शिक्षा, विस्तारी भारत की केंद्रीय सरकार ने सन् १९५५-५६ में विभिन्न प्रशिक्षण महाविद्यालयों में शिक्षा-प्रसार-सेवा-विभागों की स्थापना की। इनका प्रमुख उद्देश्य माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों को उचित मार्ग प्रदर्शन करना तथा उनको नवीन शिक्षा प्रयोगों एवं योजनाओं से अवगत कराना था। उनसे यह भी आशा की गई कि वे कक्षा की समस्याओं को प्रशिक्षण विद्यालय में समाधानार्थं लावें।

डाइरेक्टरेट ऑव एक्स्टेंशन प्रोग्रैम फॉर सेकेंडरी एजुकेशन के अंतर्गत शिक्षा-प्रसार-सेवा-केंद्र प्रशिक्षण विद्यालयों में खोले गए। यह विभाग १९५९ तक शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत क्रियान्वित रहा। उसके उपरांत १९६१ से डाइरेक्टरेट, नेशनल कौंसिल ऑव एजुकेशनल रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग का एक प्रमुख भाग बन गया। शिक्षा-प्रसार-सेवाविभाग प्रशिक्षण महाविद्यालयों का एक प्रमुख अंग है। यह एक स्थायी समायोजक द्वारा संगठित एवं क्रियान्वित होता है। यह एक स्थायी समायोजक द्वारा संगठित एवं क्रियान्वित होता है। यह कालेज के प्रिंसिपल की संरक्षकता में कार्य करता है जो विभागों के अवैतनिक निर्देशक के रूप में कार्य करता है जो विभागों के अवैतनिक निर्देशक के रूप में कार्य करता है। इसकी सारी आर्थिक व्यवस्था नै.कौ. ऑव ए.रि.ऐं.ट्रे. अपने डाइरेक्टर ऑव एक्स्टेशन प्रोग्रैम्स फॉर सेकेंडरी एजूकेशन (D E P S E) के द्वारा करता है जो दिल्ली में स्थित है। इसके सभी कार्यक्रम डाइरेक्टरेट ऑव एक्सटेंशन प्रोग्रैम्स फॉर सेकेंडरी एजुकेशन तथा एक सलाहकार समिति द्वारा निर्देशित होते हैं। यह विभाग समय समय पर अध्यापकों की गोष्ठी करता है जिसमें विचार विमर्श होते हैं। इन सभी गोष्ठियों का व्ययभार यही विभाग वहन करता है।

शिक्षा-प्रसार-सेवा-विभाग के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है:- माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों की शैक्षिक कार्यक्षमता एवं ज्ञान में वृद्धि करना। माध्यमिक विद्यालयों के शैक्षिक स्तर तथा छात्रों का संपूर्ण विकास करना। शिक्षण विद्यालयों के द्वारा शिक्षकों तथा माध्यमिक विद्यालयों की पूर्ण रूप से सहायता करना तथा दोनों में पारस्परिक संबंध स्थापित करना। उपयोगी सूचना एकत्र करना। नई नई विचारधाराओं का संकलन कर उन्हें दूसरे विद्यालयों तक पहुँचाना। माध्यमिक स्तर की शिक्षा संबंधी विभिन्न समस्याओं का पता लगाकर उनके हल के उपाय सोचना।

समय समय पर यह विभाग विचारगोष्ठी (सेमिनार) शिल्पशाला (वर्कशाप) एवं विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम संगठित करता है। पुस्तकालय की भी व्यवस्था करता है जहाँ से अध्यापक पुस्तक, पत्रिकाएँ आदि मँगा सकते हैं जिसका व्यय यही विभाग वहन करता है। शिक्षा से संबंधित प्रोजेक्टर, फिल्म, टेपरेकार्ड नक्शा, चार्ट इत्यादि की व्यवस्था करता है। माध्यमिक विद्यालयों में विज्ञान क्लब तथा अन्य विषयों के क्लबों की स्थापना में सहयोग करता है, यहाँ तक कि १२०० रु. तक की आर्थिक सहायता भी देता है। माध्यमिक शिक्षालयों के सहयोग से शिक्षा विषयक प्रदर्शनी भी कराता है। यदि कोई उत्साही अध्यापक कोई प्रयोग करना या प्रोजेक्ट बनाना चाहते हैं तो उनके प्रोजेक्ट तथा प्रयोगों को सफल बनाने में पूर्ण रूप से सहयोग, यहाँ तक कि आर्थिक सहायता भी, प्रदान करता है। अध्यापकों के हितार्थ यह समय समय पर उपयोगी प्रकाशन भी करता है जो उनको उचित दिशा की ओर अग्रसर करते है और ये सभी प्रकाशन विद्यालयों में नि:शुल्क भेज दिए जाते हैं। (ज्ञा.ना.)