्धिवाला ज्ञानी दार्शनिक ही सुयोग्य शासक वन सकता है। इसके लिए उत्तम शिक्षाप्रणाली का होना आवश्यक है। उसने राजनीति, सौंदर्य तत्व, सृष्टि तत्व, गणतंत्र, तथा शिक्षाशास्त्र आदि विषयों पर दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। यूरोप के परवर्ती शत शत विचारकों पर उसका प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। (दे. अफलातून, खंड १, पृ. १५१, १५२, तथा २२१, ३४०, दे. 'शिक्षा दर्शन')।

अरस्तू - अफलातून का प्रमुख शिष्य था। वह १८ वर्ष की उम्र में एथेंस आकर अफलातून का शिष्य बना। २० वर्ष तक उसके समीप रहकर उसने विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त किया। वह लंबे अरसे तक अध्ययन और अध्यापन के कार्य में व्यस्त रहा। उसने बहुत सी पुस्तकें लिखीं। वह अनेक विषयों का जानकार और उन्हें एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न करनेवाला उच्च श्रेणी का दार्शनिक था। (दे. अरस्तू, तथा खंड १, पृ. ३४०, ४१, दे. 'शिक्षादर्शन')।

अहमद खाँ सर सैयद (दे. खंड, १, पृ. ३०४, ०५)

आशुतोष मुखर्जी - महान् शिक्षाशास्त्री तथा राष्ट्रनेता श्री आशुतोष मुकर्जी का नाम देश में राष्ट्रीय शिक्षा की पुनर्रचना के लिए स्मरणीय रहेगा। आपका जन्म २९ जून, सन् १८६४ ई. को कलकत्ता में हुआ था। आपकी शिक्षा दीक्षा कलकत्ता में ही हुई। विश्वविद्यालय की शिक्षा पूर्ण हो जाने पर आपकी इच्छा गणित में अनुसंधान करने की थी किंतु अनुकूलता न होने के कारण कानून की ओर आकृष्ट हुए। तीस वर्ष की अवस्था के पूर्व ही आपने विधि में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली। सन् १९०४ में आप कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त हुए। देश के विधिविशारदों में आपका प्रमुख स्थान था। सन् १९२० ई. में आपने कलकत्ता उच्च न्यायालय के प्रधान के पद पर भी कुछ समय तक कार्य किया। २ जनवरी, १९२४ को आपने इस पद से अवकाश ग्रहण किया। विश्वविद्यालयीय, शिक्षा के मानदंड को स्थिर करने तथा तत्संबंधी आदर्शों की स्थापना के लिए श्री आशुतोष का नाम राष्ट्र के इतिहास में अमर रहेगा। कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा लेनेवाली संस्था से उन्नत कर शिक्षा प्रदान करनेवाली संस्था बनाने का मुख्य श्रेय आपको ही है। सन् १९०६ से १४ तक तथा १९२१ से १९२३ तक आप कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर रहे। विश्वविद्यालय के 'फेलो' तो आप सन् १८८९ से सन् १९२४ तक बने रहे। बँगला भाषा को विश्वविद्यालयीय स्तर प्रदान कराने का श्रेय भी आपको ही प्राप्त है। कवींद्र रवींद्र ने आपके विषय में यह कथन किया था - 'शिक्षा के क्षेत्र में देश को स्वतंत्र बनाने में आशुतोष ने वीरता के साथ कठिनाइयों से संघर्ष किया।' राष्ट्रीय शिक्षा की रूपरेखा स्थिर कर उसे आदर्श रूप में कार्यान्वित करे के लिए आपका सदा स्मरण किया जाएगा। सन् १९२४ ई. में आपका निधन हुआ। (ल.शं.व्या.)

आर्मस्ट्रांग - दे. 'शिक्षादर्शन'।

ऐक्वाइनस, सेंट टॉमस (१२२६-१२७४ ई.) इटली की विद्वान् धर्मशास्त्री। तेरहवीं शताब्दी के तत्ववेत्ताओं में वह पहला व्यक्ति था जिसने इंद्रियानुभूति के महत्व और मानवीय ज्ञान के प्रयोगात्मक आधार पर बल दिया।

ऐलक्विन - दे. खंड २, पृ. २४१

कमेनियस - जॉन एमॉस, दे. खंड २, पृ. ३५२

कर्वे, डी.के. - दे. खंड ६, पृ. ३२५

के.एफ.ई. - दे. खंड ३, पृ. १४९

जियोवानी, जेंतील - दे. खंड ४, पृ. ४९६-९८

डुई, जाँन - दे. खंड ५, पृ. २५२

देकार्त, रेने - दे. खंड ६, पृ. १०३

पार्खर्स्ट, कु. हेलेन - दे. खंड ५, पृ. २३२-३३, दे. 'शिक्षादर्शन'।

पेस्तालॉत्सी, जोहान् हाइनरिख - (१७४६-१८२७ ई.) प्रसिद्ध पाश्चात्य शिक्षाशास्त्री। बचपन में पिता चल बसे अत: माता ने इन्हें पाला। इनके दादा का भी इनके मन पर बहुत प्रभाव पड़ा। रूसो के विचारों में कुछ संशोधन कर इन्होंने उन्हें कार्यरूप में परिणत करने के प्रयास किए। विद्यार्थी जीवन में ही समाजसेवा की ओर झुकाव हो गया था। पत्रिकाओं में लेख लिखते थे। आगे चलकर इन्हें पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। १७८१ और १७८७ के बीच इनकी 'लियोनार्ड ऐंड गर्ट्रूड' शीर्षक पुस्तक चार खंडों में प्रकाशित हुई। १७९२ में जर्मनी के गेटे, फिक्टे इत्यादि विद्वानों से उन्हीं के देश में जाकर ये मिले। सौ एकड़ भूमि मोल लेकर अपने नवीन कृषिक्षेत्र (Neuhof) में इन्होंने कुछ बच्चों को उद्योग के साथ साथ शिक्षा देने का असफल प्रयास किया था। १७९९ के पूर्वाध में स्टैज में इन्हें कुछ अनाथ बच्चों को शिक्षा देने का अवसर मिला। उसी वर्ष के अंत में बर्गडॉर्फ के दुर्ग में इनका विद्यालय स्थापित हुआ। इन्हें अच्छे अध्यापकों का सहयोग प्राप्त हुआ। १८०१ में इनकी 'हाइ गर्ट्रूड टीचेज़ हर चिल्ड्रैन' शीर्षक पुस्तक प्रकाशित हुई। प्रारंभिक शिक्षा संबंधी कुछ अन्य पुस्तकें भी लिखी गईं। १८०४ में इन्हें बर्गडॉर्फ का दुर्ग सैनिकों के लिए खाली कर देना पड़ा। १८०५ से १८२५ तक इनका विद्यालय इवर्डन में चलता रहा। अर्धाभाव के कारण इनकी योजनाओं में बाधा पड़ जाती थी।

पेस्तालॉत्सी ने व्यक्ति की समस्त शक्तियों के सामंजस्यपूर्ण विकास को शिक्षा का उद्देश्य माना। उन्होंने मनोविज्ञान को शिक्षा का आधार बनाने के प्रयास किए। आधुनिक शिक्षण के कई प्रमुख सिद्धांतों को पेसलॉत्सी के शैक्षिक प्रयोगों द्वारा महत्व प्राप्त हुआ। शिक्षणविधि में संप्रेक्षण एवं स्वानुभव को इन्होंने मुख्य स्थान दिया। बाद में आनेवाले शिक्षाशास्त्रियों तथा अध्यापकों पर इनके विचारों का प्रचुर प्रभाव पड़ा।

फेलेनबर्ग, फिलिप इमैनुएल फॉन - (१७७१-१८४४ ई.) स्विट्ज़रलैंड का शिक्षाविद् तथा अर्थशास्त्र। १७९९ ई. में हॉफबिल नामक स्थान पर इन्होंने एक कृषि महाविद्यालय की स्थापना की जिसने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। इन्होंने अन्य शैक्षिक संस्थाओं तथा एक अनाथालय की स्थापना भी की।

फ्रोस्वेल - दे. खंड ३. पृ. २.३ (किंडरगार्टन)।

वेकन, फ्रांसिस - दे. खंड ८, पृ. ३३९-३४०

वेन, अलेग्जैंडर - (१८१८-१९०३ ई.) ऐबरडीन में तर्कशास्त्र का प्राध्यापक था जो बाद में रेक्टर निर्वाचित हुआ। उसकी महत्वपूण्र रचनाएँ ये हैं - 'इंद्रियाँ तथा प्रज्ञा' (दि सेंसेज ऐंड इंटिलेक्ट), 'मनोभाव तथा संकल्प', 'मानस तथा नैतिक विज्ञान', और 'तर्कशास्त्र'। उसका मनोविज्ञान शरीरविज्ञान पर आधारित था किंतु उसका मत था कि मनुष्य ऐसा चेतन प्राणी है जो बाहरी प्रभावों और संस्कारों के अनुसार ही कार्य नहीं करता वरन् संवेगों को स्वयं भी जन्म दे सकता है।

वेल ऐंड्रयू - (१७५३-१८३२ ई.) अंग्रेज शिक्षाशास्त्री जिसने 'मद्रास शिक्षाप्रणाली' का प्रचलन शुरू किया। सन् १७८७ में वह भारत आया और दो वर्ष बाद मद्रास के सैनिक अनाथालय का अधीक्षक नियुक्त हुआ। उसने कक्षानायक द्वारा शिक्षा चलाने की प्रणाली शुरू की और स्वयं विद्यार्थियों की ही सहायता से शिक्षा प्रसार का प्रयत्न किया। उसकी पुस्तिका 'शिक्षा में परीक्षात्मक प्रयोग' सन् १७९७ में प्रकाशित हुई। सन् १८११ में जब गरीबों की शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय सभा स्थापित की गई तो वह उसका अधीक्षक बनाया गया। यह सभा गरीबों के १२ हजार स्कूलों का संचालन करती थी।

बैनर्जी, गुरुदास - दे. खंड ८, पृ. ३६६

बैज़ीडो, जोहान बर्नहार्ड - (१७२३-१७९० ई.) जर्मन शिक्षाशास्त्री जिसने रूसो तथा कमैनिअस के सिद्धांत वचनों को कार्यान्वित करने का प्रयत्न किया (मेयर द्वारा लिखित उसकी जीवनी देखिए)। उसने शारीरिक शिक्षा पर जोर दिया।

भगवानदास, डाक्टर - दे. खंड ८, पृ. ४२६-२९

मांटेसरी, डा. मारिया - दे. खंड ९, पृ. २१५-१६, (दे. शिक्षा दर्शन)।

मालवीय मदनमोहन - दे. खंड ९, पृ. २६४-६५

मुंशीराम (श्रद्धानदं) - दे. खंड २, पृ. ४०९-१०

रसेल - दे. 'शिक्षा दर्शन'।

रूसो - दे. खंड १०, पृ. १७३-७४, दे. 'शिक्षा दर्शन'।

रैटिख (रैट्के) (१५७१-१६३५) एक जर्मन शिक्षाशास्त्री। उसके विचारानुसार राष्ट्रीय एवं धार्मिक एकता के लिए समस्त राष्ट्र में एक भाषा का ज्ञान आवश्यक है और मातृभाषा में पटु हो जाने के बाद उसी के माध्यम से अन्य भाषाओं का ज्ञान सहज हो जाता है। रैटिख के अन्य शिक्षा सिद्धांतों में प्रमुख हैं - प्राकृतिक क्रम से विद्यार्जन, साहित्य एव अभ्यास के द्वारा भाषाशिक्षण, रटना निरर्थक, दबाव अनावश्यक तथा भाषाओं की व्याकरण संबंधी समानता पर ध्यान। रैटिख ने १६१८ तथा १६२० में दो असफल शैक्षिक प्रयोग किए। उस का दंभी स्वभाव, युगीन धार्मिक अस्थिरता और लूथर में अटूट आस्था उसकी असफलता के कारण थे। परंतु रैटिख के निखरे विचार कमेनियस के शैक्षिक सुधारों में सजग हो उठे थे। (शि.कु.गु.)

रेक्स, रॉबर्ट (१७३५-१८११) इंगलैंड में 'संडे स्कूल' का प्रवर्तक। पिता के देहावसान के बाद 'ग्लॉस्टर जर्नल' का मालिक एवं संपादक बना। उसने ग्लॉस्टर नगर में जेल की दशा सुधारने के लिए प्रयास किए। समस्या का सही हल कारण के निवारण में था। पिन की फैक्टरी में काम करनेवाले बच्चे इतवार को ऊधम करते थे। उनके लिए १७८० में 'संडे स्कूल' खोला। इसके अतिरिक्त अन्य दिनों में भी अवकाश के समय में उनकी पढ़ाई का प्रबंध किया। उसकी पत्रिका उसके प्रयास के प्रचार का सफल साधन बनी। फलस्वरूप १७८५ में बृहत् वर्तानिया के समस्त साम्राज्य में संडे स्कूल की स्थापना एव सहायता के लिए एक समाज की स्थापना हुई। १८०३ में संडे स्कूल संघ बना।

(शि.कु.गु.)

लैकैस्टर जोजेफ, (१७७८-१८५८) ई. - अंग्रेज शिक्षाविद्। १८०१ में इन्होंने अपने जन्मस्थान साउथवार्क में एक विद्यालय खोला जिसमें कक्षानायकों (monitors) द्वारा शिक्षण की व्यवस्था की गई। 'ब्रिटिश ऐंड फॉरेन स्कूल्स सोसाइटी' ने बाद में इसी प्रणाली का प्रयोग अपने विद्यालयों में किया। लैकैस्टर को असांप्रदायिक धार्मिक शिक्षण का जन्मदाता कहा जाता है।

बीबेस, जुआँ लुई (१४९२-१५४०) - स्पेन स्थित वैलेंशिया में ६ मार्च, १४९२२ को जन्म। वह चिंतक, मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाशास्त्री था। पेरिस में उच्च शिक्षा प्राप्त कर लोउवेन में प्राध्यापक नियुक्त हुआ। बाद में आक्सफोर्ड में नियुक्ति हुई और राजकुमारी मेरी ट्यूडर का शिक्षक भी रहा। जीवन का शेष समय ब्रुजिज़ में बीता। यह आधुनिक मनोविज्ञान का जन्मदाता माना जाता है, कारण-चेतन व्यवहार को आध्यात्मिक और भौतिक स्वरूप से परे मनोवैज्ञानिक आधार दिया। इसके शैक्षिक सिद्धांत मनोविज्ञान एवं नीतिशास्त्र पर आधारित होने के कारण पुष्ट हैं। दार्शनिक क्षेत्र में उनका निश्चित प्रभाव बेकन और डेकार्ट पर पड़ा था। उसने बताया कि आत्मा का आभास उसके विकसित दैवीय स्वरूप को जान लेने में है और मानस, व्यवहार से ही परखा जा सकता है। (शि.कु.गु.)

सुकरात - दे. खंड १, पृ. २२१, ३४०, दे. 'शिक्षा दर्शन'।

स्पेंसर - दे. 'शिक्षादर्शन'।

हर्बार्ट - दे. 'हर्बार्ट'।

हैर्टाग, सर फिलिप - इन्होंने भारतीय उच्च शिक्षा की उन्नति के संबंध में कुछ विश्लेषण कार्य किया। सन् १९०४ के विश्वविद्यालय अधिनियम (ऐक्ट) पास होने के बाद से भारत में उच्च शिक्षा का प्रसार होने लगा था और कई नए विश्वविद्यालय खुलते जा रहे थे। सन् १९१९ से लेकर सन् १९३६ तक कई कमीशन नियुक्त किए गए जिन्होंने भारतीय उच्च शिक्षा के संबंध में अपने विचार प्रकट किए। सर फिलिप हैर्टाग भारतीय स्टैटुटरी कमीशन की उपसमिति के अध्यक्ष थे। इस समिति ने सन् १९२९ में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें शिक्षा की प्रगति के संबंध में इसने अपनी कुछ सिफारिशें कीं। भारत सरकार ने समिति की कई सिफारिशें मान लीं और उनका प्रयोग किया। ( मिथिलेश चंद्र पांड्या)